वाशिंगटन। चाहे किडनी ट्रांसप्लांट हो या चाहे लिवर ट्रांसप्लांट, ऑर्गन ट्रांसप्लांट के बाद रिजेक्शन की समस्या आम बात है मरीजों को यह डर हमेशा सताता रहता है। ऑर्गन रिजेक्शन ना करें इसके लिए इम्यूनो सप्रेसिव दवाएं दी जाती हैं, लेकिन उसके भी दुष्प्रभाव हैं, मसलन शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। इससे इंफेक्शन होने की आशंका अधिक रहती है। इन सबके बीच राहत भरी खबर है, एमियोट्राफिक लैटरल सिलेरोसिस ने एक एंटीबॉडी के बारे में जानकारी दी है जो ऑर्गन रिजेक्शन से बचने के लिए प्रभावी बताया जा रहा है। यदि इंसानों पर क्लिनिकल ट्रायल कामयाब रहा तो यह मील का पत्थर साबित होगा।
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20 बरस से चल रहे इस दिशा में प्रयास
ड्यूक विश्वविद्यालय के इम्यूनोलॉजिस्ट और ट्रांसप्लांट सर्जन एलम किर्क के मुताबिक पिछले 20 वर्षों से इस दिशा में प्रयास किए जा रहे है और उम्मीद है कि हम टर्निंग पॉइंट पर हैं। यह ट्रांसप्लांट के मरीजों के लिए बेहतरीन आविष्कार साबित हो सकता है। बहुत से मरीजों केलिए ऑर्गन ट्रांसप्लांट ही जीवन बचानेका रास्ता है, लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या ऑर्गन रिजेक्शन की है। मरीज का इम्यून सिस्टम फॉरेन ऑर्गन को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता है। इम्यून रिस्पांस को ही ऑर्गन रिजेक्शन के नाम सेजाना जाता है।
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एंटीबॉडी से मिल रही मदद
एटी 1501 मोनोक्लिनिकल एं टीबॉडी की मदद से रिजेक्शन को कम करने में मदद मिली है, खास बात यह है कि इम्यूनोसप्रेसिव ड्रग्स की मात्रा को बढ़ाने की जरूरत नहीं है। इम्यूनोसप्रेसिव ड्रग्स का एक बड़ा साइड इफेक्ट ब्लड क्लॉटिंग का है जिससेकम करने में मदद मिलती है. इस पूरे अध्ययन को एल्डेन फॉर्मास्यूटिकल्स ने फंड किया है.ये उपचार प्रतिरक्षा प्रणाली को दबा देते हैं, जिससे रोगियों को संक्रमण और अंग क्षति का खतरा होता है।