कोटा। देशभर में भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम है। कृष्ण मंदिरों में लोगों की कतारें लगी हुई हैं। भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन की खुशी में लोग नाच-गाकर मना रहे हैं। जैसे ही रात के 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव होगा, वैसे ही मंदिर में लोग दर्शन के लिए भीड़ जमा हो जाएगी। वहीं राजस्थान का एक ऐसा भी मंदिर है जहां आज भी यहां पुरुषों का प्रवेश निषेध है।
हम बात कर रहे है राजस्थान के कोटा में टिपटा गढ़ पैलेस में भगवान लक्ष्मीनारायण का हाड़ौती में एक मात्र ऐसे मंदिर की, जहां साल में दो बार जन्माष्टमी और नंदोत्सव पर सिर्फ महिलाओं को दर्शनों की अनुमति मिलती है। यहां पुरुषों का प्रवेश निषेध है। इसके पीछे का मुख्य कारण है कि यह मंदिर जनाना महल में स्थित है। प्राचीन परंपरा के निर्वहन के कारण पूर्व राजपरिवार की ओर से आज भी पुरुषों को दर्शनों के लिए प्रवेश नहीं मिलता है।
राव माधोसिंह म्यूजियम ट्रस्ट के क्यूरेटर पंडित आशुतोष दाधीच ने बताया कि यहां पूजन-अर्चन भी महिलाओं द्वारा किया जाता है। भगवान लक्ष्मीनारायण जी की प्रतिमा को विजया दशमी पर सवारी के रूप में हाथी के ओहदे पर विराजकर दशहरा मैदान में शोभायात्रा के रूप में ले जाकर प्रतीक रावण वध की परंपरा का निर्वहन होता है।
भगवान कृष्ण को माना जाता है राजा
क्यूरेटर पंडित आशुतोष दाधीच ने बताया कि पूर्व महाराव भीमसिंह प्रथम ने वल्लभकुल की दीक्षा लेकर स्वयं को कृष्णदास बना लिया। उन्होंने भगवान कृष्ण का प्रतिनिधि मानते हुए राज्य की व्यवस्थाओं की जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। राज- काज की सारी व्यवस्थाएं कृष्ण को ही राजा मानकर की जाती रहीं।
राजसिंहासन पर भी कृष्ण को ही विराजित किया जाता था। वे स्वयं को इनका प्रतिनिधि मानते थे। उनके समय में जयश्री गोपाल की मोहर लगती थी वे अपने दस्तखत के रूप में भीमस्य कृष्णदास्य लिखते थे। डाक भेजते समय नंदग्राम लिखते थे। इसी परंपरा में आज भी पूर्व राजपरिवार बृजनाथजी के मंदिर में भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के समय पर पधारते हैं। प्रथम भेंट पूर्व राजपरिवार की ओर से होती है।
बड़े मथुराधीश मंदिर बोर्ड लगाएगा 15 करोड़
शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ बड़े मधुराधीश मंदिर में देशभर से आने वाले भक्तों के लिए धर्मशाला, पार्किंग आदि सुविधाओं के लिए 15 करोड़ के कार्य शुरू करवाए जाएंगे। इसका श्री बड़े मधुराधीश टेंपल बोर्ड ने प्रोजेक्ट बनवा लिया है। प्रथम पीठ के गोस्वामी मिलन बावा ने बताया कि काशी विश्वनाथ की तर्ज पर नंदग्राम पाटनपोल को रिवर फ्रंट से जोड़ा जाए तो धार्मिक पर्यटन की संभावनाएं बढ़ सकती है।