जयपुर। नए साल में 19 जनवरी से विधानसभा का बजट सत्र शुरू होगा। बजट सत्र से पहले प्रदेश कांग्रेस ने भी संगठन में बदलाव के संकेत दिए हैं। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष व प्रदेशाध्यक्ष के नामों को लेकर नए साल के पहले सप्ताह में घोषणा हो सकती है। सूत्रों की मानें तो पार्टी आला कमान नामों को लेकर लगातार मंथन कर रहा है, बताया यह भी जा रहा है कि नेता प्रतिपक्ष के लिए वरिष्ठ नेता वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के नाम को लेकर राय बनाई है, जिस पर भी विचार किया गया है।
पार्टी का मानना है कि डोटासरा नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में एक फायर बिग्रेड नेता के रूप में स्थापित हो सकते हैं। डोटासरा लगातार भाजपा पर हमलावर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की नजदीकी के चलते डोटासरा का नाम नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में सबसे आगे बताया जा रहा है।
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डोटासरा इसलिए दौड़ में आगे…
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद पर काबिज प्रदेशाध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा करीब साढ़े 3 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। वे 15 जलाई, 2020 को अध्यक्ष बने थे। वे चौथी बार विधानसभा पहुंचे हैं। विधानसभा में वे मुद्दे उठाने को लेकर पूर्वमें भी विपक्ष में रहते एक्टिव रहे हैं। इसलिए उनका नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में नाम आगे हैं।
यूं बदल सकते हैं समीकरण
नेता प्रतिपक्ष की जल्द नियुक्ति के साथ ही प्रदेश कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिलने की चर्चा भी तेज हो गई है। सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी नियुक्त किए जाने और हरीश चौधरी को पंजाब के प्रभारी पद से मुक्त करने की वजह से प्रदेश के सियासी समीकरण बदलने की ज्यादा चर्चा है। पहले नेता प्रतिपक्ष या फिर प्रदेशाध्यक्ष की दौड़ में सचिन पायलट का भी नाम था, लेकिन वे छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी मिलने के बाद दौड़ से बाहर हो गए हैं।
हालांकि वे आगामी विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में मुख्य भूमिका में आ सकते हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि यदि हरीश चौधरी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया तो गोविंद सिंह डोटासरा नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में सबसे आगे रहेंगे। हालांकि प्रदेश में जो भी बदलाव होंगे वो 5 जनवरी को करणपुर विधानसभा चुनाव के बाद ही होंगे।
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लोकसभा चुनाव में गहलोत निभाएंगे बड़ी भूमिका
तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत को अभी दिल्ली में बड़ी जिम्मेदारी मिली है। उन्हें नेशनल अलांय कमेटी में सदस्य बनाया गया है। ऐसे में उनकी आगामी लोकसभा चुनाव में अन्य दलों के साथ गठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर बड़ी भूमिका रहेगी। चर्चा है कि अनुभवी नेता के रूप में अब दिल्ली में ही उन्हें बड़ी जिम्मेदारियां आगे भी मिल सकती हैं।