उदयपुर में कन्हैयालाल हत्याकांड (Kanhaiya Lal Murder Case) के बांद जांच एजेंसियां मामले की जांच में जुट गई हैं। NIA इस मामले की तह तक जाने की कोशिश में लगा हुआ है। उदयपुर जैसे शांत शहर से इस तरह की घटना का आना वाकई हैरान, परेशान और डराने वाला है। राजस्थान भारत-पाकिस्तान सीमा का बॉर्डर क्षेत्र वाला प्रदेश है। इसलिए यहां की सुरक्षा उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कश्मीर जैसे प्रदेश की। लेकिन लगातार आतंकी गतिविधियों की खबरें आने से इतना तो पता चल जाता है कि प्रदेश की सुरक्षा सिर्फ कागजों में ही की जा रही है। जमीनी स्तर पर ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। उदयपुर के मामले में पाकिस्तान के आतंकी संगठन का नाम आ चुका है। साथ ही लगभग यह भी साफ होता जा रहा है कि हत्या में शामिल सभी 5 आरोपी पाकिस्तान से अच्छी खासी आतंकी ट्रेनिंग लेकर आए थे। इसलिए अब इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इन आतंकियों ने जिस तरह से इस हत्याकांड की साजिश रची उसने इंटेलिजेंस नेटवर्क की पोल खोल कर रख दी है।
सुस्ता रहा है खुफिया तंत्र!
सुरक्षा के दृष्टिकोण के लिहाज से राजस्थान में कई खुफिया एजेंसियां काम कर रही हैं। यहां SSB, CID, ATS , SOG जैसी कई अहम संस्थाएं हैं, जिनका काम खुफिया तंत्र को चौकस रखना है। प्रदेश में कौन सा नेटवर्क गड़बड़ी फैला सकता है या सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ सकता है। इसकी पूरी जानकारी रखना और सरकार से साझा करना इन संस्थाओं की काम है। लेकिन यह तंत्र कितना सुस्त है, इसकी पोल यहीं से खुल जाती है कि उदयपुर की हत्या के बाद भी कहां कौन-कौन से स्लीपर सेल छुपे बैठे हैं, इसकी भनक तक शायद ही इन सुरक्षा एजेंसियों को हो। यहां तक की उदयपुर हत्याकांड के आरोपी रियाज और गौस का पाकिस्तानी कनेक्शन है इसकी खबर भी सबसे पहले राजस्थान के गृह राज्य मंत्री राजेंद्र यादव ने ही बकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर प्रदेश के जनता के बीच सार्वजनिक की थी, जिसके बाद ये एजेंसियां हरकत में आईं। यानि खुफिया एजेंसियों को भी सरकार ही बता रही है कि यह आरोपी आतंकवादी संगठन से जुड़ा हुआ है। तस्वीर साफ है कि सुरक्षा के पटल पर प्रदेश के हालात क्या हैं।
करौली दंगा में भी फेल हुई थी सुरक्षा व्यवस्था
ये खुफिया तंत्र और पुलिस प्रशासन अगर चौकन्ने होते तो 2 अप्रैल को हुए करौली दंगे से प्रदेश कलंकित न होता। इस दंगे में भी चरमपंथी इस्लामिक संगठन PFI यानि पॉप्यूलर फ्रंट ऑफ इंडिया का नाम आय़ा। दंगे के लिए फंडिंग भी इसी संगठन के जरिए आई। इस मामले की जांच में यह भी खुलासा हुआ था कि प्रदेश में सक्रिय PFI ने पहले ही CM अशोक गहलोत और DGP मनोज लाल लाठर को चिट्ठी लिखकर पहले ही आगाह कर दिया था। लेकिन शासन औऱ प्रशासन की सुस्ती के चलते करौली में इतना बड़ा दंगा हो गया। PFI राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद आसिफ ने एक बयान जारी कर बताय़ा था कि CM अशोक गहलोत को पत्र लिखकर दंगे की साजिशों से पहले ही अवगत करा दिया था। इसके बावजूद रैली आयोजनकर्ता को मुस्लिम बहुल इलाकों में रैली निकालने की अनुमति दे दी गई। इतना ही नहीं जिस समय यह रैली निकाली जा रही थी, कम से कम उस समय तो पुलिस बलों को वहां पर्याप्त संख्या में तैनात किया जाना चाहिए था, लेकिन इसकी जरूरत शायद किसी को महसूस ही नहीं हुई। कम पुलिस फोर्स होने के चलते नतीजा यह हुआ कि घंटों तक करौली की संकरी गलियों में मारकाट-आगजनी होती रही।
लंबे समय से प्रदेश में रह रहे हैं पाकिस्तान से आए नागरिक
केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक तो अभी देश में 4 लाख, 21 हजार 225 विदेशी नागरिक लापता हैं। जो वीजा लेकर आए थे वे वापस नहीं लौटे हैं। सभी राज्यों से इन्हें ढूंढने के लिए केंद्र की तरफ से आदेश दिए गए हैं। इसके बाद प्रदेश की गहलोत सरकार ने बकायदा एक कमेटी का गठन हुआ था। पुलिस के सहयोग से सुरक्षा एजेंसियों ने इन्हें तलाशने के लिए काम भी शुरु कर दिया था, इसके बावजूद पुलिस औऱ सुरक्षा एजेंसियों के हाथ खाली हैं। अगर उदयपुर की घटना को संदर्भ में रखें तो यहां सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि कैसे प्रदेश सरकार के संज्ञान में आए बगैर कोई पाकिस्तान जा सकता है और तो और वहां से आतंकी ट्रेनिंग लेकर वापस भी आ गया। क्या पाकिस्तान जाने वाले नागरिकों का डाटाबेस नहीं रखा जाता। अगर रखा भी जाता है तो उस पर नजर क्यों नहीं रखी जाती कि फलां नागरिक इस काम से पाकिस्तान जैसे मुल्क में जा रहा है और वहां से कौन-कौन नागरिक यहां आ रहा है? यह इसलिए भी चिंता का विषय है क्यों कि प्रदेश में अभी 110 पाक नागरिक लापता है यानि ये पाकिस्तान से आए तो हैं लेकिन वापस नहीं गए हैं और वे कहां रहते हैं क्य़ा करते हैं किसी को कुछ पता नहीं हैं। हाल यह है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय लगतार प्रदेश के गृह विभाग को निर्देश दे रहा है कि वे पाकिस्तान से आए लापता लोगों की जांच करें, उन्हें ढूंढे। लेकिन अब तक इसमें कुछ खास सफलता हाथ नहीं लगी है। इनकी ढूंढने में लगी प्रदेश सरकार की गठित कमेटी भी खुद कहीं खो सी गई है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास है पूरा डेटाबेस
गृहमंत्रालय ने चार अलग पत्र लिखकर राजस्थान में 684 पाक नागरिकों की सूची भेजी गई थी। इसमें राज्य सरकार ने 510 नागरिकों का पता लगाया। इनमें से कई लोग वीजा में अंकित स्थान के अलावा दूसरी जगह भी रह रहे हैं। इनमें 64 लोग ऐसे थे जिनका नाम दो से अधिक जिले में रहने में आ रहा था। इन्हीं में 110 विदेशी नागरिक थे जिन्हें प्रशासन अभी तक नहीं ढूंढ पाया है। यहां बेहद चिंता का विषय है कि गृह मंत्रालय ने राजस्थान सरकार को निर्देश दिया है कि लापता नागरिक प्रतिबंधित, अघोषित और सरंक्षित छावनी क्षेत्रों में भी निवास कर रहे हैं। गृह मंत्रालय के मुताबिक ऐसे लोगों का प्रतिबंध इलाकों में निवास करना आंतरिक और बाहरी सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक हैं।
राजस्थान की गठित कमेटी में ये शामिल
लापता विदेशी नागरिकों को ढूंढने के लिए राजस्थान सरकार ने जिस कमेटी का गठन किया है उसमें ADG इंटेलिजेंस, FRRO( फॉरेन रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस), जिलों के पुलिस अधीक्षक, NIC ( नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर) के प्रतिनिधि शामिल हैं। यह कमेटी हर महीने की 7 तारीख को अवैध विदेशी नागरिकों की जानकारी गृह मंत्रालय को देनी होगी। इसके साथ बाहर से प्रदेश की सीमा में आने वाले लोगों की भी मॉनिटरिंग करेगी।