ERCP : ERCP को लेकर राहत देने वाली खबर आई है। अब मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ( Shivraj Singh Chouhan ) के साथ अशोक गहलोत ( CM Ashok gehlot ) की जल्द बैठक होगी। हालांकि अभी बैठक की तारीख और समय तय नहीं हुआ है। लेकिन जल्द ही तारीख भी सामे आ जाएगी। इस मामले में सीएम गहलोत ने एमपी सीएम शिवराज सिंह चौहान से बात की है। उन्होंने चौहान से कहा कि साल 2005 में राजस्थान औऱ मध्य प्रदेश अंतर्राज्यीय नियंत्रण मंडल की 13 वीं बैठक में हुए फैसले के मुताबिक ही ERCP योजना का क्रियान्वयन किया जाएगा।
‘राजस्थान ने एमपी की परियोजनाओं पर नहीं जताई थी आपत्ति’
इस पर शिवराज सिंह चौहान ( Shivraj Singh Chouhan ) ने सहमति जताते हुए बैठक के लिए हामी भर दी है। अशोक गहलोत ने इस पर ट्वीट करते हुए कहा कि राजस्थान में चंबल की सहायक नदियों से आए जल पर आधारित इस प्रोजेक्ट में मध्य प्रदेश से बहकर आने वाले पानी ( ERCP Project ) के 10 प्रतिशत से कम हिस्से का उपयोग होगा। इसलिए साल 2005 में लिए गए फैसलों के अनुसार ऐसी परियोजनाओं के लिए मध्य प्रदेश की सहमति की जरुरत नहीं है। उन्होंने कहा कि पहले मध्य प्रदेश ने चंबल औऱ सहायक नदियों पर जो परियोजनाएं बनाईृ औऱ उन नदियों पर बांध तक बना लिए, राजस्थान ने तब भी कोई आपत्ति नहीं जताई थी। इसलिए अब अगर राजस्थान में इस तरह की कोई बड़ी परियोजना बनती है तो मध्यप्रदेश को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
क्या है ERCP ?
ERCP का मतलब है ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट ( Eastern Rajasthan Canal Project )। इस योजना का मुख्य उद्देश्य दक्षिणी राजस्थान में बहने वाली चंबल और उसकी सहायक नदी कुन्नू, पार्वती, कालीसिंध में बारिश के दौरान ओवरफ्लो होते पानी को इकट्ठा कर उसे राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी जिलों में भेजना है जिससे वहां पीने के पानी और फसलों की सिंचाई के लिए होती कमी को पूरा किया जा सके। इस य़ोजना की अनुमानित लागत लगभग 60 हजार करोड़ रुपए है। इस परियोजना से राजस्थान की 40 प्रतिशत जनता की प्यास बुझाने का उद्देश्य है। साथ ही करीब 4.31 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के लिए पानी का सामाधान होगा।
ERCP को लेकर क्यों है विवाद
दरअसल राजस्थान सरकार ERCP को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिलाना चाहती है। ताकि परियोजना की लागत का करीब 90% खर्च केंद्र सरकार उठाए। क्योंकि लागत का पूरा खर्च राज्य वहन नहीं कर पाएगा। वहीं केंद्र सरकार का तर्क है कि जिन नदियों के पानी से इस प्रोजेक्ट के जरिए काम करना है, वे मध्य प्रदेश से आती हैं तो राजस्थान को उनसे पहले NOC लेनी पड़ेगी। वहीं मध्य प्रदेश की सरकार ने राजस्थान तो NOC देने से मना कर चुकी हैं। यह कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के वक्त भी हुआ था। इस मामले में केंद्र और मध्य सरकार का कहना है कि 75% जलभराव हिस्सेदारी के हिसाब से राजस्थान डीपीआर बना कर दे। केंद्र तभी 90% हिस्सेदारी उठाएगा। 50% हिस्सेदारी से 3700 एमक्यूएम और 75% हिस्सेदारी से 1700 एमक्यूएम पानी मिलेगा। इसलिए राजस्थान सरकार को जलभराव में 50% की हिस्सेदारी चाहिए क्योंकि उससे पानी ज्यादा मिलेगा।