त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर है उनाकोटी, जो महान रहस्यों और रोमांच से भरा ईश्वरीय चमत्कार का पुरातात्विक स्थल है। उनाकोटि का अर्थ है करोड़ में एक कम। यहां मौजूद हैं निन्यावे लाख, निन्यानवे हजार, नौ सौ निन्यानवे मूर्तियां। यह मूर्तियां किसने बनाई, कब और कैसे बनीं, यह आज भी एक रहस्य है। आखिर इस जंगल में ऐसी खूबसूरत मूर्तियां और शैलचित्र किसने और क्यों बनाए? लहरदार पगडंडियां, घने जंगल और घाटियां, संकरी नदियां और स्रोतों के मनोरम दृश्य, अनोखी वनस्पतियां और वन्य जीवों के आस-पास होने का अहसास और अभयारण्य। ऐसा स्थान है उनाकोटि।
यह एक औसत ऊंचाई वाली पहाड़ी शृंखला है, जो उत्तरी त्रिपुरा के हरे-भरे शांत और शीतल वातावरण में स्थित है। त्रिपुरा के इस हरे-भरे और शांत शीतल वातावरण में सैकड़ों वर्षों से जंगल के बीच रखी इन मूर्तियों को देखकर लगता है जैसे किसी शिल्पकार ने कई वर्षों की मेहनत के बाद देवी-देवताओं को इतने सुंदर माहौल में विश्राम के लिए छोड़ दिया हो। आप इस जंगल में कहीं भी चले जाएं, हर तरफ आपको मूर्तियां ही मूर्तियां नजर आएंगी। यह पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े रहस्यों में भी शामिल है। यह स्थान काफी सालों तक अज्ञात रूप में रहा, हालांकि अब भी बहुत लोग इस स्थान का नाम तक नहीं जानते हैं। जगंलों के बीच शैलचित्रों और मूर्तियों का भंडार ‘उनाकोटि’ जितना अद्भुत है, उससे कहीं ज्यादा दिलचस्प इसका इतिहास है।
आस-पास कोई बसावट नहीं उनाकोटि की सबसे खास बात यहां मौजूद असंख्य हिन्दू देवी-देवताओं की मुर्तियां हैं, जो इस स्थान को सबसे अलग बनाने का काम करती हैं। उनाकोटि एक पहाड़ी इलाका है, जो दूर-दूर तक घने जंगलों और दलदली इलाकों से भरा है। उनाकोटि लंबे समय से शोध का विषय बना हुआ है, क्योंकि इस तरह जंगल के बीच जहां आस-पास कोई बसावट नहीं, वहां एक साथ इतनी मूर्तियों का निर्माण कैसे संभव हुआ।
पाल राजाओं के शासनकाल में बनी प्रतिमाएं
इतिहासकार मानते हैं कि भिन्न-भिन्न मूर्तियों से भरा ये इलाका करीब 9वीं से 12वीं शताब्दी के बीच पाल राजाओं के शासनकाल में बना। यहां के शिल्प को शैव कला के अलावा तांत्रिक, शक्ति और हठ योगियों की कला से भी प्रभावित माना गया है। यहां हिन्दू धर्म से जुड़ी प्रतिमाओं में भगवान शिव, देवी दुर्गा, भगवान विष्णु और गणेश आदि की मूर्तियां हैं। इस स्थान के मध्य में भगवान शिव की एक विशाल प्रतिमा मौजूद है, जिन्हें उनाकोटेश्वर के नाम से जाना जाता है। उनाकोटि की पहाड़ी पर हिन्दू देवी-देवताओं की चट्टानों पर उकेरी गई अनगिनत मूर्तियां और शिल्प मौजूद हैं। बड़ी-बड़ी चट्टानों पर ये विशाल नक्काशियों की तरह दिखते हैं और ये शिल्प छोटे-बड़े आकार में और यहां-वहां चारों तरफ फैले हैं।
अनोखी मूर्तियों का निर्माण
उनाकोटि में दो तरह की मूर्तियां हैं। एक जो चट्टानों को काटकर उकेरी गई हैं और दूसरी पत्थर की मूर्तियां। यहां चट्टानों पर उकेरी गई छवियों में सबसे सुंदर शिव की छवि है, जिसे उनाकोटि कालभैरव के नाम से जाना चाता है। करीब 30 फीट ऊंचे इस शिल्प के ऊपर 10 फीट का जटा रूपी एक मुकुट है। उन दोनों की बगल में शेर पर सवार देवी दुर्गा और दूसरी तरफ संभवतः देवी गंगा की छवियां हैं। निचले सिरे पर नंदी बैल का जमीन में आधा धंसा हुआ शिल्प है। इसके अलावा यहां गणेशजी, हनुमानजी और भगवान सूर्य के भी खूबसूरत शिल्प हैं।
भगवान शिव का श्राप
कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव अपने दल-बल और देवताओं के साथ काशी (कुछ लोग कहते हैं कि कैलाश पर्वत) जा रहे थे। पूरे समूह में कुल मिलाकर एक करोड़ लोग थे। उनाकोटि के जंगलों में पहुंचते- पहुंचते रात हो जाने पर निश्चय हुआ कि रात्रि विश्राम वहीं कर लिया जाए। भगवान शिव ने बाकी सभी देवी-देवताओं और दल के सदस्यों को सुबह सूर्योदय से पहले उठने का आदेश दिया ताकि नियत समय पर आगे की यात्रा प्रारम्भ की जा सके। अगले दिन जब भगवान शिव सोकर उठे तो देखा कि बाकी सभी लोग सो ही रहे थे। इससे क्रुद्ध होकर उन्होंने सबको वहीं पत्थर में बदल जाने का श्राप दिया और आगे बढ़ गए। इस तरह वहां 99,99,999 पत्थर के देवी-देवता बन गए।
भगवान की शर्त पूरी नहीं कर सका भक्त
एक स्थानीय शिल्पकार कालू कुम्हार, माता पार्वती का बहुत बड़ा भक्त था। एक बार जब भगवान शिव, माता पार्वती और अपने विशाल दल-बल के साथ उधर से गुजर रहे थे तो रात्रि विश्राम करने के लिए उनाकोटि में रुक गए। पूरे समूह में कुल मिलाकर एक करोड़ लोग थे। कालू कुम्हार ने यह सुना तो वह दौड़ा-दौड़ा भगवान शिव के पास गया और उनके साथ कैलाश जाने की जिद करने लगा।
माता पार्वती से विचार-विमर्श करने के बाद भगवान शिव ने यह शर्त रखी कि अगर वह सुबह उनके प्रस्थान करने से पहले साथ के सारे लोगों की अलगअलग मूर्तियां बनाकर दिखा देगा तो वो लोग उसे अपने साथ ले जाएंगे। शिल्पकार अपने काम में जी-जान से जुट गया, लेकिन सुबह भगवान शिव के प्रस्थान करने से पहले तक वह केवल 99,99,999 आकृतियां ही बना सका। इसलिए भगवान उसको वहीं छोड़ कर आगे की यात्रा पर निकल गए।
चार-भुजाओं वाले गणेश की दुर्लभ नक्काशी
युक्त शिल्प भी है। शिव के शिल्पों से कुछ ही मीटर दूर भगवान गणेश की तीन शानदार मूर्तियां हैं। चार-भुजाओं वाले गणेश की दुर्लभ नक्काशी के एक तरफ तीन दांत वाले चार भुजा गणेश और चार दांत वाले अष्टभुजा गणेश की दो मूर्तियां स्थित हैं। चतुर्मुख शिवलिंग, नंदी, नरसिम्हा, श्रीराम, रावण, हनुमान, और अन्य अनेक देवी-देवताओं के शिल्प और मूर्तियां यहां हैं। एक किंवदंती यह भी है कि अभी भी यहां कोई चट्टानों को उकेर रहा है, इसीलिए इस उनाकोटि-बेल्कुम पहाड़ी को देवस्थल के रूप में जाना जाता है।
आप कहीं से भी, किधर से भी गुजर जाइए, आपको शिव या किसी देवता की चट्टान पर उकेरी हुई मूर्ति या शिल्प मिलेगा। इन अद्भुत मुर्तियों के कारण यह स्थान काफी रोमांच पैदा करता है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) के अनुसार उनाकोटि का काल 8वीं या 9वीं शताब्दी का है। हालांकि, इसके शिल्पों के बारे में, उनके समय-काल के बारे अनेक मत हैं। इस क्षेत्र का इतिहास अजातशत्रु के शासन काल से भी जुड़ा हुआ है।
एक कहानी ये भी
एक अन्य कहानी में यह भी कहा जाता है कि कालू कु म्हार को सपने में भगवान शिव ने उनाकोटि के प्रस्तर खंडों पर एक करोड़ देवी-देवताओं की आकृतियां बनाने का आदेश दिया 99,99,999 आकृतियां बनाने के बाद कालू कुम्हार ने एक आकृति अपनी खुद की बना दी। इस प्रकार से वहां सिर्फ 99,99,999 देवी-देवता रह गए।
अप्रैल में होता है अशोकाष्टमी मेले का आयोजन
आस-पास के लोग यहां आकर इन मूर्तियों की पूजा भी करते हैं। यहां हर साल अप्रैल महीने के दौरान अशोकाष्टमी मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं। इसके अलावा यहां जनवरी के महीने में एक और छोटे त्योहार का आयोजन किया जाता है। हर साल अप्रैल के महीने में लोग सीता कुंड में नहाने के लिए आते हैं। पहाड़ों से गिरते हुए सुंदर सोते उनाकोटि के तल में एक कुंड को भरते हैं, जिसे ‘सीता कुंड’ कहते हैं। इसमें स्नान करना पवित्र माना जाता है। यह स्थान अब एक प्रसिद्ध पर्यटन गंतव्य बन चुका है। यहां की अद्भुत मूर्तियों को देखने के लिए अब देश-विदेश के लोग भी यहां आते हैं।