Rajasthan Assembly Election 2023: देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए शंखनाद हो गया है। इनमें राजस्थान भी शामिल है, जहां मतदान एक ही चरण में 23 नवंबर को होगा। पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को वोट पड़ेंगे। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में 7 व 17 नवंबर को दो चरणों में, तेलंगाना में 30 नवंबर को और मिजोरम में 7 नबंबर को मतदान होगा। नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे। राजस्थान में यह चुनाव बहुत ही अहम है। सवाल उठ रहा है कि परम्परा कायम रहेगी या रिवाज टूटेगा! मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी सरकार रिपीट करने के लिए अपना पूरा प्रशासनिक व राजनीतिक कौशल झोंक रखा है तो भाजपा भी वापसी के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है।
सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस हिमाचल प्रदेश व कर्नाटक में मिली चुनावी सफलता का सिलसिला इन पांच चुनावी राज्यों में जारी रख सकेगी? छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और मध्य प्रदेश में भी वह सत्ता में वापसी की दावेदार है। यदि इन तीनों राज्यों में कांग्रेस सत्ता में वापसी कर लेती है तो यह उसके लिए संजीवनी से कम नहीं होगी और भाजपा के लिए यह लोकसभा चुनाव से पहले बहुत बड़ा सियासी झटका हो सकता है।
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OBC वोटर्स निभाएंगे निर्णायक भूमिका
लेकिन भाजपा कांग्रेस को इतनी आसानी से मैदान मारने नहीं देगी। राज्यों में पार्टी के भीतर किसी भी चुनावी कलह को समाप्त करने के लिए भाजपा ने सामूहिक नेतृत्व का मंत्र फूंका है। यानी चेहरा बस कमल और पीएम मोदी का रहेगा। पार्टी की चुनावी व्यूहरचना भी इसी के ईद-गिर्द रहने वाली है। पीएम मोदी के काम और नाम भाजपा की सबसे बड़ी ताकत हैं और कांग्रेस इस ताकत का तोड़ जातीय जनगणना और ओबीसी आरक्षण में देख रही है।
कांग्रेस कार्यसमिति की हैदराबाद बैठक में पारित प्रस्तावों से यह साफ हो गया था कि अब पार्टी की चुनावी रणनीति के दो अहम हथियार जातीय जनगणना, महिलाओें के लिए विधायिका में आरक्षण को तत्काल लागू करने और ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने यानी जिसकी जितनी आबादी, उसको उतना हक वाली थीम पर चलेगा। इसी आधार पर मोर्चाबंदी हो रही है।
अब यह सर्वमान्य तथ्य है कि भाजपा की हाल ही की चुनावी सफलता में ओबीसी मतों की बहुत अहम भूमिका रही है। इसका अर्थ यह नहीं है कि ओबीसी में शामिल सभी जातियां भाजपा के समर्थन में खड़ी थीं। लेकिन भाजपा ने राज्यों की समाजिक संरचना के अनुसार जातीय समीकरण बनाए और वह उनको वोटों में तब्दील करने में कामयाब रही। जैसे उत्तर प्रदेश में भाजपा को पता था कि सर्वाधिक ओबीसी वोट यादव मत उसके पाले में नाममात्र के रहेंगे तो उसने गैर यादव ओबीसी मतों के एकजुट कर समीकरण साधे। लेकिन राजस्थान में तो भाजपा ओबीसीके सबसे बड़े मतदाता समूह को अपने साथ रखकर चल रही है।
राजनीतिक विश्लेषक राजस्थान भाजपा में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया की वापसी और पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा का पार्टी में आना इसी रणनीति का हिस्सा मानते हैं और इसे पंजाब में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ व हरियाणा में कुलदीप बिश्नोई को भाजपा में लाने और उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चैधरी से जोड़कर देखते हैं। देश के राजनीतिक परिदृश्य में हाल में कुछ बदलाव आए हैं। विपक्षी दलों का इंडिया नाम से नया गठबंधन बन गया। दूसरी ओर केंद्र सरकार ने विशेष संसद सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित करा एक और ऐतिहासिक काम अपने नाम 1लिखा लिया।
कांग्रेस के लिए तारणहार बन सकती है ईआरसीपी!
जातिगत सर्वे के साथ ही कांग्रेस पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना यानी ईआरसीपी को चुनावी मोर्चे पर ले आई है और वह इसके सहारे वोटों की फसल काटना चाहती है। जातिगत सर्वेक्षण और ईआरसीपी उसकी चुनावी व्यूहरचना के दो अहम बिंदु हैं। ईआरसीपी प्रत्यक्ष रूप से राज्य के 13 जिलों से जुड़ी है। इस परियोजना के खिलाफ तो शायद ही कोई पार्टी होगी, लेकिन हां इसके तकनीकी स्वरूप को लेकर मतभेद हो सकते हैं।
अब यह मसला चुनावी मुद्दा बन रहा है। कांग्रेस 16 अक्टूबर से बारां से इस मसले को लेकर यात्रा शुरू करने जा रही है। सत्ता में वापसी की दावेदार भाजपा के लिए यह दोनों मुद्दों अहम चुनौती होंगे। अब देखना है कि भ्रष्टाचार और बदहाल कानून व्यवस्था को लेकर गहलोत सरकार को घेर रही भाजपा इस चुनौती का क्या तोड़ निकालती है।
जातीय आरक्षण का बड़ा दांव
कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल इस पर चाहे जितने सवाल खड़े करें और कमियां गिनाएं लेकिन सच्चाई यही है कि वे जो नहीं कर पाए, वह पीएम मोदी ने अपने राजनीतिक कौशल से कर दिखाया और लगभग सभी दलों को एक पाले में लाकर खड़ा कर दिया। साफ है इसका राजनीतिक फायदा भाजपा इन चुनावों में उठाना चाहेगी। भाजपा के इसी रणनीतिक हथियार की धार कुंद करने के लिए कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल अब जातीय जनगणना का मुद्दा जोर-शोर से उठा रहे हैं। राजस्थान में अशोक गहलोत चुनावों की घोषणा से पहले इस दिशा में अहम पहल कर चुके हैं।
सरकार ने शनिवार रात एक आदेश जारी कर जातिगत सर्वेक्षण का आदेश जारी कर दिया। राजस्थान की चुनावी मोर्चाबंदी में मुख्यमंत्री गहलोत का यह बड़ा चुनावी दांव है। राजस्थान में पिछले दो तीन महीनों में अगड़े-पिछड़े सभी जातीय समुदायों के सामाजिक सम्मेलन हुए जिसमें ओबीसी में शामिल अग्रणी जातियों के सम्मेलन भी शामिल हैं। राज्य के सबसे बड़े व सबसे समर्थ ओबीसी समाज जाट समाज के सम्मेलन में ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने और जातीय जनगणना की मांग प्रमुखता से उठी।
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इसके अलावा ओबीसी की अन्य जातीयां जो आरक्षण का अभी तक समुचित फायदा नहीं उठा सकी हैं, उन्होंने भी अपने- अपने स्तर पर ओबीसी आरक्षण को तार्किक रूप से विभाजित करने की मांग उठाई और अपने लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग की। जातिगत सर्वेक्षण के सरकार के इस फैसले में ओबीसी की कमजोर जातियों को अपने लिए कुछ अच्छा नजर आ सकता है।
सरकार ने पिछले दो-तीन महीनों में विभिन्न समाजों के लिए अलग अलग बोर्डो का गठन किया है। इनमें से बहुत से बोर्ड ओबीसी में शामिल जातियों के भी हैं, जिनका राजनीतिक रूप से प्रतिनिधित्व बहुत कम है। इन बोर्डों के माध्यम से सीएम गहलोत ने उन वर्गों तक पहुंचने का प्रयास किया है, जिनके पास राजनीतिक ताकत नहीं है। कमजोर जातियों के लिए बने बोर्डके तार जातीय सर्वेक्षण से जुड़कर अहम बन सकते हैं। अब यह कांग्रेस पर है कि वह संदेश को कहां तक लोगों के दिल में उतार पाती है। कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा जातिगत गणना की हिमायत करते रहे हैं।
गजानंद शर्मा की रिपोर्ट