World Environment Day Special : नई दिल्ली। विश्व पर्यावरण दिवस वर्ष 1973 से हर साल 5 जून को मनाया जाता है। पर्यावरण केवल किसी एक तत्व का नाम नहीं है। यह विभिन्न तत्वों से मिला एक समग्र स्वरूप होता है। तेजी से होते विकास ने अब पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर दिया है। प्लास्टिक से लेकर जहरीले धुएं तक, धरती के लिए नित नए खतरे पैदा हो रहे हैं। कई अध्ययन हमें इसे संबंध में चेतावनी भी दे चुके हैं। इन चेतावनियों को या तो हल्के में लिया जा रहा है या फिर उन्हें बिल्कुल ही अनदेखा किया जा रहा है। यही कारण है कि आने वाले कुछ सालों में इसके भयंकर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
43 करोड़ टन प्लास्टिक उत्पादन
हर साल 43 करोड़ से अधिक टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है। प्लास्टिक प्रदूषण की सबसे हानिकारक और स्थाई प्रभाव वाली चीज माइक्रोप्लास्टिक है। मानव और पृथ्वी के स्वास्थ्य पर इसका खतरा सबसे बड़ा है। माइक्रोप्लास्टिक रोजमर्रा की वस्तुओं में पाए जाते हैं, जैसा कि सिगरेट, कपड़े और सौंदर्य प्रसाधन आदि में यह मौजूद रहता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण आयोग के अनुसंधान के अनुसार कुछ उत्पादों के निरंतर उपयोग से पर्यावरण में माइक्रोप्लास्टिक्स का संचय बढ़ जाता है। 5 मिमी व्यास तक के माइक्रोप्लास्टिक्स समुद्री प्लास्टिक कूड़े, पाइप, उत्पादन सुविधाओं में रिसाव और अन्य माध्यमों से समुद्र में जाते हैं।
वायु प्रदूषण बन गया है काल
वायु प्रदूषण की वजह से साल 2019 में दुनियाभर में लगभग 90 लाख लोगों की समय से पहले ही मौत हुई। इसका खुलासा एक वैश्विक रिपोर्ट में हुआ था। साल 2000 के बाद से ट्रकों, कारों और उद्योगों से आने वाली गंदी हवा के कारण मरने वालों की संख्या में 55% का इजाफा हुआ है। दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश भारत और चीन में प्रदूषण से होने वाली मौतों के मामले सबसे ज्यादा हैं। यहां हर साल लगभग 2.4 मिलियन से 2.2 मिलियन मौतें होती हैं। अब बात करें भारत की तो भारत में वायु प्रदूषण के कारण हुई 16.7 लाख मौतों में से अधिकांश मौत 9.8 लाख पीएम 2.5 प्रदूषण की वजह से हुई, अन्य 6.1 लाख मौतें घरेलू वायु प्रदूषण के कारण हुईं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण से 66.7 लाख लोगों की मौत हुई। वहीं, लगभग 17 लाख लोगों की जान खतरनाक केमिकल के इस्तेमाल की वजह से गई। भारत में साल 2019 में 16.7 लाख लोगों की मौत केवल वायु प्रदूषण से हुई यानी उस साल देश में सभी मौतों का 17.8% है। द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका कुल प्रदूषण से होने वाली मौतों के लिए शीर्ष 10 देश पूरी तरह से इंडस्ट्रियल देश हैं।
नवजातों की मौत का कारण बना
अमेरिका स्थित शोध संस्थान हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट (एचईआई) द्वारा प्रकाशित आंकड़ों से यह भी पता चला है कि वैश्विक स्तर पर 2019 में वायु प्रदूषण के चलते 4.76 लाख से ज्यादा नवजातों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। भारत के बाद नाइजीरिया में हर साल 67,869, पाकिस्तान में 56,519, इथियोपिया में 22,857, कांगों में 11,100, तंजानिया में 12,662 और बांग्लादेश में 10,496 नवजातों की मौत की वजह वायु प्रदूषण था। संस्थान द्वारा जारी रिपोर्ट “एयर क्वालिटी एं ड हेल्थ इन सिटीज: स्टे ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2022” के हवाले से पता चला है कि 2010 से 2019 के बीच जिन 20 शहरों में पीएम 2.5 में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई थी उनमें से 18 शहर भारत में थे। वहीं अन्य दो शहर इंडोनेशिया के थे।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि नाइजीरिया, पेरू और बांग्लादेश में पीएम2.5 का स्तर वैश्विक औसत से भी कई गुना ज्यादा है। गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में दुनिया के 7,239 शहरों में पीएम2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) के आंकड़ों का व्यापक विश्लेषण किया गया है। इस दौरान जिन 50 शहरों में पीएम 2.5 में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई थी उनमें से 41 भारत में और 9 शहर इंडोनेशिया में हैं। दूसरी ओर 2010 से 2019 के बीच जिन 20 शहरों में पीएम2.5 के स्तर में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई थी वो सभी शहर चीन में स्थित हैं।
जलवायु परिवर्तन है पलायन का बड़ा कारण
उधर, जलवायु में हो रहे परिवर्तन की वजह से होने वाला पलायन भी बड़ी परेशानी बन गया है। पलायन ऐसी घटनाओं से प्रभावित होता है, जैसे कि तूफान, बाढ़, सूखा, समुद्र का स्तर बढ़ना या खेती वाले इलाके में खारे पानी का जमा होना। एक्शनएड और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया ने दिसंबर 2020 में एक रिपोर्ट छापी। इससे पता चलता है कि भले ही वैश्विक समुदाय ग्रीनहाउस गैस कम करने का लक्ष्य निर्धारित किए हुए है और उस मुताबिक काम कर रहा है, फिर भी पांच एशियाई देश भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में 2030 तक 3.75 करोड़ लोग विस्थापित होंगे। वहीं, 2050 तक यह संख्या बढ़कर 6.29 करोड़ तक पहुंच सकती है।
सिर्फ भारत में 2050 तक जलवायु से जुड़े आपदाओं के कारण 4.5 करोड़ लोगों को अपने घरों को छोड़कर दूसरी जगहों पर पलायन करना पड़ेगा। यह संख्या मौजूदा समय में चरम घटनाओं के कारण पलायन करने वाले लोगों की तीन गुनी है। ‘भारत की पर्यावरण स्थिति रिपोर्ट 2022’ के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले पलायन के मामले में भारत दनुिया का चौथा सबसे ज्यादा प्रभावित देश है। यहां 2020-21 में 30 लाख से अधिक लोगों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। सबसे अधिक पलायन वाला देश चीन है। यहां मौसम से जुड़े आपदाओं की वजह से 50 लाख से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा।
प्रदूषण कम करने पर चीन दे रहा है ध्यान
चीन दुनिया में सबसे बड़ा विकासशील देश है। चीन प्लास्टिक प्रदूषण कम करने पर बड़ा ध्यान देता है। चीनी लोग पहले से ही समझते हैं कि सामग्री के दृष्टिकोण से, स्टील और अलौह धातुओं जैसी अन्य सामग्रियों की तरह प्लास्टिक की अच्छी पुनर्चक्रण क्षमता है। अपशिष्ट प्लास्टिक का कारगर ढंग से पुनर्चक्रण और निपटान किया जाने के बाद प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या नहीं होगी। कई सालों के प्रयास के बाद चीन ने पूरे समाज में प्लास्टिक पुनर्चक्रण प्रणाली और दुनिया में सबसे पूर्ण प्लास्टिक सर्कुलर आर्थिक विकास व्यवस्था स्थापित की।
स्वास्थ्य पर पड़ता है गंभीर प्रभाव
समुद्री भोजन के जरिए हमारी खाद्य शृंखला में प्रवेश होने के अलावा, लोग सांस लेने से माइक्रोप्लास्टिक्स अंदर ले सकते हैं, पानी से ग्रहण कर सकते हैं और त्वचा के माध्यम से अवशोषित कर सकते हैं। मानव शरीर के हर अंग में, यहां तक कि नवजात शिशुओं की गर्भनाल में भी माइक्रोप्लास्टिक्स पाए गए हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण आयोग ने चेतावनी दी है कि माइक्रोप्लास्टिक्स में रसायनों का स्वास्थ्य पर, विशेषकर महिलाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
सूचकांक में भारत आखिरी पायदान पर
एक रिपोर्ट पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक-2022 में 180 देशों की रैंकिं ग दी गई है। इसमें भारत सबसे आखिरी पायदान यानी कि 180वें नंबर पर है। इसका मतलब है कि पर्यावरण में सुधार के मामले में हम पश्चिमी देश तो छोड़िए अपने पड़ोसियों से भी पीछे हैं। रिपोर्ट में शामिल सूची में पाकिस्तान को 176वें नंबर पर रखा गया है। वहीं बांग्लादेश 177वें स्थान पर है। श्रीलंका की रैंकिं ग हमसे काफी बेहतर है, उसे 132 रैंक दिया गया है। नेपाल का रैंक 162 है और अफगानिस्तान को 81वां स्थान दिया गया है। अमेरिका स्थित येल और कोलंबिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मिलकर ये रिपोर्ट तैयार की है, इसमें भारी-भरकम आंकड़ों के आधार पर वैश्विक स्तर का पर्यावरण संबंधी लेखा-जोखा पेश किया गया है।
जी-7 की बैठक में भी उठी आवाज
हाल ही में जी-7 देशों के मंत्रियों की बैठक में भी जलवायु और पर्यावरण के मुद्दे पर प्रमुखता से बात हुई। इस बैठक में भारत ने कहा कि 2050 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए विकसित देशों को अपने उत्सर्जन में कमी के प्रयासों को बढ़ाने की आवश्यकता होगी। कें द्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने जी-7 मंत्रियों की बैठक के पूर्ण सत्र में कहा कि इससे भारत जैसे विकासशील देशों के लिए अपने लोगों की जरूरतों को पूरा करने के अवसर पैदा होंगे। ऐसा होने से जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण क्षरण और प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ लचीलेपन की स्थिति बनेगी।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने और पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए कार्यान्वयन, वित्त और प्रौद्योगिकी के पर्याप्त साधनों तक पहुंच की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन पर पहुंचने के वैश्विक लक्ष्य को हासिल करने के लिए विकसित देशों की ओर से उत्सर्जन में कमी करने की आवश्यकता है। यह भारत जैसे देशों को विकास की राहत पर आगे बढ़ने में मदद करेगा और जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण क्षरण और प्रदषण के प्रभावों से बचाएगा।
ये खबर भी पढ़ें:-विश्व पर्यावरण दिवस विशेष: रामदेवरा के ब्रीडिंग सेंटर में पहली बार 27 गोडावण