नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज भोपाल गैस त्रासदी ( Bhopal Gas Tragedy ) के पीड़ितों के लिए मुआवजा बढ़ाने को लेकर केंद्र की उपचारात्मक याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अब केंद्र से कहा है कि वह आरबीआई ( RBI ) के पास ही पड़े 50 करोड़ रुपए की राशि का उपयोग करें और लंबित दावों को पूरा करने के लिए पीड़ितों को दें। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से केंद्र सरकार के साथ ही मुआवजे में बढ़ोतरी को लेकर लंबे समय से इंतजार कर रहे इस त्रासदी के पीड़ितों को भी झटका लगा है।
UCC पर नहीं डाल सकते ज्यादा मुआवजे का बोझ
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अब अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन ( Union Carbide Corporation ) पर और ज्यादा हम मुआवजे का बोझ नहीं डाल सकते हालांकि हम इस बात से निराश हैं कि इस पर पहले ध्यान क्यों नहीं दिया गया जब साल 1989 में यूनियन कार्बाइड और केंद्र सरकार के बीच में समझौता हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक पीड़ितों को जितना नुकसान हुआ था उसके अपेक्षा 6 गुना ज्यादा मुआवजा दिया जा चुका है।
इसलिए अब केंद्र सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास जो 50 करोड़ रुपए हैं उसका इस्तेमाल करें और लंबित मामलों का निपटान करें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर हम अब इस केस को दोबारा खोलते हैं तो इससे पीड़ितों के लिए मुश्किल और ज्यादा बढ़ेगी जबकि को फायदा ही पहुंचेगा।
1989 में केंद्र और UCC के बीच हुआ था समझौता
दरअसल 1989 में केंद्र सरकार और अमेरिका की कंपनी यूसीसी यानी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के बीच समझौता हुआ था, जिसके तहत कंपनी से मुआवजे ( Bhopal Gas Tragedy ) के रूप में 470 मिलियन डॉलर के अलावा यूसीसी के उत्तराधिकारी फर्मों से 7844 करोड रुपए और ज्यादा देने की बात कही गई थी। केंद्र सरकार इसी अतिरिक्त राशि को चाहता है। सरकार का कहना है कि 1989 में जो समझौता हुआ उस समय इस बात का ठीक से आकलन नहीं किया गया कि गैस त्रासदी से जो नुकसान हुआ है उससे मानव और पर्यावरण को कितनी ज्यादा क्षति पहुंची है यह मुआवजा क्षति के मुकाबले बेहद कम है।
जहरीली गैस से गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोगों का इलाज कैसे ?
केंद्र सरकार ने यह याचिका इसलिए भी दायर की थी क्योंकि त्रासदी ( Bhopal Gas Tragedy ) के बाद जो लोग जिंदा बच गए थे वह जहरीली गैस के रिसाव के कारण कई गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो चुके हैं। जिनका अभी तक इलाज जारी है कुछ ने तो पहले ही दम तोड़ दिया है, जबकि कुछ का इलाज किया जा रहा है जिसमें काफी ज्यादा खर्चे की जरूरत आन पड़ी है। इसलिए लंबे समय से इस मुआवजे और चिकित्सा उपचार का संघर्ष कर रहे पीड़ितों के लिए यह एक झटके के समान ही है। बता दें कि केंद्र सरकार ने इस याचिका को दिसंबर 2010 में दायर किया था।
समझौते के वक्त नहीं किया गया क्षति का सही आंकलन
इससे पहले जब 12 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी तब यूसीसी के उत्तराधिकारी फर्मों ने कोर्ट को यह बताया था कि जिस वक्त पर समझौता हुआ उस वक्त भारत सरकार ने यह हमें नहीं बताया था कि जो मुआवजा दिया जा रहा है वह अपर्याप्त है। अब इसके बाद रुपए की बढ़ोतरी भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए अब मुआवजे की मांग का आधार नहीं बन सकता।
बता दें कि कई मीडिया रिपोर्ट्स और जर्नल्स में यह प्रकाशित हो चुका है कि 1989 के दौरान जब यह समझौता हुआ तब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि इस हादसे में सिर्फ 5295 लोग ही मारे गए हैं लेकिन आपदा के बाद जो लोग बीमारियों से मरते रहे हैं उनका आंकड़ा 25000 से भी ज्यादा पहुंच चुका है।