इस समय श्रीलंका विकट हालातों से गुजर रहा है। राष्ट्रपति के देश छोड़ने के बाद वहां की जनता ने उनके आवास पर कब्जा कर लिया। इस देश की जनता आसमान छूती महंगाई से त्रस्त होकर प्रदर्शनकारी बन गई। श्रीलंका में खाने-पीने की घोर किल्लत हो गई है। जो अनाज-खाद्य है भी उनके दाम इतने ज्यादा है कि, गरीब या आम जनता ही नहीं, संपन्न लोगों को भी ये लेने में कई बार सोचना पड़ेगा। आर्थिक मामलों के विश्लेषक श्रीलंका के इन हालातों को देश की सत्ता की नीतियों को कसूरवार मानते हैं। इसके अलावा कुछ सत्ता में परिवारवाद को भी इसका बड़ा कारण मानते हैं।
किन आर्थिक नीतियों ने श्रीलंका की ये हालत की
श्रीलंका में इस समय त्राहिमाम के हालात है। वहां महंगाई दर 80% तक पहुंचने वाली है। जो कि बेहद ज्यादा है। खाने-पीने की चीजें, दवाइयां अब आम या खास लोगों की पहुंच से दूर हो गए हैं। इन हालातों में सबसे बड़ी जो मुख्य वजह निकलकर सामने आ रही है उसमें यह है कि यहां की सरकार ने रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करने पर कड़ा प्रतिबंध लगा दिया था और प्राकृतिक खेती पर जोर दिया था। इससे देश का कुल कृषि उत्पादन घट गया। यहीं नहीं खेती पर आधारित श्रीलंका की 27 प्रतिशत जनता तंगहाल हो गई। श्रीलंका का राजकोष और विदेशी मुद्रा भंडार खाली होता चला गया, इसके बावजूद वहां की सरकार ने जनता से वोट बटोरने के लिए लोक-लुभावन घोषणाएं की। तमाम करों में कई गुना कटौती कर दी। इस फैसले से देश की 10 लाख जनसंख्या टैक्स देने से मुक्त हो गई। जिससे सरकार के ‘कंगाल’ खजाने का पूरी तरह सफाया हो गया।
कर्ज के तले दबा है श्रीलंका
श्रीलंका पर विदेशों खासकर चीन का बहुत बड़ा कर्ज है। और वह कर्ज के तल दबता चला गया। कई आर्थिक सर्वे में भी यह चेतावनी श्रीलंका को दी गई थी। लेकिन सत्ता पर आसीन नीतिनियंताओं ने इन चेतावनियों को दरकिनार कर अपने तुगलकी फरमान जनता पर थोपे। श्रीलंका कर्ज पर कर्ज लिए जा रहा था, औऱ महिनों तक उसका ब्याज सहित भुगतान उसी कंगाल खजाने से करता जा रहा था। राजपक्षे परिवार ने सिर्फ देश की नीतियों को बनाने में गलतियां की बल्कि विदेश नीति में भी उसने सिर्फ चीन को करीबी बनाया। चीन ने श्रीलंका से दोस्ती भारी-भरकम कर्ज देकर शुरू की। पहले से ही कंगाल श्रीलंका पर अब पहले से 4 गुना ज्यादा कर्ज हो गया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक श्रीलंका पर इस समय 51 लाख अरब रुपए का कर्ज है।
भारत से बढ़ाई दूरी, चीन से बनाई दोस्ती
एक वक्त ऐसा भी था जब श्रीलंका की अर्थव्यव्स्था दक्षिण एशिया में बेहतर स्थिति में थी। लेकिन जब से उसने चीन के साथ अपनी ‘दोस्ती’ शुरू की, तब से श्रीलंका के ये हालात बनने शुरू हुए। चीन के भारी-भरकम कर्ज से वहां की सरकार ने मूलभूल ढांचे को खड़ा करने का जो सपना देखा था, वो अब चकनाचूर होता दिखाई दे रहा है। कुछ विश्लेषक ये भी बताते हैं कि श्रीलंका ने जानबूझकर चीन से करीबियां बढ़ाई, ताकि वे भारत जैसे लोकतांत्रिक शक्ति के कथित दबाव से मुक्त हो सके। इधर चीन भी अपनी पैठ बढ़ाना चाहता है ताकि भारत के पड़ोसियों के घरों में उसका दबदबा बना रहे, जो भारत के लिए वास्तव में आंतरिक सुरक्षा के संदर्भ में चिंता का विषय़ है। चीन अपने इस पैंतरे से श्रीलंका का संप्रभुता को खत्म करने की फिराक में था। यहां तक कि राजपक्षे परिवार को चीन पर इतना भरोसा था कि संकट के समय में वो उसकी पूरी मदद करेगा। लेकिन जब वास्तव में संकट आय़ा तो चीन ने कर्ज माफी और वित्तीय सहायता देने से इनकार कर दिया। और अब श्रीलंका के हालात सबके सामने हैं।
परिवार की राजनीति ने श्रीलंका की नैया डुबोई
आर्थिक मोर्चे पर विफल इस सत्ता पर परिवारवाद हावी रहा। जो देश की ये हालात करने के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। श्रीलंका की सरकार में शायद ही कोई ऐसा मंत्रालय या विभाग बचा हो जिसमें राजपक्षे परिवार का कोई सदस्य ना हो। वित्त, कृषि, खेल, युवा जैसे विभागों पर भी इसी एक परिवार का एकछत्र राज है। एक वक्त ऐसा था कि देश के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को टर्मिनेटर की संज्ञा मिली हुई थी। तो वहीं पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को द चीफ कहा जाता था। यही नहीं वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे को मिस्टर टेन परसेंट का खिताब मिला हुआ था। ये सारे उपनाम के अर्थ इस सरकार के कारनामे से बिल्कुल उलट हैं।
जनता के डर से पहले राष्ट्रपति भागे, अब उनके भाई को रोका
प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति के आवास पर कब्जा कर लिया है। राष्ट्रपति गोटबाया देश छोड़कर भाग गए हैं। वहीं आज उनके छोटे भाई औऱ वित्त मंत्री विदेश भागने की फिराक में थे, जिन्हें एअरपोर्ट के कर्मचारियों ने पकड़ लिया। जानकारी के मुताबिक बासिल जैसे ही कोलंबो एअरपोर्ट पर पहुंचे, तो वहां के इमीग्रेशन स्टाफ और यूनियन ने काम काज बंद कर दिया और नारेबाजी कर जमकर विरोध प्रदर्शन किया।