बर्लिन। हिरण के दांत से बने एक पेंडेंट पर एक नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया, जिससे वैज्ञानिकों ने पेंडेंट से उसे पहनने वाले का डीएनए निकाल लिया। वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया कि पेंडेंट करीब 20,000 साल पहले साइबेरिया में रहने वाली एक महिला का था। जर्मनी में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के मानवविज्ञानियों ने पर्यावरणीय डीएनए पाने के लिए प्राचीन कलाकृतियों की नुकसान पहुंचाए बिना, सुरक्षित रूप से उनकी जांच करने का एक तरीका खोजा। पेंडेंट द्वारा पसीने और स्किन सेल्स के साथ एब्जॉर्व किए गए जीन्स से विशेषज्ञों ने यह पता लगा लिया कि वह महिला पैलियोलिथिक समय की थी और उत्तरी यरेूशियाई लोगों के एक प्राचीन समूह से संबंध रखती थी।
कैसे काम करती है ये तकनीक
इस तकनीक में दांत या हड्डी से बनी कलाकृतियों को खास तरह के केमिकल्स का इस्तेमाल करके पेनिट्रेट किया जाता है। इससे उसके अंदर गए डीएनए फ्रैग्मेंट्स बाहर आ जाते हैं। मानवविज्ञानी ऐलेना एस्सेल कहती हैं कि 90 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर कलाकृतियों को केमिकल से वॉश करने के बाद, उस पानी में हमें डीएनए मिलते हैं। एस्सेल कहती हैं कि पेंडेंट से हमें जितना मानव डीएनए मिला वह असाधारण था। बिल्कुल ऐसा जैसे हमें इंसान का ही डीएनए सेंपल मिल गया हो।
क्रोमोसोम से निकाली गई हिस्ट्री मानव
डीएनए में एक्स क्रोमोसोम की संख्या से पता चला कि वह एक महिला थी। समकालीन लोगों के रिकॉर्ड से उसे मैच करने पर पाया गया कि वह करीब 17,000 और 24,000 साल पहले साइबेरिया के पूर्व में रहने वाली दो आबादी से मेल खाते थे। आधुनिक समय की आबादी से तुलना की जाए तो ये जेनेटिक मटेरियल मूल अमेरिकियों से सबसे ज्यादा मिलता है। उम्मीद की जा रही है ईडीएनए एनालिसिस से, अतीत की और भी अनदेखी तस्वीरें सामने आएंगी।