वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर इंसानों के बसने का सपना देख रहे हैं। एक नए शोध से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से बर्बाद होने से पहले मंगल ग्रह पर प्राचीन जीवन ‘इंसानों के रहने योग्य’ था। माना जाता है कि सूक्ष्म जीवों का मंगल पर जीवन ग्रह के वातावरण के बदलने के कारण समाप्त हो गया।
अध्ययन में पाया गया कि पृथ्वी पर जीवन के पनपने और मंगल पर खत्म होने का कारण दोनों ग्रहों की गैस संरचना और सूर्य से उनकी दूरी में अंतर था। इसलिए वहां पाया जाने वाला जीवन उसके वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसों पर ज्यादा निर्भर था, जो तापमान को जीवन योग्य रखती थीं, लेकिन सूक्ष्य जीवों ने अपने ग्रह को खुद ही बर्बाद कर दिया।
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57 डिग्री सेल्सियस तक गिरा तापमान
समय के साथ मंगल इतना ज्यादा ठंडा हो गया कि यह ग्रह निर्जन हो गया। जब मंगल पर जीवन पनप रहा था तब इसका औसत तापमान 10 से 20 डिग्री सेल्सियस रहा होगा, लेकिन जैसे-जैसे सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ती गई, तापमान माइनस -57 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया, जिसके चलते उन्हें ग्रह की गहराई में मौजूद गर्म परत की ओर भागना पड़ा।
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जीवन प्रकट और विलुप्त हो जाता है
इस अध्ययन के मुख्य लेखक बोरिस सौतेरे ने कहा कि जीवन के तत्व ब्रह्मांड में हर जगह मौजूद हैं, लेकिन ग्रह की सतह पर रहने योग्य परिस्थितियों में जीवन की अक्षमता इसे तेजी से विलुप्त कर देती है। हमारा प्रयोग इसे एक कदम और आगे ले जाता है। अमेरिका और चीन के अलावा प्राइवेट कंपनी स्पेसएक्स भी मंगल पर इंसानों को भेजने का सपना देख रही हैं, जिसके मालिक दुनिया के सबसे अमीर शख्स एलन मस्क हैं।