(गोपाल शर्मा) : जयपुर। आज मौसम का पूर्वानुमान लगाने में तकनीक मददगार बन रही है। सेटेलाइट व अन्य उपकरणों के माध्यम से पता लगा लिया जाता है कि आगामी मौमस कैसा रहेगा, लेकिन इन सबके बीच अनेक बार देखने में आता है कि मौसम के पूर्वानुमान को लेकर की गई भविष्यवाणी फेल हो जाती है। वहीं, प्राचीनकाल में जब इतने संसाधन नहीं थे तब केवल प्रकृति के लक्षणों के आधार पर मौसम का पूर्वानुमान लगाया जाता था, जो कि आज भी प्रांसगिक है। प्रकृति में जो लक्षण दिखाई देते हैं उनके आधार पर बारिश का सटीक अंदाजा लगाया जा सकता है।
इसको लेकर एक तरफ जहां शास्त्रों में कई प्राचीन विधियां उपलब्ध हैं, वहीं अनेक कवियों ने अपनी रचनाओं में प्रकृति के उन लक्षणों का उल्लेख किया है, जिनसे अनुमान लगाया जा सकता है कि बारिश कब और कितनी होगी। पीपलेश्वर महादेव मंदिर के महंत एवं ज्योतिषी पं. केदारनाथ दाधीच ने बताया कि भारतीय धर्मशास्त्रों में अनेक पद्धतियां बताई गई हैं, जिनसे कब, कितनी बारिश होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
दोहों में वर्षा के लक्षण
अम्बा झोर चले पुरवाई, तब जानों वर्षा ऋतु आई: इस दोहे में बताया गया है कि पूर्वदिशा से तेज हवाएं चलने लगे तो समझो वर्षा ऋतु शुरू होने वाली है।
पावस आवत देखकर कोयल साधी मौन, अब दादुर वक्ता भए हमको पूछत कौन: इस दोहे में बताया गया है कि जब वर्षाकाल नजदीक आता है तो काेयल मौन साध लेती है। इस समय मेंढकों की टर्र-टर्र शुरू हो जाती है।
कलशे पानी गरम होय, चिड़ी जो न्हावे धूर, चींटी ले अंडा चढ़े तब हो वर्षा भरपूर: इस दोहे में बताया गया है कि जब कलश में पानी ठंडा नही हो, चिड़िया धूल में नहाती दिखे। चीटिंयों का झूंड अंडा लेकर ऊपर की तरफ जाता दिखाई दे तब भारी वर्षा होने का संकेत मिलता है।
पेड़-पौधे और जीवजंतु भी देते हैं संकेत
पेड़-पौधे और जीव-जंतुओं में होने वाले परिवर्तनों से भी मौसम का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। इनसे भी ऐसे संकेत मिलते हैं जो सटीक अनुमान बताते हैं। किसी भी ऋतु के आगमन का प्रकृति में भी परिवर्तन दिखाई देता है। ऐसे परिवर्तन वर्षा ऋतु शुरू होने पर भी दिखाई देते हैं। जैसे वर्षाकाल शुरू होने वाला होता है तो गाय के गोबर में कीड़े पड़ जाते हैं। गोवंश पर मक्खियों के झंडु दिखाई देने लगते हैं। करूं जे और कै र पकते हैं। गृहिणियों को भी वर्षा का पूर्वानुमान हो जाता है। जब वर्षाकाल शुरू होने वाला हो तो आटा कितना भी टाइट गूंथा जाए वह नरम पड़ जाता है।
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