Tanot Mata Temple in Jodhpur : जोधपुर। शारदीय नवरात्रि का आज दूसरा दिन है। इस दिन मां दुर्गा की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। लेकिन आज हम आपको माता के एक ऐसी मंदिर के बारे में बनाते जा रहे हैं, जिसकी आस्था के आगे विज्ञान भी हैरान है। जी हां, राजस्थान के जोधपुर जिले में एक ऐसा मंदिर भी है जहां 60 साल से मंदिर के दो खंभे हवा में लटके हुए है।
तनोट माता का ये चमत्कारी मंदिर जोधपुर शहर से करीब 20 किमी दूर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण जैसलमेर के मुख्य तनोट माता मंदिर की तर्ज पर किया गया है। कहा जाता है कि मंदिर में माता के विराजमान होने को लेकर एक भक्त में मन में शंका हुई तो मंदिर के दो खंभे जमीन से ऊपर उठ गए। खास बात ये है कि 60 साल बीत जाने के बाद भी मंदिर में ये चमत्कार बरकार है और यही वजह है कि ये मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।
क्यों हुआ ये चमत्कार?
मंदिर के निर्माण के बाद भक्त शिवराम नत्थू टाक को शंका हुई कि माता इस मंदिर में विराजमान हुई है या नहीं? इस पर माता भक्त के सपने में आई और फिर भक्त ने सपने में जो देखा, वो चमत्कार मंदिर भी दिखाई दिया। सुबह जब भक्त मंदिर पहुंचा तो देखा कि मंदिर के आठ पिलरों में से दो हवा में झूल रहे है।
भक्तों की उम्मीद का ठिकाना
जोधपुर का तनोट माता मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। मान्यता है कि यह माता की मौजूदगी का संकेत है। यहां आते ही भक्तों को सुकून मिलता है और उनकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है। मान्यता है कि जो श्रद्धालु जैसलमेर में तनोट माता के दर्शन को नहीं जा पाते हैं, वे यहां आकर माता की पूजा-अर्चना करते हैं। जिससे उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
माता के इस चमत्कार से विज्ञान भी हैरान
तनोट माता के मंदिर में कुल 8 खंभे हैं, जिनमें से दो हवा में झूल रहे है। दोनों खंभे माता के गर्भगृह के सामने हैं। कई भक्त इस खंभे के नीचे से कपड़ा निकालकर अपने घर में रखते हैं। लेकिन, इस चमत्कार से वैज्ञानिक भी हैरान है। यहां पहले भी कई इंजीनियर माता का ये चमत्कार देखकर गए। लेकिन, अब तक ये रहस्य ही बना हुआ है कि आखिर मंदिर के दो पिलर हवा में कैसे उठे हुए है?
क्यों करवाया था मंदिर निर्माण?
जोधपुर में तनोट राय माता का मंदिर का निर्माण ठेकेदार शिवराम नत्थू टाक ने करवाया था। शिवराम नत्थू टाक पीडब्लयूडी में ए क्लास कांट्रैक्टर थे और तनोट माता के भक्त थे। टाक को साल 1962-63 में भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर स्थित तनोट माता मंदिर के लिए जैसलमेर से तनोट तक 100 किमी सड़क बनाने का ठेका मिला था।
लेकिन, सड़क निर्माण में इनको काफी घाटा हुआ और कर्जे में डूब गए। उन्होंने जैसलमेर की तनोट माता से मन्नत मांगी। जब उनकी मन्नत पूरी हुई तो उन्होंने साल 1971 में एक फॉर्म हाउस खरीदा और वहां पर मंदिर का निर्माण करवाया। उस वक्त जैसलमेर स्थित तनोट माता मंदिर से ज्योत लाकर यहां माता की प्रतिमा स्थापित की गई।
20 साल से उनकी बेटी देख रही है मंदिर की व्यवस्थाएं
मंदिर के पुजारी ने बताया कि मैं करीब 22 साल से पूजा-पाठ कर रहा हूं। जब से यहां आया तभी से दो पिलरों को हवा में देखा है। ये माता का चमत्कार ही है। शिवराम टाक ने यहां शिव मंदिर की भी स्थापना की थी। साथ ही सोने का कलश भी चढ़ाया था। लेकिन, टाक का 1994 में निधन हो गया था।
इसके बाद उनकी पत्नी ने मंदिर की व्यवस्थाएं देखी और साल 2003 में उनके निधन के बाद से अब तक इनकी बेटी श्यामा गहलोत मंदिर की व्यवस्थाएं देख रही है। 2017 में इस मंदिर में आग लग जाने से मुख्य प्रतिमा खंडित हो गई थी। बाद में उनके परिवार के लोगों ने नई प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करवाई थी। बता दे टाक वही भामाशाह है, जिन्होनें साल 1960 में मगरा पूंजला का स्कूल और मंडोर का सैटेलाइट हॉस्पिटल सरकार को समर्पित किया था।