Rajasthan Election 2023: आपातकाल में 19 माह कारागृह में रहे एक दिग्गज किसान नेता की कथित राजनीतिक भूल ने जहां उन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने की संभावना से वंचित रखा, वहीं एक प्रधानमंत्री की मंशा भी पूरी नहीं हो सकी। इस कहानी की तह में जाने से पहले हमें आपातकाल के अंतिम चरण की तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखना होगा। तत्कालीन रक्षा मंत्री चौधरी बंशीलाल ने भरतपुर के प्रमुख नेता एवं राज्यसभा सदस्य नत्थीसिंह को बुलाकर लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए कहा।
चौधरी का तर्क था कि अमेरिका में जिम्मी कार्टर राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत गये हैं इसलिए भारत में कांग्रेस की विजय की संभावना को देखते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आपातकाल समाप्त कर लोकसभा चुनाव कराने जा रही हैं। नत्थीसिंह ने उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चरणसिंह से उनके बड़े दामाद गुरुदत्त सोलंकी के माध्यम से मुलाकात में जब यह बात बताई तो उन्हें आश्चर्य हुआ।
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चरणसिंह ने आपातकाल की ज्यादतियों के बारे में चर्चा की और नत्थीसिंह को उलाहना दिया कि आप जैसे लोग कांग्रेस में बैठे-बैठे यह सब कैसे सहन कर रहे हो। लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ विपक्ष के गिरफ्तार नेताओं की रिहाई हो गई। इधर तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जगजीवनराम, हेमवतीनंदन बहुगुणा कांग्रेस छोड़ने से राजनीतिक परिदृश्य बदल गया। बकौल नत्थीसिंह बंसीलाल जी ने उन्हें बुलाकर कहा कि एक पार्टी के सभी पुराने लोगों को साथ रखना जरूरी है, अब भरतपुर से राजबहादुर को चुनाव लड़ाया जाएगा जबकि युवा नेता संजय गांधी की नाराजगी के चलते केबीनेट मंत्री पद से त्यागपत्र लेने के पश्चात उन्हें पंजाब का राज्यपाल बनाने की चर्चाथी।
अब इस कहानी के निर्णायक मोड़ पर आते हैं। वर्ष 1977 में लोकसभा चुनाव हो गए थे और राज्यों में कांग्रेस शासित राज्य सरकारों की बर्खास्तगी के पश्चात नए चुनाव कराने की प्रक्रिया आरम्भ हो गई थी। लोकसभा में जनता पार्टी बहुमत में थी और राज्यसभा में अल्पमत में थी। चौधरी चरणसिंह किसानों के हित में काम करने के लिए और समाजवादी नेता मधु लिमये, सुरेन्द्रमोहन अपने पुराने साथीनत्थीसिंह को जनता पार्टी में शामिल होकर विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए दवाब बना रहे थे।
चौधरी चरणसिंह चाहते थे जाट मुख्यमंत्री
तो अब इस कहानी का अंतिम परिदृश्य राजस्थान विधानसभा के चुनाव होने से कुछ पहले से जुड़ता है। बिडम्बना देखिए कि चौधरी कु म्भाराम जैसा खांटी किसान नेता 19 माह जेल में रहने के बावजूद अचानक कांग्स में रे शामिल होता है। नत्थीसिंह ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन वह नहीं माने। उनका आकलन यही था कि चुनाव में कांग्रेस को सफलता मिलेगी। परिणाम विपरीत
रहा। जनता पार्टी कार्यालय में जबरन घुसने से चौधरी कुम्भाराम आर्य की छवि धूमिल हुई। इधर भैरोंसिह शेखावत मुख्यमंत्री पद संभाल चुके थे।
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बकौल नत्थीसिंह चरणसिंह दुखी मन से कहा- मैं इस कुम्भाराम को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाना चाहता था, क्योंकि पूरे देश में जाटों की सर्वाधिक आबादी राजस्थान में ही है लेकिन उनमें से किसी को भी अभी तक मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला। कुम्भाराम जनाधार वाले नेता थे। अबके उनका नम्बर जरूर आता लेकिन आपातकाल में जेल में रहने के बाद वे कांग्रेस में भाग गए और अब उसकी हार के बाद वह इस तरह का अनुचित नाटक कर रहे हैं।” और एक जननेता की राजनीतिक भूल इतिहास में दर्ज हो गई।
परिवर्तित राजनीतिक परिस्थितियों में राज्यसभा के चार सदस्यों ने कांग्रेस पार्टी छोड़ जनता पार्टी में सम्मिलित होने को निर्णय लिया। इनमें तीन आन्ध्रप्रदेश और चौथे राजस्थान से नत्थीसिंह थे। इंदिरा की प्रतिक्रिया थी कि- नत्थीसिंह ने तो जाति आधार पर चौधरी चरणसिंह के प्रभाव में कांग्रेस छोड़ी है। दिलचस्प तथ्य यह है कि इंदिरा राज्यसभा के तत्कालीन सदस्य राजनारायण के मुकाबले अच्छे वक्ता के रूप में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से कांग्रेस में शामिल नेताओं को राज्यसभा में लाने की जुगाड़ में थी। तब नत्थीसिंह का नाम आया और रामनिवास मिर्धा ने भी इंदिरा को बताया था कि वह विधानसभा में दमदारी से बोलते हैं।