गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार : भारत की राजनीति में रामजन्म भूमि से जुड़ा मुद्दा अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है जिसने चुनाव विशेषकर लोकसभा चुनाव को प्रभावित किया है। पूर्व उप प्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ मंदिर गुजरात से अयोध्या तक की रथयात्रा, उनकी गिरफ्तारी, उत्तर प्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के कार्यकाल में कारसेवकों पर गोली तथा कल्याणसिंह के शासनकाल में 6 दिसम्बर 1992 से जुड़े घटनाक्रम की कहानी लम्बी है।
लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शासनकाल में राम जन्म भूमि मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम से जुड़ा प्रसंग राजस्थान के पाठकों के लिए रुचिकर होगा। तब केन्द्रीय गृहमंत्री बूटासिंह जालोर-सिरोही संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी थे। गृहमंत्री के रूप में राम जन्म भूमि मंदिर शिलान्यास प्रकरण पर उनका बयान दूरदर्शन पर प्रसारित किया जाना था। दिल्ली से दूरदर्शन की टीम छोटेविमान से सिरोही हवाई पट्टी पर उतरी थी।
बूटासिंह चुनावी सभा छोड़कर सर्किट हाउस पहुंचे। उन दिनों मैं जोधपुर में कार्यरत था और जालोरसिरोही चुनाव के कवरेज के लिए सिरोही में था। सर्किट हाउस के एक हॉल को स्टूडियो के रूप में काम में लिया गया। संयोगवश मैं वहीं मौजूद था। बूटासिंह ने लिखित बयान सहजता से पढ़ लिया। लेकिन हिन्दी भाषा के बयान में कुछ कठिन शब्द पढ़ने में उन्हें परेशानी हो रही थी। इधर तेज लाइट से पसीने से तरबतर बूटासिंह दिक्कत महसूस कर रहे थे। दो-तीन बार बयान पढ़ने के मध्य रुकावट से दूरदर्शन टीम भी असहज हो गई।
मैने टीम के एक अधिकारी को कुछ अन्य शब्द जोड़ने का सुझाव दिया। हम इसमें परिवर्तन नहीं कर सकते, यह उत्तर सुनकर मैनें पूछा कि क्या गृहमत्ं री फेरबदल कर सकते हैं। इस पर सकारात्मक उत्तर मिला तो मैने बुटासिंह को बयान में हिन्दी के सरल शब्द जोड़ने का सुझाव दिया और इस तरह बयान रिकाॅर्ड हो गया। बूटा सिंह ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए मुझे अगली सुबह साक्षात्कार का समय दिया। सर्किट हाउस में ही बूटासिंह ने गुरु ग्रंथ साहब का पाठ रखवाया हुआ था।
भोग प्रसाद के बाद मेरी उनसे बात हुई। मेरा कहना था कि आपने चुनाव सभाओं में राम जन्म भूमि से जुड़े मुद् को नए दे दृष्टिकोण से उठाया है। इस पर उन्होंने नई जानकारी दी। साक्षात्कार का समाचार जलते दीप में प्रमुखता से छपा। बाद में पता चला कि बूटासिंह के चुनाव प्रचार में उक्त समाचार के पोस्टर छपवाए गए। चूंकि मुझे जालोर जाना था। बूटासिंह के सुझाव पर मैं उनके पुत्र बबली के साथ एक वैन में रवाना हो गया।
जालोर के रास्ते एक जगह वैन रुकने पर बबली ने पीछे नोटों से भरा बैग उठाया और कार्यकर्ता को थमा दिया। पीछे नोटों से भरे बैग दखे कर तो मैं दंग रह गया। जालोर पहुंचने तक तो सारा खजाना खत्म हो गया। पर यह यात्रा सदा याद रहेगी कि चुनाव में किस तरह पानी की तरह पैसा बहाया जाता है।
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