Narpat Singh Rajpurohit: ‘रात में जब भी कोई बच्चा रोता है तो मां कहती है बेटे सौ जा वरना गबर आ जाएगा।’ फिल्म शौले में अभिनेता अमजद खान का यह डायलॉग राजस्थान के वीर सपूत नरपत सिंह राजपुरोहित पर बिल्कुल स्टीक बैठता है। शौले के गबर की तरह ही नरपत का नाम सुरकर नक्सलवादी या तो सरेंडर कर देते हैं या वो इलाका छोड़कर भाग जाते हैं। राजस्थान के पश्चिम जिले बाड़मेर के वीर सपूत नरपत सिंह राजपुरोहित को गणतंत्र दिवस पर दो-दो राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है।
एसएसबी डिप्टी कमांडेंट के पद पर तैनात राजपुरोहित सिंह वो वीर है जिसका नाम सुनकर नक्सलवादी सरेंडर करने को मजबूर हो जाते हैं। दरअसल, राजपुरोहित का अब तक का रिकॉर्ड रहा है कि नक्सलियों से लोहा लेकर वीरता से उन्हें मार गिराता है। नरपत सिंह राजपुरोहित के परिवार को पहले भी अवॉर्ड्स सम्मानित किया जा चुका है। बता दें कि नरपत सिंह के दादा ऐसे पहले सिविलियन थे जिन्हें सरकार ने शौर्य चक्र से सम्मानित किया था।
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कुख्यात नक्सली से मुठभेड़ के लिए मिला अवॉर्ड
नरपत सिंह राजपुरोहित की जुलाई, 2020 में कुख्यात नक्सली राजन से मुठभेड़ हुई थी जिसके लिए उन्हें राष्ट्रपति वीरता पुस्कार दिया जा रहा है। नरपत सिंह पर साल 2022 में हिंदी फिल्म ‘चक्रव्यूह’ बन चुकी है और फरवरी, 2022 में नरपत सिंह ने अपने साथियों के साथ नक्सलियों के साथ लंबी लड़ाई लड़ी थी और इसमें कई नक्सलियों को ढेर कर दिया था। बाकी बचे नक्सलियों ने नरपत सिंह के डर के चलते खुद को सरेंडर कर दिया। नरपत सिंह राजपुरोहित को दो खतरनाक ऑपरेशन में बहादुरी से लड़ने और नक्सलियों से लोहा लेने के लिए राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार से नवाजा जा रहा है।
पहले भी मिला था वीरता पुरस्कार
नरपत सिंह राजपुरोहित ने साल 2018 में 28 जुलाई को अपने 10 साथियों के साथ एक ऑपरेशन को लीड किया था। इस ऑपरेशन में 2007 से सक्रिय कुख्यात और खतरनाक नक्सली दसनाथ देहरी और अनुज पहाड़िया को ढेर किया था। नरपत सिंह के नेतृत्व में उनकी टीम 20 नक्सलियों से बाहदूरी से मुकाबला कर चुकी है।
झारखंड में तैनात हैं नरपत सिंह
नरपत सिंह राजपुरोहित फिलहाल झारखंड के नक्सलवाद से प्रभावित इलाकों में तैनात हैं। कुछ समय पहले उनके डर से आठ नक्सलियों ने सरेंडर कर दिया था। इतना ही नरपत सिंह के खौफ के चलते माओवादी भी समपर्ण कर रहे हैं या फिर वो इलाका छोड़ देते हैं जहां नरपत सिंह राजपुरोहित तैनात रहते हैं।
दादा से प्रेरित होकर चुनी थी देश सेवा
नरपत सिंह राजपुरोहित बाड़मेर के भारत-पाकिस्तान की सीमा के पास गांव ढोक के रहने वाले हैं। बात भारत-पाकिस्तान के बीच हुई 1971 की लड़ाकी है जब नरपत सिंह राजरोहित के गांव से 10 लोग भारतीय सेवा को रसद पहुंचाने साथ गए थे। इस दौरान नरपत सिंह के दादा सेना के साथ करीब 3 महीने तक रूके थे। युद्ध समाप्त होने के बाद नरपत सिंह राजपुरोहित के गांव के सरपंच चतुर सिंह ढोंक को शौर्य चक्र दिया गया था। चतुर सिंह और उनके दादा के किस्सों से प्रेरित होकर ही नरपत सिंह राजपुरोहित ने सेना में जाने का निर्णय लिया था।
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