नई दिल्ली। शांत पड़े राजस्थान में उस वक्त सियासी भूचाल आ गया था जब सीएम गहलोत के 92 विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को उनके आवास पर जाकर अपना इस्तीफा थमा दिया था, उन्होंने आलाकमान के एकलाइन के प्रस्ताव को भी पास नहीं होने दिया। जिसका परिणाम यह रहा कि अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ पाए क्योंकि वे अपने 102 विधायकों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहते थे। गहलोत समर्थक विधायक नहीं चाहते कि जिन ‘गद्दारों’ ने 2020 में सरकार गिराने की कोशिश की उनमें से राजस्थान का नया सीएम बनाया जाए। ऐसे में राजस्थान के सीएम के मुददे पर अभी 17 अक्टूबर तक ब्रेक लगा हुआ है, इसके बाद ही आलाकमान इस मुद्दे पर कुछ फैसला करेगा, लेकिन यह कार्य उसके लिए एक धर्मसंकट के समान होने वाला है, इसे समझने के लिए इनके कारणों में जाते हैं।
क्या पार्टी में अलग-थलग पड़ गए हैं सचिन पायलट ?
राजस्थान कांग्रेस में अकेले पड़ चुके सचिन पायलट अगर सबको साथ लेकर चलते तो शायद उनके लिये राजनीति आसान होती। लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं से ज्यादा मीडिया वह भी अंग्रेजी समझ रखने वालों पर ज्यादा भरोसा कर अपने को राजस्थान से अलग थलग कर लिया। यही अंग्रेजी मीडिया कांग्रेस का तो नुकसान कर ही रहा है राजस्थान जैसे शांत राज्य को कहीं ना कहीं अशांत भी कर रहा है। राजनीति में टकराव तो होते है, लेकिन सीमा के अंदर। लेकिन राजस्थान में इसके उलट हो रहा है। पहले खुद गलती करो, माफी मांगने के बजाये आँखे दिखाओ। हैरानी की बात यह है आलाकमान सब जानता है कि बीजेपी के साथ मिल सरकार गिराने की कोशिश किसने की।कितने का लेन देन हुआ। क्यों नही आज तक लिया गया पैसा वापस किया गया ? चर्चा तो यहां तक है कि आलाकमान ने लिये पैसे वापस देने को भी कहा। जो खर्च हो गये उनकी भरपाई की भी बात की। लेकिन न तो पैसे वापस किये गये और ना ही सरकार गिराने की कोशिश करने वालों ने एक बार भी गलती के लिये आज तक माफी नहीं मांगी।
किसकी सुनेगा आलाकमान ?
किसी भी राजनीतिक दल में ऐसा पहली बार हो रहा होगा जब पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले को सही समझा जा रहा है। विधायकों को लेकर तमाम बातें की जा रही है। लेकिन अगर देखा जाये तो विधायकों ने कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ कोई बागी कदम नहीं उठाया और ना ही कोई नाराजगी जताई। विधायकों ने वही किया जो किसी परिवार में जब कुछ गलत हो रहा होता है तो उसे रोकने के लिये परिवारजन मिल जो कदम उठाते है वही उठाये। विधायकों का यही कहना है कि जिसने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार गिराने के लिये पूरी ताकत लगा दी कि पार्टी उसे मुख्य्मंत्री बनाने की सोच रही है। यह तो उन विधायकों के साथ धोखा है जिन्होंने करोड़ो रुपये ठुकरा अपनी सरकार बचाई। अच्छा होता उस दिन वह भी पैसा लेकर बीजेपी में शामिल हो जाते और आज मजे करते। एक तरह से देखा जाये तो वफादार कांग्रेसी विधायकों की बात जायज है। अच्छा हो कि आलाकमान वफादार 102 विधायकों की बात को सुने और उन पर अमल करे। क्योंकि जिद से राजस्थान दूसरा पंजाब बन सकता है। आज कांग्रेस उस स्थिति में नही है कि वह फिर से राजस्थान में अपने पैरों पर खड़ी हो सके।
राजनीति के पक्के खिलाड़ी हैं अशोक गहलोत
अब दूसरी जो अहम बात की जा रही है वह है मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिये।उन पर आरोप लगाए जा रहे है कि उन्होंने अपने विरोधियों को कैसे किनारे किया। हर पार्टी में हर नेता अपने को स्थापित करता है। स्थापित करने के लिये आप के पास नेता,कार्यकर्ता और विधायक साथ होने चाहिए। जिसके पास कार्यकर्ता और विधायकों की ताकत होती है वह नेता बना रहता है।
गहलोत पर 50 साल की राजनीति में यह आरोप कभी नहीं लगा कि उन्होंने पार्टी तोड़ने की कोशिश की हो या कभी आलाकमान के खिलाफ बोला हो। गांधी परिवार में अहमद पटेल के बाद यह एक मात्र नेता बचे हैँ जिन्होंने गांधी परिवार के लिये करीबी मित्रों पर भी हमला बोला। यही कोशिश की कि गांधी परिवार को कोई आँखे न दिखा पाये।
जननेता की परिभाषा चरितार्थ करते हैं गहलोत-वसुंधरा
इसमें कोई दो राय नही है कि राजस्थान में अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे ही ऐसे दो नेता है जिन्होंने कभी जाति की राजनीति नही की और ना ही कभी एक जाति में बंध कर रहे। इसलिए हर विधानसभा क्षेत्र में इनके समर्पित कार्यकर्ता है। दूसरा कभी भी इन्होंने किसी को धमकाया और चेताया नहीं। जबकि आज कुछ लोग इसके उलट राजनीति कर रहे है। यही हालात रहे तो कांग्रेस मे जल्द ही मामला राजस्थानी बनाम गैर राजस्थानी हो सकता है।कांग्रेस आलाकमान को भावनाओं या अंग्रेजी तरीके से सोचने के बजाये यह देखे कि क्या वह आज के हालात मे राजस्थान को डिस्टर्ब करके सही कर रहे है। अभी वो स्थिति नहीं है कि प्रयोग कर राजस्थान को पंजाब बना दें। अभी सरकार को सपोर्ट की और सभी कोंग्रेसियों को मजबूती से साथ चलने की जरूरत है। जिससे बहुत ताकतवर हो चुकी बीजेपी से मुकाबला किया जा सके। आम आदमी पार्टी को खड़ा होने से रोका जा सके।