मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बाद अब प्रदेश के नगरीय विकास और स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने भी ईआरसीपी (पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना) के मामले में केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। धारीवाल ने रविवार को केंद्र पर ईआरसीपी में सहयोग करने के स्थान पर अटकाने का आरोप लगाया है।
गौरतलब है कि उत्तर क्षेत्रीय परिषद की बैठक में भी मुख्यमंत्री गहलोत ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सामने ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने की मांग की थी। साथ ही, केंद्र की ओर से परियोजना को सहयोग देने के स्थान पर रोकने के लिए पत्र जारी करने की बात कहीं थी। हालांकि इस मामले में शाह ने भी राज्य को कोई आश्वासन नहीं दिया है। अब धारीवाल के साथ-साथ प्रदेश के अन्य मंत्री भी केंद्र की ओर से परियोजना पर लगाई जा रही रोक को लेकर मुखर हो रहे हैं।
‘केन्द्र कैसे रोक सकता है काम’
स्वायत्त शासन मंत्री ने बताया कि जब इस प्रोजेक्ट में अभी तक राज्य का पैसा लग रहा है, पानी राजस्थान के हिस्से का है तो केंद्र सरकार परियोजना का कार्य रोकने के लिए कैसे कह सकता है। उन्होंने बताया कि केंद्र इस रवैये से प्रदेश की जनता को पेयजल से और किसानों को सिंचाई के पानी से वंचित करने का प्रयास क्यों कर रही है। उन्होंने बताया कि इस तरह के रोड़े अटकाने की वजह से इन 13 जिलों में न सिर्फ पेयजल और सिंचाई का काम प्रभावित हो रहा है बल्कि सतही जल की उपलब्धता पर आश्रित जल जीवन मिशन की कई जिलों में सफलता दर भी प्रभावित हो रही है। उन्होंने बताया कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की ओर से ईआरसीपी में अपेक्षित सहयोग देने के बजाय रोड़े अटकाने का काम किया जा रहा है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
‘नियमानुसार तैयार हुई डीपीआर’
स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि ईआरसीपी के लिए केन्द्रीय जल आयोग की 2010 की गाइडलाइन की पालना करते हुए केन्द्र सरकार के उपक्रम वेप्कॉस की ओर से 37 हजार 200 करोड़ की डीपीआर तैयार की गई। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस परियोजना से सिंचाई सुविधा के प्रावधान को नहीं हटाया जा सकता। केन्द्र जब तक इसे राष्ट्रीय महत्व का दर्जा नहीं दे देती, राज्य सरकार अपने सीमित संसाधनों से इसका कार्य जारी रखेगी।
‘डीपीआर में समझौतों की पालना’
परियोजना की डीपीआर मध्यप्रदेश और राजस्थान अंतरराज्यीय स्टेट कंट्रोल बोर्ड की वर्ष 2005 में आयोजित बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार तैयार की गई है। इस निर्णय के अनुसार राज्य किसी परियोजना के लिए अपने राज्य के कैचमेंट से प्राप्त 90 प्रतिशत पानी एवं दूसरे राज्य के कैचमेंट से प्राप्त पानी का 10 प्रतिशत प्रयोग इस शर्त के साथ कर सकते हैं। यदि परियोजना में आने वाले बांध और बैराजों का डूब क्षेत्र दूसरे राज्य सीमा में नहीं आता हो तो ऐसे मामलों में राज्य की सहमति आवश्यक नहीं है।
‘13 जिलों की जीवन रेखा’
स्वायत्त शासन मंत्री ने कोटा में बताया कि परियोजना के पूरा होने से पेयजल उपलब्धता के साथ 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार होगा। परियोजना से झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर, भरतपुर, दौसा, अलवर, जयपुर, अजमेर एवं टोंक जिलों की जीवन रेखा है। सीएम अशोक गहलोत ने नवनेरा-गलवा, बिशनपुर-ईसरदा लिंक, महलपुर बैराज, रामगढ़ बैराज के 9600 करोड के काम हाथ में लिए जाने की बजट घोषणा की थी। इसका कार्य वर्ष 2022-23 में शुरू कर 2027 तक पूरा किया जाएगा।
‘व्यर्थ बहकर जा रहा है पानी’
स्वायत्त शासन मंत्री ने बताया कि चंबल नदी पर धौलपुर में केंद्रीय जल आयोग का रिवर गेज स्टेशन है, जहां पर नदी में बहकर जाने वाले पानी की मात्रा मापी जाती है। केंद्रीय जल आयोग की ओर से इस स्टेशन से प्राप्त 36 साल के आंकड़ों के अनुसार औसतन 19 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर एवं 75 प्रतिशत निर्भरता पर 11 हजार 200 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी प्रतिवर्ष यमुना नदी के माध्यम से समुद्र में व्यर्थ बह जाता है। जबकि इस योजना से मात्र 35 सौ मिलियन क्यूबिक मीटर पानी ही उपयोग में लिया जाएगा।