Rajasthan Assembly Election 2023: अफवाहों का बाजार कितना असरदार हो सकता है- यह सर्वविदित है। कई बार अफवाहें इस तौर-तरीके से फैलाई जाती हैं कि वे एक बारगी सच मान ली जाती हैं। लेकिन हकीकत सामने आने पर सारा माजरा समझ में आता है पर तब तक अफवाह फैलाने वालों का एजेण्डा या मकसद पूरा कर लिया जाता है। विशेषकर साम्प्रदायिक दंगों के समय ऐसी अफवाहें नुकसान देह होती हैं और प्रशासन की परेशानी बढ़ जाती है।
अफवाहों का कोई निश्चित दायरा भी नहीं है। राजनीति से लेकर शासन-प्रशासन समेत विभिन्न क्षेत्रों में यह बीमारी छूत के रोग की तरह फैलने का दमखम रखती है। फिल्म जगत में इसे गपशप का नाम दे दिया जाता है तो राजनीति में एक तीर से कई निशाने लगाने के बतौर इसका उपयोग होता है। अब चुनावी दौर में भी अफवाहें फैलाकर अपना मनोरथ पूरा करने के प्रयत्न किए जाते हैं लेकिन आज अपन जिस किस्से की चर्चा कर रहे हैं वह पांच दशक पुराना है।
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भारत पाक युद्ध 1971 के पश्चात लोकसभा चुनाव के दौरान का यह प्रसंग है। मैं उन दिनों कॉलेज विद्यार्थी था और भरतपुर में समाचार- भारती के संवाददाता के रूप में भी कार्य कर रहा था। भरतपुर के साथ साथ मुझे अलवर संसदीय क्षेत्र में भी चुनावी कवरेज का अवसर मिला। अलवर में पत्रकार साथियों तथा राजनीतिक दलों के लोगों से चर्चा दौरान सम्भवत: तिजारा विधानसभा क्षेत्र के एक गांव की चर्चा सुनने को मिली। गांव पहुंचने के लिए चार पांच किलोमीटर पगडंडी थी। मन में ठान ली और बस से उतरकर जा पहुंचा उस गांव। वहां की विशिष्टता और लोगों की राजनैतिक समझ को जाना।
अलवर के चुनावी दौरे में अलवर के पूर्व राजघराने के प्रताप सिंह से अकस्मात मुलाकात हो गई। सफेद-कुर्ता पजामा एवं चप्पल पहने थे। परिचय जानकर उन्होंने जीप में बिठा लिया। गांवों में उनके भाषण देने तथा जनसम्पर्क का अंदाज देखा। मार्ग में एक युवक को जाते देख उसकी जाति का उन्होंने अनुमान लगाया जो सही निकला। लौटते समय रात्रि में विवेकानंद चौक पर उनकी सभा थी। उपस्थित लोग तल्लीनता से उन्हें सुन रहे थे। मतदान के दिन हम जनसम्पर्क अधिकारी की जीप में सवार थे। यात्रा के दौरान स्थान-स्थान पर मतदान केन्द्र पर ठहर कर मतदान का प्रतिशत नोट करते जाते। लौटते वक्त लगभग चार बजने को थे। सुबह पहले वाले मतदान केन्द्र के आसपास भयावह सन्नाटा था।
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पता लगाया तो मालूम हुआ कि तिजारा के आसपास गोलियां चली हैं जिसमे आठ लोग मर गए हैं। यह खबर सुनते ही राजनैतिक दलों के लोग लोग वहां दौड़ पड़े हैं। मामले की छानबीन में साथी पत्रकार जुट गए। अचानक मेरे मन में ख्याल आया कि पहले मतदान केन्द्र में मतदान का प्रतिशत जान लिया जाए। मतदान प्रतिशत जानकर अत्यंत आश्चर्य हुआ। कुछ घंटों के भीतर इतना भारी मतदान कैसे संभव था। तब मतदान पत्र प्रक्रिया से मतदान होता था। अलवर जाकर पता चला कि गोली चलने की अफवाह थी।
अलबत्ता आपस में कहासुनी और मारपीट हो गई थी। कुछ अन्य मतदान केन्द्रों पर भी इस दौरान भारी मतदान हुआ था। तब कांग्रेस के हरिप्रसाद शर्म, जनसंघ के सतीशचंद्र शर्मा, सीपीआई के रामानंद अग्रवाल मैदान में थे। राजनैतिक क्षेत्रों में यह चर्चा थी कि कांग्रेस व सीपीआई में समझौता हो गया और सीपीआई समर्थकों ने ऐसा माहौल बनाकर मतदान करवाया। क्या वह बोगस था- यह समझ से परे था। बहरहाल कांग्रेस प्रत्याशी जीता।
- गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार