Rajasthan Assembly Election 2023 : राजस्थान में अगले साल ही चुनाव है। लेकिन मौजूदा वक्त में सिर्फ कांग्रेस के सियासी संकट की चर्चा पूरे प्रदेश में छाई हुई है। लेकिन चुनावी माहौल की बात करें तो भाजपा के अलावा दूसरी पार्टियों की करें तो यहां पर ‘आप’ और ओवैसी की AIMIM अब चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हैं, लेकिन जिस तरह इन दोनों पार्टियों ने राजस्थान में तीसरा विकल्प बनने के दावे किए हैं, क्या यह पूरा होगा? क्या राजस्थान की जनता भाजपा कांग्रेस के अलावा भी किसी और पार्टी को इस बार मौका देना चाहेगी। सवाल बहुत हैं लेकिन मौजूदा समय में राजनीतिक दलों की क्या स्थिति है उस पर एक बार नजर डाल लेते हैं।
कांग्रेस
प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस राजस्थान की चुनावी परिपाटी को तोड़ने के दावे कर रही हैं। दरअसल राजस्थान की सत्ता में हर पांच साल में कांग्रेस और भाजपा की सरकार रही है। इसलिए इस आधार पर राजनीतिक विश्लेषक अगली बार चुनाव में भाजपा को जनादेश मिलने का अंदेशा जता रहे हैं, लेकिन इस तरह की परिपाटी के आधार पर किसी राज्य के चुनावों के नतीजे नहीं बताए जा सकते हैं। कांग्रेस की मौजूदा स्थिति जो है उसमें अशोक गहलोत जैसा मजबूत चेहरा पार्टी के पास है। राजनीति के जादूगर अलसोक गहलोत की जादूगरी प्रदेश कांग्रेस पर आए संकट में भी काम कर गई। अब अशोक गहलोत ही कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहेंगे। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने प्रदेश में एक मजबूत आधार बनाया है। अशोक गहलोत कई कई जलकल्याणकरी य़ोजनाओं का असर जनता पर दिख रहा है जिसके आधार पर अगली बार भी चुनावों में शानदार वापसी के दावे कर रहे हैं।
भाजपा
अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ भाजपा माहौल बनाने की कोशिश में लगी है, लेकिन उसका कुछ खास असर दिख नहीं रहा है। हाल ही में हुए लंपी पर भाजपा के विधानसभा घेराव और जोरदार प्रदर्शन ने जरूर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थी। लेकिन इसके बाद मामला फिर शांत पड़ता दिखाई दिय़ा। भाजपा की मजबूती इसलिए भी निखर कर नहीं आ पा रही है क्योंकि भाजपा दो धड़ों में बंटती हुई नजर आती है। कई राजनीतिक जानकार भी कह चुके हैं, भाजपा में राजे और पूनिया गुट बन चुके हैं, इसे लेकर कई बार भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने भी प्रदेश भाजपा को चेताया है खुले तौर पर उन्होंने यहां तक कहा कि इस तरह की गुटबाजी के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं है। अंदर की लड़ाई अंदर ही सुलझा लें बाहर न आने दें। केंद्रीय नेतृत्व के इस फटकार से तो ये तस्वीर साफ हो जाती है कि भाजपा के अंदर की लड़ाई बाहर अगले विधानसबा चुनावों में उसका खेल बिगाड़ सकती है। हालांकि भाजपा ने यह घोषणा भी कर दी है अगला चुनाव वह नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ेगी।
AAP
प्रदेश में तीसरा विकल्प बनने का दावा करने वाली अरविंद केजरीवाल की आप दिल्ली, पंजाब, गुजरात की तरह ही राजस्थान में जीत दर्ज करने का दावा कर रही है। सरकार बनने पर दिल्ली, पंजाब में फ्री बिजली-पानी-शिक्षा-स्वास्थ्य का मॉडल उन्होंने राजस्थान में भी लागू करवाने की वादा जनता से किया है। इन वादों से प्रदेश की जनता का भी झुकाव आप की तरफ हो सकता है। लेकिन पिछली बार के चुनावों में पार्टी ने 180 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े गए थे लेकिन उनमें से एक भी नहीं जीते यहां तक कि कई उम्मीदवारों की तो जमानत भी जब्त हो गई। लेकिन पार्टी के साथ सबसे बड़ी समस्या है कि उसका प्रदेश स्तर पर कोई मजबूत चेहरा नहीं है, और चेहरे के बिना पार्टी इन बड़े-बड़े राजनीतिक दलों के सामने कैसे टिकेगी इसा मंथन भी आप को करना चाहिए। ये बात अलग हो सकती है कि भाजपा की तरह आप भी अपने शीर्ष नेतृत्व के चेहरे पर य़ानी अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर ही चुनाव लड़े, लेकिन पंजाब चुनाव में आप की परिपाटी को देखते हुए ऐसा कहना थोड़ा मुश्किल। क्यों कि पंजाब में केजरीवाल ने भगवंत मान जैसे चर्चित चेहरे को उतारा था। जिससे आप बड़ी जीत दर्ज करेनव में कामयाब हुई थी।
AIMIM
असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM भी राजस्थान में खुद की पार्टी को लेकर त्रिकोणीय मुकाबले की दावा कर रही है। ओवैसी ने अपने राजस्थान दौरे के दौरान कहा था कि राजस्थान की जनता कांग्रेस और भाजपा से अब त्रस्त आ चुकी है। इसलिए यहां की जनता तीसरे विकल्प की तलाश में हैं। लेकिन दूसरे राज्यों में अगर AIMIM की स्थिति को देखें तो तेलंगाना के अलावा किसी भी राज्य में यह पार्टी मजबूत स्थिति में नहीं है। यूपी, बिहार में इसका उदाहरण देखा सकता है। बिहार में साल 2020 के चुनाव में AIMIM के 5 विधायकों ने जीत दर्ज की थी लेकिन उऩमें से भी 4 विधायकों ने पार्टी छोड़कर लालू यादव की RJD में शामिल हो गए थे। जिससे अब बिहार में AIMIM का सिर्फ 1 विधायक रह गया है। यूपी में भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। साल 2022 के चुनाव में AIMIM को नोटा से भी कम वोट मिले थे। यहां पर 100 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली AIMIM को एक भी सीट नहीं मिली थी। तो 200 सीटों वाली राजस्थान विधानसभा में AIMIM किस तरह तीसरा विकल्प बनेगी इसके बारे में पार्टी को ज्यादा विचाकर करने की जरूरत है।
RLP
नागौर सांसद और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक हनुमान बेनीवाल प्रदेश के सियासत में एक मजबेत चेहरा हैं। बेनीवाल पश्चिमी राजस्थान में एक प्रमुख चेहरा हैं। उनका इस क्षेत्र में बेहद प्रभाव भी है। पिछले विधानसभा में RLP को 3 सीटें हासिल हुई थीं। हालांकि उन्होंने 20 सीटें जीतेन का दावा किया था। लेकिन इस बात पर भी गौर करना होगा कि पिछले चुनाव की वोटिंग से पहले के 20 दिन तक उन्होंने ताबड़तोड़ रैलियां औऱ जनसभाएं कर जनता को अपनी मुरीद बना लिया था। यहा कारण था कि उन्होंने 8 लाख से भी ज्यादा वोट हासिल किए साथ ही साथ कांग्रेस और भाजपा के वोटबैंक में भी बड़ी सेंधमारी की थी। इससे पता चलता है कि अगर बेनीवाल वैसा ही कारनामा इस चुनाव में भी दिखातें हैं तो प्रदेश की सियासत में तीसरे मोर्चे को और पैनी धार मिल सकती है।
बसपा
प्रदेश में तीसरे मोर्चे को धार देने का काम तो मायावती की बसपा ने भी किया है। पिछले चुनाव में बसपा 6 सीटें जीतकर आई थी। लेकिन यह अलग की बात है उसके सभी 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। लेकिन पिछले दिनों हुई मायावती के भतीजे और प्रदेश बसपा प्रमुख आकाश आनंद की बैठक में यह साफहो गया था कि बसपा अब चुनावी माहौल में कुछ बड़ा करने की जुगत में है वह अपने उऩ 12 सदस्यों को वापस लेकर आएगी जो पार्टी छोड़कर चले गए थे। लेकिन आप की तरह की बसपा के साथ सबसे ब़ड़ी समस्या यही है कि उसके पास भी कोई प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाला चेहरा नहीं है। जो कि एक बड़े स्तर पर सदस्यों का नेतृत्व कर सके और बड़ी जीत दिल सके। अपने नियत वोटों के बल पर ही पार्टी जीतना चाहती है। लेकिन प्रदेश की मौजूदा स्थिति को देखते हुए निश्चित वोटों का गणित नहीं अपनाया जा सकता।
बीटीपी
बसपा की तरह की बीटीपी यानी भारतीय ट्राइबल पार्टी भी आदिवासियों के वोटबैंक तक ही सीमित है। उसके पास भी प्रदेश में पार्टी का नेतृत्व करने के लिए कोई बड़ा चेहरा नहीं है। इसलिए पूरे प्रदेश में उसके अच्छे प्रदर्शन के लिए काफी कुछ और जद्दोजहद करने की दरकार है।