अभी तक हमें सिर्फ यह ज्ञात है कि अमृतसर का गोल्डन टेम्पल ही विश्व स्तर पर सोने के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है, लेकिन दक्षिण भारत के तमिलनाडु में एक ऐसा मंदिर है, जिसे दक्षिण भारत के गोल्डन टेम्पल के नाम से जाना जाता है। यहां प्रतिदिन 1 लाख से अधिक लोग दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर में 1500 किलोग्राम सोने का उपयोग किया गया है, जबकि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में के वल 750 किलो सोने का उपयोग हुआ है।
भगवान श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर निर्माण में लगे 7 वर्ष
दर्शनार्थी मंदिर परिसर के दक्षिण से प्रवेश कर घड़ी की सुई की दिशा में (क्लाॅक वाइज) घूमते हुए पूर्व दिशा तक आते हैं, जहां से मंदिर के अंदर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन करने के बाद फिर पूर्व में आकर दक्षिण से ही बाहर आ जाते हैं। मंदिर का एक-एक भाग वैदिक नियमों के अनुसार निर्मित है। श्रीपुरम मन्दिर परिसर में एक अस्पताल और शोध केंद्र भी स्थित है।
1.8 किमी से ज्यादा लंबा है श्रीचक्र
इस मंदिर की कला एवं निर्माण वेदों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे उसी अनुसार बनाया गया है। श्रीपुरम के डिजाइन में हरे-भरे परिदृश्य के बीच में एक तारानुमा आकृति का पथ है। इसे श्री चक्र कहते हैं, जिसकी लंबाई 1.8 किमी से अधिक है। इस पथ से चल कर मंदिर के बीच में पहुंचा जा सकता है। पथ पर पथिक विभिन्न आध्यात्मिक संदेशों को भी पढ़ सकता है- जैसे कि मानव जन्म का उपहार, आध्यात्मिकता का मूल्य, मानव कर्तव्य और जीवन को सिद्ध करने के उपाय।
100 एकड़ क्षेत्र में फैला है परिसर
भारत के सनातन धर्म हिन्दूधर्म के मंदिर न केवल भक्ति-भाव, धर्म और सनातन की महान परंपराओं के केंद्र हैं, बल्कि उनकी वास्तु कला, वैभव, समृद्धि, विशालता, भव्यता और संरचना भी महान है। मदुरै के मीनाक्षी मंदिर को देखें तो इतने विशाल गोपुरम और मंदिर का भव्य परिसर देख कर लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं। श्रीपुरम का यह आध्यात्मिक मन्दिर बेहद अद्भुत, सुंदर और विलक्षण है। यह वेल्लोर से 7 किमी दूर थिरूमलाई कोडी में स्थित है। यहां शुद्ध सोने से बना श्री लक्ष्मी माता का श्री लक्ष्मी नारायणी मंदिर है। इसे दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर कहा जाता है।
संसार में कोई ऐसा मंदिर नहीं है, जिसे बनाने में इतने सोने का उपयोग किया गया हो। यह लगभग 100 एकड़ क्षेत्र में विस्तृत एक आध्यात्मिक केंद्र है। श्रीपुरम मंदिर को बनाने के लिए पहले सोने को सलाई और बहुत ही पतली शीट में बदला गया, जिसे तांबे की प्लेट के ऊपर सजाया गया। बड़ी ही सूक्ष्मता से कारीगरी की गई है। मंदिर की नक्काशी इसे बहुत अद्भुत बना देती है।
70 किलो सोने से बनी है मूर्ति
यह माता लक्ष्मी का स्वर्ण मंदिर है, मुख्य देवता भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी हैं। मंदिर परिसर में धन की देवी महालक्ष्मी की 70 किलो सोने से बनी मूर्ति स्थापित है। मंदिर के विमान और मंडप शुद्ध सोने से ढके हुए हैं। इस मंदिर का निर्माण दक्षिण भारत के नारायणी अम्मा नामक एक आध्यात्मिक संत द्वारा करवाया गया था, जिनका पूर्व नाम सतीश कुमार था। मंदिर के निर्माण में तत्समय 300 करोड़ की लागत आई थी। मंदिर को जब ऊपर से देखा जाता है तो यह श्रीयंत्र के समान दिखाई देता है।
मंदिर से जुड़ी खास जानकारी
मंदिर निर्माण में 7 वर्ष का समय लगा था और इसे 2007 में दर्शनार्थियों के लिए खोला गया। रात्रि में जब मन्दिर में लाइट जलाई जाती है तो यह स्वर्णनगरी या स्वर्ण महल जैसा दिखाई देने लगता है। पूरा मंदिर जगमगाने लगता है। इस मंदिर की सुरक्षा के भी पूर्ण इंतजाम किए गए हैं। यह विश्व का सबसे अधिक स्वर्ण से निर्मित एकमात्र मंदिर है।
पार्क में पौधों और फूलों की 20 हजार प्रजातियां मौजूद
मन्दिर के चारों ओर हरे-भरे पार्क हैं और एक इको तालाब भी है, जिसमें भारत में स्थित सभी प्रमुख पवित्र नदियों और स्थानों का पवित्र जल लाकर डाला गया था। इस पार्क में पौधों और फूलों की लगभग 20,000 विभिन्न प्रजातियां मौजूद हैं, जो इसकी सुन्दरता में चार चांद लगाती है।
(कंटेंट- पंकज ओझा)
(Also Read- टांगीनाथ धाम में गड़ा है भगवान परशुराम का फरसा, रांची से करीब 150 किमी दूर है यह स्थान)