धर्म-कर्म: राजस्थान के इस जिले में 600 वर्ष पहले आकाशवाणी के साथ हुई थी भगवान की मूर्ती कि स्थापना, इनका इतिहास पढ़कर आप रह जाएंगे हैरान…

जयपुर। राजस्थान के सीकर जिले से 52 किमी दूर रींगस में है भैंरू बाबा क मंदिर जो रींगस का भैंरू के नाम से काफी प्रसिद्ध…

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जयपुर। राजस्थान के सीकर जिले से 52 किमी दूर रींगस में है भैंरू बाबा क मंदिर जो रींगस का भैंरू के नाम से काफी प्रसिद्ध है. बाबा भैंरू का यहां मंदिर काफी सालों पुराना है. इस मंदिर में राजस्थान से ही नहीं अपितु देशभर से श्रद्धालु यहां दर्शन को आते है. माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से इनको ध्याता है उनकी भैंरू बाबा अवश्य सुनते है और भक्ताें कि मूराद को जल्द पूरी कर देते है. जाने रींगस भैंरू मंदिर का इतिहास….

600 साल से पहले आकाशवाणी के साथ हुई भैरूं बाबा मूर्ति की स्थापना

श्रीभैरूं बाबा मंदिर कमेटी के पूर्व अध्यक्ष समाजसेवी हरिराम गुर्जर, फूलचंद गुर्जर व शंकर लाल गुर्जर ने भैरूं बाबा मंदिर के इतिहास की जानकारी देते हुए बताया कि करीब 600 साल से पहले आकाशवाणी के साथ भैरूं बाबा मूर्ति की स्थापना हुई थी. पौराणिक कथाओं व भैरूं बाबा मंदिर पुजारी परिवार के पूर्वजों ने बताया था कि ब्रह्माजी के पांचवें मुख से शिवजी की आलोचना के बाद शिवजी के पांचवें रूद्र अवतार के रूप में भैरूं बाबा के रूप में अवतरित हुए. अपने नाखून से ब्रह्माजी का पांचवा मुख धड़ से अलग कर दिया. इसके बाद भैरूं बाबा को ब्रह्महत्या का अभिशाप लगा। इस अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी के आदेश पर भैरूं बाबा ने तीनों लोकों की यात्रा की.

यात्रा पृथ्वीलोक पर रींगस से शुरू की गई थी

वह यात्रा पृथ्वीलोक पर रींगस से शुरू की गई थी. भैरूं बाबा मंदिर के पुजारी गुर्जर जाति से होने के कारण गायें चराते थे. मंडोर-जोधपुर में निवास करते थे. गायें चराते समय एक छोटे पत्थर की गोल मूर्ति भैरूं बाबा के रूप में झोली में रखकर पूजा-अर्चना करते थे.अधिकतर गुर्जर गायें चराते समय तालाबों के किनारे ही रुकते थे. वे जहां भी रुकते, वहीं झोली से भैरूं बाबा की मूर्ति निकालकर शाम को पूजा-अर्चना के साथ भोग लगाकर सो जाते थे. सुबह उठकर पूजा अर्चना कर मूर्ति को वापस झोले में रखकर गायों के साथ निकल जाते थे.

मूर्ति को उठाने के लिए गुर्जर समाज के लोगों ने किया प्रयास

इसी क्रम में मंडोर-जोधपुर से चलते हुए दूदू के पास स्थित पालू गांव, जयपुर के पास स्थित बेनाड़ होते हुए रींगस में आकर तालाब किनारे रात्रि विश्राम किया. झोली से मूर्ति निकाल कर पूजा के बाद सो गए. सुबह रवाना होने के लिए मूर्ति को वापस झोले में डालने के लिए उठाने लगे तो मूर्ति उठी नहीं. मूर्ति को उठाने के लिए गुर्जर समाज के लोगों ने काफी प्रयास किए और नहीं उठने पर निराश होकर बैठ गए. इसके बाद अचानक आकाशवाणी हुई और स्वयं भैरूं बाबा ने बताया कि मैंने ब्रह्माहत्या का प्रायश्चित करने के लिए पृथ्वीलोक की पदयात्रा रींगस की जोहड़ी से शुरू की.

शिवजी के पांचवें रूद्र अवतार के रूप में अवतरित हुए थे

आज वहीं स्थान आ गया है और मैं यही निवास करना चाहता हूं। इसके बाद पुजारी परिवार के लोग यहीं रुक गए। भैरूं बाबा की मूर्ति की स्थापना कर पूजा- अर्चना करने लगे। भैरूं बाबा के पुजारी प्रतिहार गौत्र के गुर्जर समाज के लोग हैं। उनके अनुसार मार्गशीर्ष की कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन ही भैरूं बाबा शिवजी के पांचवें रूद्र अवतार के रूप में अवतरित हुए थे। मंदिर जीर्णोद्धार से पहले चारों तरफ श्मशान थे तथा चबूतरे पर भैरूं बाबा की मूर्ति विराजमान थी।

मंदिर के सामने 1669 ईस्वी में बनी थी छतरी

भैरूं बाबा मंदिर के सामने शक्ति माताजी की छतरी है है। इसका निर्माण 1669 ईस्वी में हुआ था। इसका पत्थर भी लगा हुआ था, लेकिन 2013 में हुए मंदिर जीर्णोद्धार के दौरान छतरी का जीर्णोद्धार भी करवाया गया था। इससे छतरी में अंकित शिलापट्टिका निर्माण कार्य के दौरान अंदर दब गई। भैरूं बाबा का मंदिर छतरी से भी 200 वर्ष पहले होने के साक्ष्य मंदिर पुजारी परिवार बता रहे हैं।