भारत में पेरेंट्स अपने बच्चों की परवरिश को लेकर काफी चिंता में रहते हैं। हर माता-पिता ययही कोशिश करता है कि, उसका बच्चा समाज में परफेक्ट हो। क्योंकि उन्हें चिंता इस बात की रहती है कि लोग क्या कहेंगे। पेरेंट्स हमेशा चाहते हैं कि, उनके बच्चे ऐसा कोई काम न करें जो सोसायटी के स्टैंडर्ड से मेल न खाती हो। पेरेंट्स बच्चों की परफेक्ट बनाने में इस कदर गुम हो जाते हैं कि, वो अपने सपने अपने पसंद का करियर तक भी बच्चों पर थोप देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं आपकी ये चिंता आपके बच्चे को परेशान कर सकती है। चलिए जानते हैं कि, परवरिश के समय माता-पिता ऐसी कौनसी गलती कर देते हैं जिनसे बच्चों को आगे चलकर परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
बच्चों के सपनों को दें महत्व
कई बार ऐसा होता है कि, परिवार वाले अपने बच्चों को ऐसा बनाने में लग जाते हैं, जिस पर दुनिया को गर्व हो फिर चाहे उसके लिए बच्चों के सपनों को भी क्यों न छोड़ना पड़े। कई परिवारों में बच्चे की पसंद और सपनों को बहुत कम ही वरीयता दी जाती है और ज्यादातर काम समाज को ध्यान में रखते हुए किए जाते हैं। अगर किसी बच्चे की दिलचस्पी डांस में है और वो उसी में अपना करियर बनाना चाहता है लेकिन समाज इसे करियर के तौर पर नहीं देखता है, तो बच्चे को उसका पैशन फॉलो करने से रोक दिया जाता है। ऐसा करने से न केवल आपका बच्चे के अंदर आगे चलकर कॉन्फिडेंस की कमा रहेगी बल्कि, वो जिंदगी भर दुखी रहेगा।
हर बार बड़े होते हैं सही
भारतीय घरों में हमने अक्सर ऐसा देखा है कि, बच्चों को माता-पिता यही सिखाते रहते हैं कि बड़े हमेशा सही होते हैं। या फिर बच्चें बड़ों से सही बात कह भी रहे हो तो उनका कहना होता है कि, बड़े हैं जो भी बोल रहे हैं सही है। इस चक्कर में बच्चे अपने बड़ों से बात करने में हिचकिचाते हैं और इस बात की कल्पना तक नहीं कर पाते हैं कि उनके बड़ों से भी कोई गलती हो सकती है। अगर आपका बच्चा परिवार में किसी बड़े सदस्य की शिकायत करता है तो उसे इग्नोर करने की बजाय उसकी परेशानी को सुनें।
हर धर्म को कम बताना
ये हर घर में आम है कि, परिवार वाले अपने धर्म को सही और बाकी धर्मों की बुराई करते नज़र आते हैं। लेकिन आपको समझना होगा कि, आपका बच्चा अभी दुनिया को समझ रहा है। उसके लिए बहुत जरूरी है कि, हर चीज समझे। यह माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वो अपने बच्चे को सिखाएं कि हर धर्म का अपना महत्व है। लेकिन होता इसका उल्टा है। यहां पर बच्चों को दूसरे धर्मों से दूर रखा जाता है और अन्य धर्मों के बारे में जानने की इजाजत नहीं होती है।
घर की बात घर में रखने की आदत
हम अक्सर देखते हैं कि, परिवार में लोगों को ये चिंता बहुत होती है कि, लोग क्या कहेंगे। इस चक्कर में बच्चे चाहकर भी अपने मन की बात या फिर उनके साथ हो रहे गलत व्यवहार के लिए कुछ बोल नहीं पाते हैं।