Kanway Yatra History: आज से सावन का महीना शुरू हो चुका है। देश भर के मंदिरों औऱ घरों में हर-हर महादेव के जयकारे गूंज रहे हैं। तो वहीं अब जगह-जगह कांवड़ यात्रा (Kanway Yatra) भी शुरू हो गई हैं। भगवा वस्त्र धारण किए, माथे पर शिव का नाम लिखे हुए भक्त अपने कंधों पर कांवड़ रख पैदल जाते हुए दिखाई देते हैं। लेकिन क्या आप जाने हैं कि आखिर क्यों ये कांवड़ यात्रा की जाती है, क्यों भगवान शिव के ये भक्त कई मीलों दूर पैदल चलकर गंगा जल लाकर फिर भगवान शिव पर चढ़ाते हैं? दरअसल इस यात्रा के शुरू होने का कारण हमें पौराणिक कथाओं में मिलता है।
कैसे शुरू हुई थी कांवड़ यात्रा (kanwar yatra History)?
कांवड़ यात्रा शुरू होने का जिक्र कई कथाओं में है। मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को कंधे पर बिठाकर हरिद्वार ले कर गए थे। क्योंकि ये उनके माता-पिता की इच्छा थी की वे हरिद्वार जाएं। लेकिन वे नेत्रहीन थे। इसलिए श्रवण कुमार ने अपने कंधों पर कांवड़ में माता-पिता को बिठाया और हरिद्वार गए। जहां से उन्होंने पवित्र गंगा का जल अपने माता-पिता को पिलाया था। कहा जाता हो कि वापस लौटते समय श्रवण के माता-पिता ने यह गंगाजल एक शिवलिंग पर चढ़ाय़ा था, जिसके बाद से यह कांवड़ यात्रा शुरु हुई थी।
एक और मान्यता प्रचलित है कि सतयुग में सबसे पहले भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा का जल शिवलिंग पर चढ़ाया था, तभी से कांवड़ यात्रा शुरू हो गई थी।
कांवड़ यात्रा (Kanwar yatra) का क्या है महत्व और नियम
सनातन धर्म में सावन महीने को बेहद शुभ और पवित्र माना गया है। यह पूरा महीना भगवान शिव की भक्ति को समर्पित है। ऐसा माना जाता है भगवान शिव और पार्वती का मिलन इसी महीने में हुआ था। कई भक्तों मानते हैं कि इस महीने भगवान शिव की सच्चे मन से अराधना करने पर वे प्रसन्न होते हैं औऱ मनचाहा वरदान देते हैं। कांवड़ यात्रा भी इसी का एक हिस्सा माना जाता है। भक्त अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्रा करता हैं। लेकिन यह यात्रा बेहद कठिन मानी जाती है। जिस मंदिर या धार्मिक स्थल पर भक्त ने भगवान शिव का अभिषेक करने का संकल्प लिया है। वहां तक कांवड़ में गंगाजल भरकर यात्रा करनी होती है।
इस कांवड़ यात्रा को पैदल ही पूरा करना चाहिए। इस दौरान भक्तों को बेहद सदाचारी होना चाहिए, इसके साथ ही उन्हें सिर्फ सात्विक भोजन का ही सेवन करना चाहिए। किसी भी तरह के प्रलोभन, दूषित विचारों को आने से रोकना होता है। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण यह कि कांवड़ को जमीन पर नहीं रखना चाहिए। अगर उसे उतारना ही है तो इस तरह उतारकर रखना होगा कि वह जमीन को स्पर्श न करे। अगर कांवड़ को जमीन पर रखा है तो यह यात्रा सफल नहीं मानी जाती औऱ दोबारा गंगाजल भरकर यात्रा शुरू करनी पड़ती है।
Disclaimer
( यहां दी गई जानकरी मान्यताओं, विभिन् माध्यमों, ज्योतिषियों, धार्मिक आस्था पर आधारित है। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। जनरुचि को ध्यान में रखकर इसे प्रसतुत किया गया है )