Dashara Special 2024: राजस्थान के एक छोटे से गांव बाय में दक्षिण भारतीय शैली में रामायण कालीन पात्रों का अभिनय करते हुए कलाकारों द्वारा युद्ध मैदान में राम और रावण की सेनाओं के बीच में युद्ध होगा। जिसमें राम रावण का वध करेंगे और पाप का नाश करेंगे। अधर्म पर धर्म की विजय होगी। यह विजयदशमी महोत्सव बाबा लक्ष्मीनाथ मंदिर के में महाआरती के साथ ही विजयादशमी महोत्सव का आगाज हो जाता है।
बाय गांव में दशहरे को स्नेह मिलन के रूप में मानते हैं प्रवासी इस उत्सव पर अपने गांव गांव आते हैं और पूरा सहयोग करते हैं। विजयादशमी के दिन दोपहर 12 बजे से 2 बजे तक दशरथ कैकई संवाद, 2 से 4 बजे तक राम वनवास ,सूर्पनखा का नाक कान काटना, सीता हरण, 4 से 6 बजे तक खरदूषण वध, जटायु युद्ध, मेघनाथ शक्ति प्रयोग, लंका दहन, अंगद रावण संवाद, रावण वध, मंदोदरी विलाप,शाम को 6 से 8 तक विश्राम, रात्रि 8 बजे से दूसरे दिन प्रातः 8 बजे तक मनोहर झांकियां शेष अवतार ,गरुड़, विष्णु, सरस्वती, ब्रह्मा ,सिंह वाहिनी दुर्गा ,जय काली मां ,वराह अवतार, नरसिंह अवतार आदि अनेक झांकियां का प्रदर्शन राजस्थानी कला का विशिष्ट अभिनय, प्रदर्शन करते हुए कार्यक्रमों का दिग्दर्शन देखने को मिलेगा।
प्रसिद्ध विजयादशमी महोत्सव में अपनी पहचान बनाने वाले बाय गांव का इतिहास
दशहरा मेला समिति द्वारा प्रकाशित दशहरा स्मारिका के अनुसार सीकर जिले के दातारामगढ़ तहसील के ग्राम पंचायत बाय राजस्थान में ही नहीं अभी तो भारत में अपना विशिष्ट स्थान रखता है इस ग्राम की उत्पत्ति के संबंध में एक की किंवदंती है कि विक्रम संवत 1592 में एक प्रसिद्ध महात्मा के आशीर्वाद से परम रामका शेखावत की बाई ने इसे बसाया था जो आगे चलकर यह गांव बाय नाम से जाना जाने लगा, कहा जाता है कि बाई ने अपना निवास एक झोपड़ी में बनाया उसी समय स्थल के महादेव मंदिर का निर्माण करवाया गया।
तत्पश्चात गढ़ बनाया गया तथा शेखावत अपना शासन करने लगे इस शासन के अधीन 12 गांव थे। शेखावत शासको के कहने पर विक्रम संवत् 1604 में पाराशर पुजारीयो के द्वारा मूर्ति लाई गई थी और शासको द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया। यहां पर कई जातियों के लोग निवास करते थे लेकिन ब्राह्मण जाति के लोगों का बाहुलय था, प्रत्येक ब्राह्मण परिवार जागीरदार होता था,तत्कालीन जयपुर महाराजा सवाई राम सिंह अपने राज्य के अधीन सभी जागीरदारों से 4 पैसे प्रति बीघा के रूप में कर वसूल किया करते थे ।
यह कर ‘नहर बाघ’ के नाम से जाना जाता था। इस प्रकार की जबरन कर वसूली से जनता में आक्रोश फैल गया तब यहां के जुझारू ब्राह्मणों ने जनता का नेतृत्व करते हुए उक्त कर का विरोध किया महाराज ने ब्राह्मणों के इस विरोध को कुचलने का असफल प्रयास किया।
सभी ब्राह्मण समाज के लोगों ने श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर के सामने एकत्रित होकर महाराज के अत्याचारों का अंतिम दम तक मुकाबला करने का निर्णय लिया तथा श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर में बाबा से मन्नत मांगी कि यदि इस शासन द्वारा किए जा रहे अत्याचारों से मुक्ति मिल जाए तो प्रतिवर्ष लक्ष्मीनाथ मंदिर के सामने विजयादशमी महोत्सव के रूप में मनाया जाएगा।
तत्पश्चात शासन द्वारा उक्त कर को समाप्त कर दिया गया उसी दिन 1945 से हर्षो उल्लास के साथ विजयादशमी महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है जो आज भी ग्राम जनता बाय और दशहरा मेला समिति के सहयोग से आयोजित होता है वर्तमान में दशहरे में लेने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है जो पूरे भारत में अपनी अमिट छाप छोड़ता है। इस दशहरे की खासियत यह है कि यहां रावण को मारा जाता है जलाया नहीं जाता।