Copyright Act 1957: अगर आप कोई कविता या कहानी लिखें और कोई उसे अपने नाम से प्रकाशित कर दे तो शायद यह आपको रास नहीं आएगा। इन्हीं हरकतों पर लगाम लगाने व रोकने के लिए एक कानून बनाया गया। जिसे कॉपीराइट या प्रतिलिप्यधिकार कहा जाता है। यह व्यक्ति के मूल लेखन को अन्य व्यक्ति द्वारा कॉपी करने व प्रकाशित करने से रोकता है। यह कानून कृति के लेखक को प्रकाशन करने का विशेष अधिकार प्रदान करता है।
दरअसल प्रतिलिप्यधिकार या कॉपीराइट का उपयोग व्यक्ति या संस्था उस स्थिति में कर सकता है, जब किसी चीज का वर्णन, पेंटिंग, कहानी या गाना केवल आपके द्वारा वर्णित किया गया हो। ऐसी कृतियों पर सिर्फ संबधित व्यक्तियों का ही अधिकार होता है। इसमें उसी व्यक्ति का प्रतिलिप्यधिकार होगा तथा अन्य व्यक्ति द्वारा उसे प्रकाशित नहीं किया जा सकता या केवल असल लेखक की अनुमति के बाद ही प्रयोग में लाया जा सकता है।
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कब बना अधिनियम
भारत में प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम वर्ष 1957 में बना। जिसे ‘द कॉपीराइट एक्ट 1957’ के रूप में जाना जाता है। भारत में दो बार प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम बनाए गए। पूर्व में वर्ष 1914 में कॉपीराइट एक्ट बनाया गया था। यह ब्रिटेन के ‘इंपीरियल कॉपीराइट एक्ट 1911’ पर आधारित था। ब्रिटेन द्वारा बनाए गए (Copyright Act 1957) इस कानून और उसके नियम को भारतीय स्वाधीनता अधिनियम के अनुच्छेद 18 (3) के तहत अनुकूलित कर लिए गए थे।
वर्ष 1957 तक यही एक्ट चला। लेकिन वर्ष 1957 में नए प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम बनने के बाद पुराना कानून निरस्त हो गया। इस अधिनियम को अमल में लाने के लिए प्रतिलिप्यधिकार कार्यालय भी स्थापित किया गया। इस कार्यालय का मुख्य कार्य लेखक, रचनाकार का नाम, पता तथा कृति का नाम दर्ज करना है।
मुद्रणकला के बाद आया अधिकार
दरअसल प्रतिलिप्याधिकार की बात मुद्रणकला की शुरूआत होने के बाद उठी। क्योंकि इससे पहले यह अनुमान नहीं था कि किसी रचना या कलाकृति से किसी प्रकार का आर्थिक लाभ उठाया जा सकता है। जैसा कि कॉपीराइट का अर्थ है किसी कृति के संबंध में संबंधित व्यक्ति या संस्था का निश्चित अवधि के लिये अधिकार। जब मुद्रणकला का प्रचार होने लगा तो कॉपीराइट की बात भी सामने आयी। इस अधिकार का उद्देश्य रचनाकार, कलाकार या संस्था को अपनी रचना से निर्धारित अवधि तक आर्थिक लाभ उठाने का अधिकार प्रदान करना है।
प्रतिलिप्यधिकार मंडल की स्थापना
अधिनियम बनने के बाद प्रतिलिप्यधिकार मंडल यानी कॉपीराइट बोर्ड की स्थापना की गई। इसका कार्यालय प्रधान रजिस्ट्रार होता है। बोर्ड का अध्यक्ष उच्च न्यायालय का जज या (Copyright Act 1957) सेवानिवृत्त जज होता है, जिसकी सहायता के लिये तीन व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता है।
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