हम जब भूगोल विषय पढ़ते हैं तो महाद्वीप, महासागर, पर्वत श्रेणियां और कई प्रकार के पृथ्वी से जुड़े भौगोलिक भागों का अध्ययन करते हैं। इन्हीं में विश्व तथा भारत की सबसे ऊंची चोटियों का अध्ययन भी हमनें किया है। इसी को लेकर आज हम बात करेंगे भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटी कंचनजंघा की। यह भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में नेपाल की सीमा पर स्थित है। इसे अलग-अलग भाषाओं में विभिन्न नामों से जाना जाता है।
इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। स्थानीय निवासियों के धार्मिक अनुष्ठानों में कंचनजंघा पर्वत को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। माना जाता है कि इसकी ढलान को सदियों पहले सर्वप्रथम चरवाहों और व्यापारियों द्वारा पहचाना गया था। हालांकि विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट है, जिसे नेपाल में सागरमाथा के नाम से जाना है। इसकी ऊंचाई 8,848 मीटर है।
कंचनजंगा का इतिहास
इस चोटी का पहला मानचित्र 19वीं शताब्दी के मध्य में तैयार किया गया था। इसे रीनजिन नांगयाल नामक अन्वेषणकर्ता ने परिपथात्मक मानचित्र के तौर पर बनाया था। इसके बाद वर्ष 1848- 1849 में सर जोजेफ हुकर नामक एक वनस्पतिशास्त्री ने इसका वर्णन किया। ऐसा करने वाले वे पहले यूरोपीय थे। वर्ष 1899 में पर्वतारोही डगलस फ्रेशफ़ील्ड ने इसकी संपूर्ण परिक्रमा की थी। वर्ष 1905 में एक एंग्लो स्विस दल ने यालुंग घाटी मार्ग से इस पर्वत पर जाने की कोशिश की थी।
लेकिन इस अभियान में हिमस्खलन होने के कारण दल के चार सदस्यों की मौत हो गयी थी। वर्ष 1929 और 1931 में एक बाबेरियाई दल ने जेमु की ओर से इसपर चढ़ाई की, लेकिन वे असफल रहे। उस समय इसकी सर्वाधिक ऊंचाई 7700 मीटर मापी गई थी। पर्वत पर चढ़ाई के दौरान हुई घातक दुर्घटनाओं के कारण इसे खतरनाक और कठिन पर्वत का नाम दे दिया था।
विश्व तीसरा सबसे ऊंचा पहाड़
कंचनजंघा अपनी ऊंचाई के कारण विश्व की तीसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी है। जो कि दार्जिलिंग से 74 किलोमीटर दूर सिक्किम राज्य के उत्तर पश्चिम भाग में नेपाल की सीमा पर है। इसकी ऊंचाई आठ हजार पांच सौ छियासी मीटर है। यह पर्वतश्रेणी हिमालय पर्वत श्रेणी का ही एक भाग है। इस पर्वत का आकार एक विशालकाय सलीब यानी तीन कोनों के पर्वत जैसा है। इस पर्वत की भुजाएं उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में फैली हुई है। यह अपने अलग-अलग शिखर से चार मुख्य पर्वतीय कटकों को छूता है। इस पर्वत श्रेणी से चार हिमनद होकर गुजरते हैं। पूर्व से जेमु, दक्षिण-पूर्व से तालूंग, दक्षिण पश्चिम से यालुंग तथा पश्चिमोत्तर से कंचनजंगा।
ऐसे पड़ा नाम
बात करें कंचनजंघा नाम की उत्पत्ति की तो यह शब्द तिब्बती मूल के चार शब्दों से मिलकर बना है। ये शब्द हैं- कांग, छेन, दजों तथा गा। इस तरह कालांतर में इसका नाम कंचनजंघा हो गया। सिक्किम भाषा में इसका अर्थ विशाल हिम की पांच निधियां होता है। जबकि नेपाल में इसे कुंभकरन लंगूर कहा जाता है। कंचनजंघा को लिम्बू सेवालुंगमा भी कहा जाता है।