हर व्यक्ति के अंदर एक जिज्ञासु मन होता है। जिसे दुनिया की सभी छोटी-बड़ी और अनोखी जानकारी जानने की इच्छा होती है। इस संसार में कोई चीज कैसे हो रही है, क्यों हो रही है यह सब जानना लोगों की प्रवृति होती है। इसके लिए मोटी-मोटी किताबें खंगालना, फेक्ट चैक करना, टेलीविजन से जानकारी प्राप्त करना और रोजाना समाचार पढ़ना जैसे काम व्यक्ति करता रहता है।
अगर सर्वे किया जाए तो 99 प्रतिशत लोग जिज्ञासु होते हैं। वे जानना चाहते हैं कि इस संसार की सबसे ऊंची जगह कौनसी है, सबसे बड़ी नदी कौनसी कहां है या फलां-फलां स्थान किस लिए मशहूर है। इस तरह न जाने कितने अनगिनत सवाल हैं जिनके जवाब जानने के लिए व्यक्ति खोज करता रहता है। ऐसे ही एक सवाल का जवाब हम जानेंगे आज के कॉर्नर में… लगभग सभी को यह तो पता है कि भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा है, लेकिन दूसरा सबसे ऊंचा पर्वत कौनसा है यह जानना भी जरूरी है।
कितने मीटर ऊंची है चोटी
पूर्व में हम जान चुकें है कि भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा है। जिसकी ऊंचाई 8556 मीटर है। अब जानेंगे दूसरी सबसे ऊंची चोटी के बारे में, जिसका नाम नन्दा देवी है। यह भारत की दूसरी तथा विश्व की 23वीं सबसे ऊंची चोटी है। यह हिमालय पर्वत शृंखला के बीच भारत के उत्तरांचल राज्य में बसी हुई है, जिसके पूर्व में गौरीगंगा तथा पश्चिम में ऋषिगंगा घाटियां है। नंदा देवी पर्वत की ऊंचाई 7817 मीटर है।
इस पर्वत पर माता नंदा का मंदिर भी बना हुआ है, जिनके दर्शन करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। देशभर में इसे नंदा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस चोटी के दो छोर हैं, अव्वल तो नंदा देवी और दूसरी नंदादेवी ईस्ट। दोनों छोर के बीच में दो किलोमीटर लम्बा रिज क्षेत्र है। नंदा देवी के आस-पास के क्षेत्र को नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया है। वर्ष 1988 में इस पार्क को यूनेस्को द्वारा प्राकृतिक महत्व की विश्व धरोहर के तौर पर सम्मानित किया जा चुका है।
नंदादेवी पर जाने वाले पहले व्यक्ति
वर्ष 1936 में ब्रिटिश-अमेरिकी अभियान ने इस चोटी तक पहुंचने में सफलता हासिल की थी। इस अभियान में शामिल नोयल ऑडेल और बिल तिलमेन नंदादेवी शिखर तक जाकर चोटी को छूने वाले पहले व्यक्ति थे। इसके 30 वर्ष बाद एन.कुमार के नेतृत्व में नन्दादेवी पर दूसरा सफल अभियान वर्ष 1964 में पहुंचा। जबकि इसके दूसरे छोर नन्दादेवी ईस्ट पर वर्ष 1939 में सबसे पहले पोलेंड की टीम पहुंची थी।
नंदादेवी की चढ़ाई करते समय खतरनाक दर्रे और हिमनद आते हैं। इस पर जाने वाले पर्वतारोहियों का कहना है कि शिखर के आसपास का क्षेत्र काफी सुंदर और शांत है। हिमशिखर तक पहुंचने के लिए कई आड़े-तिरछे पहाड़ों को पार करना पड़ता है।
कुछ दिलचस्प किस्से
वर्ष 1934 तक इस शिखर पर जाने का का रास्ता थोड़ा आसान कर दिया गया। वर्ष 1976 में भारत-जापान के संयुक्त अभियान ने पहली बार इसके दोनों शिखरों को छूआ। वर्ष 1980 में भारतीय सेना का एक अभियान चोटी तक पहुंचने में असफल रहा। वर्ष 1981 में पहली बार रेखा शर्मा, हर्षवंति बिष्ट तथा चंद्रप्रभा ऐतवाल नामक तीन महिलाओं की टीम ने यहां पहुंचने में सफलता पायी।