Success Story: हर व्यक्ति की सफलता की कहानी अलग होती है। वो कहते हैं ना जितने लोग उतनी कहानियां। लेकिन लोग उन्हीं लोगों की मिसाल देते हैं जिनकी सफलता में संघर्ष और परेशानियों का जिक्र किया गया हो। ऐसी ही संघर्ष से भरी कहानी है छत्तीसगढ़ की बेटी की, जिसका नाम देवश्री है। रायपुर के गुढ़ियारी में जनता कॉलोनी की रहने वाली देवश्री जन्म से ही नेत्रहीन है। बावजूद इसके उसने पीएचडी की डिग्री प्राप्त की।
देवश्री ने समाज के हर उस व्यक्ति को गौरवान्वित महसूस करवाया है जो थोड़ी सी बाधा आने पर घबरा जाते हैं। लेकिन देवश्री का सफर उसके पिता के बिना अधूरा था। सफलता के लिए जितनी मेहनत उसने की, उससे कई अधिक योगदान देवश्री के पिता का भी रहा। बता दें कि देवश्री को पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से पीचडी (PHd) की उपाधि मिली है। इस डिग्री को प्राप्त करने में उनके पिता ने दिन-रात मेहनत कर साथ दिया।
जन्म से नेत्रहीन है देवश्री
देवश्री जन्म से नेत्रहीन है। लेकिन उसने कभी इसे अपने जीवन की समस्या नहीं मानी। लगातार पढ़ाई करती रही और अब पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है। अपने नाम के आगे डॉ. लगवाकर देवश्री ने साबित कर दिया है कि, कितनी ही समस्या क्यों न आए मेहनत और लगन से हर सपना पुरा किया जा सकता है। वह बाकि लोगों की तरह दुनिया तो नहीं देख सकतीं, लेकिन अपने लक्ष्य को प्राप्त कर उसने समाज के हर व्यक्ति की आंख खोल दी है। उसके लगातार संघर्ष और दृढ़ संकल्प की बदौलत आज उसने इतना बड़ा मुकाम हासिल किया है। वह कहती है कि नेत्रहीन हूं तो क्या हुआ, रात दिन मेहनत करके मेरे माता-पिता ने मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया है।
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पिता ने रात-रात भर लिखे थीसिस
इस सफलता का श्रेय जितना देवश्री को जाता है उतना ही उसके पिता गोपीचंद को मिलता है। दरअसल उसके लिए अकेले थीसिस लिखना मुश्किल था, इसलिए पीएचडी के थीसिस लिखने में देवश्री के पिता ने उसका पूरा सहयोग किया। वह बोलती जाती और उसके पिता लिखते जाते थे। उसके पिता महज 10वीं पास है, लेकिन उन्होंने पीएचडी के थीसिस लिखने में देवश्री की मदद की है। वे रात-रात भर जागकर अपनी बेटी के लिए थीसिस बनाया करते थे। वह सफलता का श्रेय अपने पिता को देती है। उसका कहना है कि ‘माता-पिता ने हमारा हौसला बढ़ाया और हमको हिम्मत दी, उनकी वजह से ही हम इस मुकाम तक पहुंचे हैं’।
समाज के लिए करना चाहती है काम
देवश्री के पिता छोटी सी दुकान चलाकर घर खर्च चलाते हैं। वह कहती है कि हम छोटे से मकान में रहते हैं। पापा दुकान भी चलाते हैं और समय निकालकर शुरू से हमें पढ़ाते आए हैं। उसने कहा कि “आज मुझे पीएचडी की डिग्री मिली तो मेरे पापा की मेहनत रंग लाई है।” देवश्री का कहना है कि वह समाज के लोगों के लिए सार्थक कार्य करना चाहती है। बता दें कि उसकी इस सफलता से देवश्री से अधिक उनका परिवार खुश है। उसने कहा कि ‘आज मैं जो कुछ भी हूं, अपने माता-पिता की बदौलत हूं, उन्होंने हमारा हौसला बढ़ाया और मुझे हिम्मत दी।’