नई दिल्ली। संसद का पांच दिवसीय विशेष सत्र आज से शुरू हो गया है। लोकसभा और राज्यसभा की पहले दिन की कार्यवाही संसद के पुराने भवन में चल रही है। लेकिन, कल से संसद की कार्यवाही संसद के नए भवन में होगी। इस दौरान आठ बिलों पर विचार करने के बाद पारित करवाने की योजना है। लेकिन, विपक्ष की ओर से 27 सालों से लंबित महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश करने की मांग उठाई जा रही है।
महिला आरक्षण विधेयक को लेकर साल 2010 में आखिरी बार कोशिश की गई थी। उसके बाद से यह विधेयक ठंडे बस्ते है। लेकिन, अब 27 साल बाद एक बार फिर महिला आरक्षण विधेयक की मांग उठ रही है। विपक्ष इस चर्चा चाहता है और सरकार से बार-बार मांग कर रहा है कि इस विधेयक को पारित करवाया जाएं। इसके लिए सोनिया गांधी भी पीएम मोदी को पत्र लिख चुकी है। लेकिन, इस तीन दशकों से अटके महिला आरक्षण बिल की नैया पार होने पर अभी भी संशय है।
इन विधेयकों पर होगी चर्चा…
क्योंकि सरकार की ओर से रविवार को आठ विधेयकों की सूची जारी की गई थी, जिन्हें संसद के विशेष सत्र में पेश किया जाएगा। जिनमें द रिपिलिंग और अमेंडिंग बिल, द पोस्ट ऑफिस बिल, अधिवक्ता बिल, द प्रेस और प्रिडिकल रजिस्ट्रेशन बिल, वरिष्ठ नागरिक कल्याण विधेयक, जम्मू कश्मीर रिजर्वेशन बिल, जम्मू कश्मीर एससी ऑर्डर बिल और द कॉन्स्टिट्यूशन एसटी बिल शामिल है। ऐसे में माना जा रहा है कि महिला आरक्षण विधेयक पर सरकार शायद ही चर्चा करें। हालांकि, विपक्ष लगातार चर्चा की मांग कर रहा है।
लोकसभा-राज्यसभा में अभी कितनी महिलाएं?
लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 15 फीसदी से कम है। वहीं, राज्यसभा में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व करीब 14 प्रतिशत है। वर्तमान लोकसभा में 78 महिला सदस्य चुनी गईं, जो कुल संख्या 543 के 15 प्रतिशत से भी कम हैं। इसके अलावा राज्य विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से भी कम है।
दिसंबर 2022 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में 10-12 प्रतिशत महिला विधायक थी। जबकि छत्तीसगढ़ में 14.44, पश्चिम बंगाल में 13.7 और झारखंड में 12.35 प्रतिशत महिला विधायक हैं।
आखिरी बार 2010 में कोशिश…
संसद में इस मुद्दे को लेकर आखिरी बार कदम 2010 में उठाया गया था, जब राज्यसभा ने हंगामे के बीच बिल पास कर दिया था और मार्शलों ने कुछ सांसदों को बाहर कर दिया था, जिन्होंने महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का विरोध किया था। हालांकि यह विधेयक रद्द हो गया क्योंकि लोकसभा से पारित नहीं हो सका।
साल 1996 में सबसे पहले किया गया था पेश…
महिला आरक्षण बिल को लेकर सबसे पहले साल 1996, 1998 और 1999 में भी पेश किया गया था। उस समय गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में एक संयुक्त संसदीय समिति ने 1996 के विधेयक की जांच की थी और 7 सिफारिशें की थीं। इनमें से पांच को 2008 के विधेयक में शामिल किया गया था, जिसमें एंग्लो इंडियंस के लिए 15 साल की आरक्षण अवधि और उप-आरक्षण शामिल था।
इस बिल में यह भी शामिल था, अगर किसी राज्य में तीन से कम लोकसभा की सीटें हों, दिल्ली विधानसभा में आरक्षण और कम से एक तिहाई आरक्षण। कमेटी की दो सिफारिशों को 2008 के विधेयक में शामिल नहीं किया गया था। पहला राज्यसभा और विधान परिषदों में सीटें आरक्षित करने के लिए था और दूसरा संविधान द्वारा ओबीसी के लिए आरक्षण का विस्तार करने के बाद ओबीसी महिलाओं के लिए उप-आरक्षण के लिए था।