गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीख कभी भी घोषित हो सकती है। इसके लिए भाजपा व कांग्रेस दोनों ही कमर कस चुकी हैं। दोनों ही पार्टियां गुजरात के आदिवासी समुदाय के वोटों को बटोरने की कोशिश में लगी हैं। आदिवासी जनता गुजरात के चुनाव में कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टी आदिवासियों को साधने में जी तोड़ मेहनत कर रही है ये आदिवासी गुजरात की राजनीति में कितना महत्व रखते हैं वह आज हम आपको बता रहे हैं।
राजस्थान के जरिए साध रहे गुजरात
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस समय गुजरात के चुनावी दौरे पर हैं। कल उन्होंने गरबाडा में आदिवासियों को साधा था। सिर्फ कांग्रेसी नहीं भाजपा के शीर्ष नेता भी आदिवासियों के वोट बटोरने की जुगत में हैं। भाजपा के शीर्ष नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात सीमा से सटे राजस्थान के बांसवाड़ा के मानगढ़ में 1 नवंबर को आएंगे। जाहिर है कि वे यहां बसे हुए आदिवासियों को साधने की कोशिश करेंगे।
नरेंद्र मोदी बांसवाड़ा की जनता को कई हजार करोड़ की योजनाओं की सौगात भी देंगे। इसके साथ ही बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की भी अटकलें लगाई जा रही हैं। क्योंकि एक तरफ राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने के लिए कई बार प्रधानमंत्री को पत्र लिख चुके हैं। तो दूसरी तरफ भाजपा आदिवासियों को साधने में कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहती है।
गुजरात से सटा बांसवाड़ा दोनों ही पार्टियों के लिए अहम
बीते 30 सितंबर को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ देर के लिए सिरोही पहुंचे थे। यहां आकर उन्होंने अपने अंदाज से सिरोही का ही नहीं पूरे देश में चर्चा हो गई थी। रात 10 बजे के बाद माइक में बोलने के लिए मना करना तीन बार जनता को दंडवत प्रणाम करने और जल्द ही फिर से आने का वादा कर उन्होंने जनता से जुड़े रहने की कोशिश की। अब आगामी बांसवाड़ा दौरे में वे जनता को कई योजनाओं की सौगात को देंगे ही साथ ही एक साथ तीन राज्यों की आदिवासी जनता को साधने की कोशिश करेंगे। बता दें कि राजस्थान के 8 जिलों में 25 आदिवासी सीटें हैं। इन जिलों में बांसवड़ा भी आता है। अभी इन सीटों में 13 कांग्रेस के पास है और 8 भाजपा के पास हैं। भाजपा इस अंतर को कम करने की जुगत में है। क्यों कि इन 8 जिलों में आदिवासी जनसंख्या का आंकड़ा कुल जनसंख्या का 70.42 प्रतिशत है। इसलिए यह वर्ग दोनों ही पार्टियों कांग्रेस और भाजपा के लिए बेहद जरूरी है।
गुजरात की 27 सीटें पर आदिवासियों का प्रभुत्व
गुजरात की बात करें तो यहां पर आदिवासी समीकरण हर पार्टी को समझना बेहद जरूरी है। क्योंकि आदिवासी वोटों पर जिसकी पकड़ हो गई सत्ता उसके पास आने की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं। देश की कुल आदिवासी जनता जिन राज्यों में रहती हैं, उसमें गुजरात का पांचवा नंबर आता है। तो वहीं गुजरात की आबादी का सातवां हिस्सा आदिवासियों का ही है। यानी गुजरात में आदिवासियों की सख्या लगभग 15 प्रतिशत है। बता दें कि गुजरात में जो 15 फ़ीसदी आदिवासी हैं, उनमें भी कई उपजातियां हैं। इनमें कोकिला, राठवा, वर्ली, गावित, धोडिया, डुबला, भील, नाइकड़ा, चौधरी, पटेलिया, धानका और कोली हैं।
यह आदिवासी गुजरात की 182 विधानसभा सीटों में से 27 सीटों पर अपना प्रभुत्व रखते हैं। इनमें से 5 जिलों में आदिवासियों की अच्छी खासी आबादी है। तापी, वलसाड़, नवसारी, डांग, सूरत, नर्मदा, छोटा उदयपुर, भरूच, अरवल्ली, साबरकांठा, बनासकांठा, महिसागर, पंचम काल, दाहोद में आदिवासी समाज किसी भी पार्टी की जीत हार का फैसला कर सकते हैं। गुजरात में वैसे तो आदिवासी कांग्रेस के पारंपरिक वोटर्स माने जाते हैं, कांग्रेस के इन ‘रिजर्व’ वोटर्स में सेंध लगाने के लिए भाजपा लगभग 30 सालों से जतन कर रही है, लेकिन कुछ खास सफलता उसे मिली नहीं है।
कांग्रेस के पारंपरिक वोटर्स हैं आदिवासी
अगर हम पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो साल 2017 में आदिवासी समाज का लगभग 50 फ़ीसदी वोट कांग्रेस को मिला था। जबकि इनमें से 35 वोट भाजपा के खाते में गए थे। तो इससे पहले 2012 में 16 सीटों पर कांग्रेस ने आदिवासी बहुल सीटों पर कब्जा जमाया था। तो 2017 में 14 सीटें कांग्रेस को मिली थीं। 2007 में कांग्रेस ने 14 सीटें जीती थीं। वहीं बात अगर भाजपा की करें तो भले ही गुजरात को उसका गढ़ माना जाता है। लेकिन गुजरात के ग्रामीण इलाकों में आदिवासी कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक है। इसीलिए भाजपा आदिवासी बहुल सीटों पर अपना कब्जा जमाने की कोशिश कर रही है।
भाजपा ने आदिवासियों को साथ लाने के लिए काफी जतन किए हैं। भाजपा ने कांग्रेस के 16 विधायकों को अपने साथ मिलाया, जिनमें से पांच विधायक आदिवासी समुदाय के थे। ये तो अभी कैबिनेट में मंत्री भी हैं। इसलिए अब चुनाव आते ही एक बार फिर दोनों ही पार्टियां आदिवासियों को रिझाने में लगी हुई हैं।
आम आदमी पार्टी भी नहीं पीछे, बीटीपी के साथ है गठबंधन
अब गुजरात में त्रिकोणीय मुकाबले का दावा कर रही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी आदिवासियों को अपने पाले में करनी की कोशिश में है। तभी तो आप के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया ने बीटीपी यानी भारतीय ट्राइबल पार्टी से गठबंधन की चर्चाएं हैं। गुजरात में आप के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया ने बीटीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश वसावा से गठबंधन की घोषणा की है। इसके अलावा बीटीपी के संस्थापक व विधायक छोटूभाई वसावा ने दिल्ली के सीएम व आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल से मुलाकात कर साथ में चुनाव लड़ने का फैसला भी करर चुके हैं।
राजस्थान-गुजरात में आदिवासियों पर बीटीपी की पकड़
बीटीपी के प्रभाव के बारे में बात करें तो गुजरात में दो व राजस्थान में 3 विधायक हैं। बीटीपी की राजस्थान के उदयपुर, डूंगरपुर में मजबूत पकड़ है। तो वहीं गुजरात के भी, बनासकांठा, अंबाजी, दाहोद, पंचमहाल, छोटा उदयपुर, नर्मदा जिले में अच्छी खासी पकड़ है। पिछला चुनाव बीटीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था। जिसका फायदा दोनों ही पार्टियों को मिला था। कांग्रेस और बीटीपी में विवाद की स्थिति तब बनी, जब 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस से भरूच सीट छोड़ने की मांग की थी, लेकिन कांग्रेस ने बीटीपी की बात न मानकर अपना प्रत्याशी उतार दिया था। तब से इन दोनों दलों में दरार आ गई। अब बीटीपी का आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन हो गया है।