सुप्रीम कोर्ट ने आज बेनामी संपत्ति कानून पर आज सुनवाई की। कोर्ट ने कानून के तहत दी जाने वाली 3 साल की सजा को खत्म कर दिया है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि 2016 में इस कानून में किया गया संशोधन उचित नहीं था। कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि 2016 में जो कानून संसोधन किया गया था, उसमें सरकार को संपत्ति जब्त करने का अधिकार इससे पहले की तारीख पर लागू नहीं होता। यानी 2016 से पहले के मामलों में यह नियम लागू नहीं होता।
क्या है बेनामी संपत्ति कानून
देश की संसद में अगस्त साल 2016 में बेनामी सौदा (निषेध) पारित हुआ था। इसमें बेनामी संपत्ति कानून-1988 का संसोधन किया था। जिसके बाद यह 1 नवंबर साल 2016 से लागू हो गया था। इसके बाद बेनामी सौदे कानून-1988 का नाम बेनामी संपत्ति लेन-देन कानून-2016 हो गया था। इसमें बेनामी लेन-देन करने वालों पर संबंधित संस्था जुर्माना लगाती थी। संशोधन के बाद उस संपत्ति को भी बेनामी माना गया जो किसी फर्जी नाम से खरीदी गई थी। इसका मतलब संपत्ति खरीदने वाले को यह ही पता ही न हो कि संप्तति का असली मालिक कौन है।
ये होती हैं बेनामी संपत्तियां
इस कानून के तहत बेनामी संपत्ति वो है मोटे तौर पर कहें तो इस कानून के हिसाब से संपत्ति का नामी उसका असली मालिक नहीं होता बल्कि वो होता है जिसने संपत्ति के लिए पैसे चुकाए हों। मोदी सरकार के इस कानून के पीछे का एक मुख्य उद्देश्य यह भी था, कि इस तरह संपत्ति खरीदने वालों पर शिकंजा कसा जाए, ताकि काले धन छुपाने वाले सामने आ सकें। क्योंकि बहुत से लोग संपत्ति खरीदने केलिए खुद के नाम के बजाय अपने किसी सगे-संबंधी का नाम दर्ज कराते हैं,जिससे संपत्ति उसके नाम पर खरीदी हुई दिखे और उन पर कोई जांच की आंच न आए।