आज सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर केंद्र से जवाब मांगा है। आज इस मामले में कोर्ट में सुनवाई हुई थी। जिसमें केंद्र को अपना पक्ष रखना था। केंद्र ने इस मामले में जवाब देने के लिए और समय मांगा है। कोर्ट ने जवाब दाखिल करने के 2 हफ्तों का समय दिया गया है और हलफनामा दाखिल करने के लिए 31 अक्टूबर की आखिरी तारीख दी है। इसके साथ ही 14 नवंबर को इस मामले में अगली सुनवाई होगी। बता दें कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई हैं। साथ ही कई और याचिकाएं इसे खारिज करने के लिए दायर की गई हैं।
क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऑफ एक्ट
साल 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान एक अधिनियम बना था। इसका नाम प्लेसेस ऑफ वर्शिप अधिनियम था। दोनों सदनों में पास कराकर इसे कानून का रूप दिया गया। इसके अनुसार 15 अगस्त 1947 यानी आजादी से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धार्मिक स्थल (पूजा स्थल) को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। वहीं अगर कोई इस एक्ट के नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे तीन साल के कारावास की सजा होगी। साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान किया गया।
क्यों बना था एक्ट
बात सन् 1991 में रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर कारसेवकों का विरोध हुआ था औऱ मस्जिद तोड़ दिया गया था। उस समय देश में रथयात्रा निकाली जा रही थी। इस रथयात्रा में भी अयोध्या, मथुरा, काशी के मंदिरों पर मस्जिद तानने की बात का विरोध किया गया था और उन्हें भी बाबरी की तरह ढहाने की मांग उठाई जा रही थी। मामले की संवेदनशीलता को समझते हुए सरकार ने इसे लेकर एक कानून बनाया जिसे प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का नाम दिया गया।
अयोध्य़ा, काशी, मथुरा मामले में बड़ी भूमिका
अयोध्या मामले में ASI सर्वेक्षण की रिपोर्ट में जन्मभूमि वाली जगह पर मंदिर के ही प्रमाण मिले थे और इस मंदिर के सैकड़ों साल पुराने होने की रिपोर्ट भी दर्ज कराई गई थी। लेकिन बाबारी मस्जिद भी इसी मंदिर के ऊपर ही बनाई गई थी। इसलिए अयोध्या मामले में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को दूर ही रखा गया था। काशी के ज्ञानवापी मामले में भी प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को शामिल किया गया है। लेकिन इसमें भी मंदिर के 1991 के पहले के होने के प्रमाण मिले हैं इसे अलावा मथुरा में कृष्णजन्मभूमि वाले मामले में भी वर्शिप ऑफ एक्ट के तहत सुनवाई हो रही है।
क्या है याचिकाएं
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने की याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ताओं में सेना के रिटायर्ड अधिकारी अनिल काबोत्रा, वकील चंद्रशेखर, देवकीनंदन ठाकुर, स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती, रुद्र विक्रम सिंह और बीजेपी के पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय शामिल हैं।
विदेशी आक्रमणकारियों ने जबरन तानी मस्जिदें..कैसे जता सकते हैं अधिकार
याचिका में कहा गया है कि ये एक्ट के कुछ प्रावधान हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय के खिलाफ हैं। जिसके चलते वे उन धार्मिक स्थलों पर दावा नहीं कर सकते, जिनकी जगह पर विदेशी आक्रमणकारियों ने जबरन मस्जिदें तान दी थीं। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था औऱ इस मामले में जवाव मांगा था। लेकिन अब तक केंद्र ने इस मामले में कोई जवाब नहीं दिया था। इसलिए आज फिर से कोर्ट ने ,सुनवाई कर केंद्र से जवाब मांगा है।
इससे पहले हिंदू पुजारियों के संगठन विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ ने इस एक्ट के प्रावधान को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस धर्म का था, वो हमेशा उसी का रहेगा। इस एक्ट को कभी चुनौती नहीं दी गई और ना ही किसी कोर्ट ने इस पर विचार किया।