Uniform Civil Code: देश की सियासत और नेताओं की बयानबाजी में इन दिनों समान नागरिक संहिता (UCC) को लेकर घमासान मचा हुआ है जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को भोपाल में बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यूसीसी पर केंद्र सरकार का रूझान साफ कर दिया है. पीएम मोदी ने मुस्लिम समुदायों के बीच जाकर समान नागरिक संहिता को लेकर किसी भी तरह के भ्रम को दूर करने का आह्वान किया.
उन्होंने कहा कि आज देश का सु्प्रीम कोर्ट भी कह रहा है कि समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से देश में कुछ राजनीतिक दल इसको लेकर जनता के बीच शंकाएं पैदा कर रहे हैं. माना जा रहा है कि पीएम ने समान नागरिक संहिता को लेकर अपने रुख से बीजेपी के 2024 के चुनावी मूड की ओर भी इशारा किया है.
PM मोदी का कटाक्ष, 2024 का इशारा!
भोपाल में बीजेपी की ओर से आयोजित ‘मेरा बूथ, सबसे मजबूत’ कार्यक्रम में पार्टी के बूथ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पीएम ने मंगलवार को कहा कि एक देश में दोहरी व्यवस्था कैसे चल सकती है. उन्होंने कहा कि यूसीसी पर जो हो रहा है वो हम देख रहे हैं कि कैसे यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर लोगों को भड़काया जा रहा है. पीएम ने कहा कि एक घर में एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे के लिए दूसरा तो घर चल पायेगा क्या?
वहीं पीएम ने विपक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा कि ये लोग यूसीसी के मुद्दे पर मुसलमानों को गुमराह करने का काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा, हमें ध्यान रखना चाहिए कि देश का संविधान हर किसी को समान अधिकार देता है और समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होना जो किसी भी धर्म पर आधारित नहीं हो.
हालांकि यूसीसी पर काफी दिनों से बहस चल रही है जहां सत्ता और विपक्ष दोनों एक दूसरे पर बयानबाजी कर रहे हैं लेकिन आज हम आपको बताते हैं कि समान नागरिक संहिता की बहस कितनी पुरानी है और इसको लेकर पहली बार कब आवाज उठी थी.
अंग्रेजों के जमाने में पड़ी थी नींव
बता दें कि समान नागरिक संहिता को लेकर बहस काफी पुरानी है जहां इसको लेकर संविधान सभा में भी कई बहसें हुई थी. हालांकि कोई फैसला नहीं हो पाया. वहीं इसके बाद कितनी ही सरकारें आई और चली गई लेकिन अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं हुआ. दरअसल हमारे देश में अलग-अलग धर्म के आधार पर शादी, तलाक और संपत्ति के लिए अलग कानून हैं लेकिन समान नागरिक संहिता कहता है कि सभी वर्ग के लिए एक ही कानून लागू होगा और जिसका आधार धर्म नहीं होगा.
जानकारी के मुताबिक समान नागरिक संहिता का आधार 1835 में ब्रिटिश राज के दौरान आई एक रिपोर्ट को माना जाता है जिसके मुताबिक भारतीय कानून में एकरूपता की जरूरत है और इसमें यह भी बताया गया कि देश के हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इससे बाहर रखा जाए. वहीं इसके बाद 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिए बीएन राऊ की एक समिति बनाई गई जिसने कानून की सिफारिशें धर्मग्रंथों के आधार पर दी.
संविधान सभा में हो चुकी है बहस
वहीं संविधान सभा की बैठक में भी समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठ चुका है लेकिन उस दौरान अल्पसंख्यक समुदायों ने इसका विरोध किया जिसके बाद इस पर मामला रूक गया और संविधान में राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत के भाग 4 में अनुच्छेद 44 के तहत केवल एक लाइन जोड़ी गई जिसके मुताबिक राज्य देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता बनाए रखने का प्रयास करेगा.
वहीं इस दौरान हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम 1956 जैसे कानून भी पारित किए गए. गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता पर फिर बहस 1985 में शाहबानो केस के दौरान भी वापस हुई थी.