नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि पिछड़ी जातियों में जो लोग आरक्षण के हकदार थे और इससे लाभान्वित भी हो चुके हैं, उन्हें अब आरक्षित कैटेगरी से बाहर निकलना चाहिए। साथ ही यह भी कहा कि उन्हें अधिक पिछड़ों के लिए रास्ता बनाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संविधान पीठ ने मंगलवार को ‘इस कानूनी सवाल की समीक्षा शुरू कर दी कि क्या राज्य सरकार को शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है?’
संविधान पीठ ने सुनवाई के पहले दिन कहा कि वह 2004 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की वैधता की समीक्षा करेगा, जिसमें कहा गया था कि राज्यों के पास आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आगे उप-वर्गीकृत करने का अधिकार नहीं है। सुनवाई के दौरान जस्टिस विक्रम नाथ ने पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह की दलीलों का सारांश देते हुए कहा कि इन जातियों को बाहर क्यों नहीं निकालना चाहिए? आपके अनुसार एक विशेष वर्ग में कुछ उपजातियों बेहतर प्रदर्शन किया है। वे उस श्रेणी में आगे हैं। उन्हें उससे बाहर आकर जनरल से मुकाबला करना चाहिए।
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वहां क्यों रहें? जो पिछड़े में अभी भी पिछड़े हैं, उन्हें आरक्षण मिलने दो। एक बार जब आप आरक्षण की अवधारणा को प्राप्त कर लेते हैं, तो आपको उस आरक्षण से बाहर निकल जाना चाहिए। महाधिवक्ता ने कहा कि यही उद्देश्य है। यदि वह लक्ष्य प्राप्त हो जाता है तो जिस उद्देश्य के लिए यह अभ्यास किया गया था वह समाप्त हो जाना चाहिए। देश के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में जस्टिस बी आर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं।
संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान यह साफ कर दिया कि वह सिर्फ मात्रात्मक डेटा से संबंधित तर्कों में नहीं पड़ेगी जिसके चलते पंजाब सरकार को कोटा के अंदर 50 फीसदी कोटा प्रदान करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट उन 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती दे दी गई है। इसमें पंजाब सरकार की मुख्य अपील भी शामिल है।
2020 में लार्जर बेंच को हुआ था रेफर
सुप्रीम कोर्ट ने 2020 के एक फैसले में कहा था कि अगर राज्यों को रिजर्वेशन देने का अधिकार है, तो वे उप जाति का वर्ग बनाकर उसका विस्तार भी कर सकते हैं। कोर्ट ने 2004 वाले फैसले पर फिर विचार करने की जरूरत बताते हुए कहा था कि इस मामले को चीफ जस्टिस के पास भेजा जाना चाहिए, ताकि सुनवाई के लिए उचित बेंच का गठन हो सके।
आरक्षण का मुद्दा है अहम
राज्यों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के साथ ही ओबीसी वर्ग में सब कैटेगरी आरक्षण के मुद्दे पर लंबे समय से बहस होती आ रही है। लोकसभा चुनाव को देखते हुए यह मुद्दा काफी अहम है। राज्य सरकारों की तरफ से आरक्षण की सीमा तय कैटेगरी से बढ़ा कर अलग-अलग समुदाय को आरक्षण देने के मामले पहले भी आए हैं। इन मामलों को समय-समय पर अदालत में चुनौती मिली है।
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