Women Reservation Bill: देश की नई संसद में गणेश चतुर्थी के दिन कामकाज शुरू होने जा रहा है जहां देश की आधी आबादी के लिए भी मंगलवार का दिन ऐतिहासिक होने वाला है. दरअसल सोमवार को संसद से विशेष सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दी गई जिसके बाद माना जा रहा है कि बिल आज संसद में पेश किया जा सकता है.
मोदी सरकार ने देश की 50 फीसदी आबादी के लिए 2024 चुनानों से पहले बड़ा निर्णय लिया है. बता दें कि महिला आरक्षण बिल को देश की संसद में अब तक 6 बार पेश किया गया है लेकिन हर बार यह बिल कानून की शक्ल लेने में अटक गया.
दरअसल 1996 में देवेगौड़ा सरकार ने पहली बार यह बिल पेश किया था जिसके बाद वाजपेयी सरकार 4 बार यह बिल लेकर आई. वहीं 2008 में UPA सरकार ने भी महिला आरक्षण बिल पेश किया था जहां 2010 में बिल राज्यसभा से पास हो गया लेकिन लोकसभा में अटक गया था.
बिल को फाड़ने का भी है इतिहास
बता दें कि महिला आरक्षण बिल का एक लंबा इतिहास है जहां यह विधेयक जब अपने शुरुआती दौर में पेश किया गया था तो इसे फाड़ दिया गया था. इतिहास के मुताबिक 1998 में तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के हाथ से आरजेडी सांसद सुरेंद्र यादव ने बिल को फाड़ा था जिसे संसदीय इतिहास का काला दिन भी कहा जाता है. हालांकि इसके बाद सुरेंद्र यादव कभी सांसद बनकर लोकसभा नहीं पहुंचे.
क्या मोदी सरकार का है मास्टरस्ट्रोक?
बताया जा रहा है कि अगर 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले बिल को लागू कर दिया जाता है तो देश की संसद में महिला सांसदों का पूरा गणित बदल जाएगा. मालूम हो कि वर्तमान में लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 78 है लेकिन अगर महिला आरक्षण बिल पास होकर कानून बन जाता है तो महिला सांसदों की संख्या कम से कम 33 परसेंट के हिसाब से 179 के करीब होगी.
वहीं अगर चुनावी आंकड़ों की बात करें तो महिला वोटर बीजेपी की ताकत रही है और 2014 में बीजेपी को 29 परसेंट महिलाओं ने वोट दिया था जिसके बाद 2019 के चुनावों में यही बढ़कर 36 परसेंट तक पहुंच गया था.
कहां से आया महिला आरक्षण का विचार
गौरतलब है कि आजादी से पहले सरोजिनी नायडु ने महिला आरक्षण को लेकर पहली बार विचार सामने रखा था जहां स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी देखकर 1931 में सरोजिनी नायडू ने ब्रिटिश पीएम को एक पत्र लिखकर इस पर विचार करने को कहा था. नायडू ने पत्र में महिलाओं को राजनीतिक अधिकार देने की पैरवी की थी. उन्होंने कहा था कि महिलाओं को लोकतांत्रिक तरीके से चुना जाए वो ही उनका असली अधिकार है.