MP Election : ग्वालियर। मध्यप्रदेश के लिए विधानसभा चुनाव तिथि की घोषणा के कुछ घंटों बाद ही भाजपा ने विधानसभा प्रत्याशियों की चौथी सूची भी जारी कर दी। इसमें 57 प्रत्याशियों के नाम शामिल हैं। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत 25 मंत्रियों और मौजूदा विधायकों के नाम शामिल हैं। भाजपा इससे पहले 79 नाम घोषित कर चुकी है। अब तक पार्टी राज्य के लिए 136 प्रत्याशियों के नाम घोषित कर चुकी है। 94 सीटों के नाम अभी भी बाकी हैं।
पार्टी ने ग्वालियर- चंबल संभाग से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक नेताओं को टिकट देकर भरोसा जताया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को बुदनी से दोबारा टिकट दिया है। चौहान की कैबिनेट में 34 मंत्री हैं। सीएम चौहान के करीबी मंत्रियों को भी टिकट दे दिया गया है। इससे लगता है कि चौहान के नेतृत्व में ही चुनाव होने जा रहा है। पहले ऐसी अटकलें लगाई जा रही थी कि चौहान को चुनाव नहीं लड़ाया जाएगा।
इन मंत्रियों को मैदान में उतारा
शिवराज सरकार के जिन मंत्रियों को टिकट देकर मैदान में उतार दिया गया है, उनमें डॉक्टर प्रभु राम चौधरी, गोपाल भार्गव, कमल पटेल, भूपेंद्र सिंह, गोविंद सिंह राजपूत, मोहन यादव, तुलसीराम सिलावट, राजेंद्र शुक्ला, नरोत्तम मिश्रा,प्रदुमन मधु सिंह तोमर, बृजेंद्र प्रताप सिंह, विश्वास सारंग सहित कई बड़े नाम शामिल है।
सिंधिया समर्थक पांच मंत्रियों को टिकट
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में सफल रहे हैं। इसमें सांवेर से तुलसीराम सिलावट, बदनावर से राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, ग्वालियर से प्रदुमन मधु सिंह तोमर, सुरखी से गोविंद सिंह राजपूत और सांची से प्रभुराम चौधरी शामिल हैं। राजपूत ने 2018 में कांग्रेस से चुनाव लड़ा था और उन्होंने भाजपा प्रत्याशी सुधीर यादव को हराया था। राजपूत कमलनाथ की 15 महीने की सरकार में भी मंत्री थे। पार्टी ने ग्वालियर में अभी तक 6 सीटों में से 4 के प्रत्याशी घोषित कर दिए है। जिनमें से तीन सीटों पर सिंधिया के समर्थकों टिकट दिया गया है।
एक चरण में मतदान से नहीं मिलेगा रणनीति में बदलाव का मौका
मध्य प्रदेश की 230 सीटों के लिए 17 नवंबर को मतदान होगा। यहां सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 116 सीटें हैं। राज्य में कुल 230 विधानसभा सीटों में से 35 सीटें एससी के लिए और 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। एक ही तारीख में चुनाव होने से सभी राजनीतिक पार्टियों को एक ही बार में अपनी पूरी ताकत झोंकनी होगी।
पहले की तरह विभिन्न चरणों में चुनाव होने से विभिन्न राजनीतिक दलों को अपनी रणनीति बदलने में आसानी होती थी। दलों को फीडबैक से संकेत मिल जाते थे कि आरंभिक चरण में उनका प्रदर्शन कैसा रहा। यदि पहले चरण के चुनाव में कमजोर प्रदर्शन रहता था तो पार्टी इसकी भरपाई दूसरे व अन्य चरण में करने की कोशिश करती थी। लेकिन एक ही चरण के चलते अब ऐसा मौका नहीं मिलेगा।
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