No Confidence Motion : नई दिल्ली। मणिपुर मुद्दे पर विपक्ष आज लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ ‘अविश्वास’ प्रस्ताव ला रहा है। आजादी के बाद से यह 28वां अविश्वास प्रस्ताव होगा। लेकिन, इस कार्यकाल में ये दूसरी बार है जब पीएम मोदी अविश्वास प्रस्ताव का सामना करेंगे। इससे पहले मोदी सरकार को 2018 में अपने पहले ‘अविश्वास’ प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। हालांकि, तब यह प्रस्ताव भारी अंतर से गिर गया था।
लेकिन, क्या आपको पता है कि आजादी के बाद भारतीय संसद में पहली अविश्वास प्रस्ताव कब आया था और कौनसे पीएम को सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा? लेकिन, इससे पहले यह जानना जरूरी है कि अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है और कैसे पारित होता है?
क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव और कैसे होता है पारित?
संसदीय प्रक्रिया में अविश्वास प्रस्ताव यानी निंदा प्रस्ताव एक संसदीय प्रस्ताव है, जिसे पारंपरिक रूप से विपक्ष की ओर से संसद में केंद्र सरकार को कमजोर करने की उम्मीद से रखा जाता है। यह प्रस्ताव केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है। संसद के कम से कम 50 सदस्यों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने के बाद अध्यक्ष अनुमति दे सकता है। सदन में विचार करने के बाद प्रस्ताव पर चर्चा के लिए समय दिया जाता है।
इसके बाद पक्ष और विपक्ष के सांसद लोकसभा में प्रस्ताव वाले मुद्दे पर वोटिंग करते है। यदि अधिकांश सदस्य प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करते हैं, तो यह पारित हो जाता है। लोकसभा द्वारा प्रस्ताव पारित कर दिए जाने पर मंत्रि परिषद राष्ट्रपति को त्याग पत्र सौंप देती है। संसद के एक सत्र मे एक से अधिक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाए जा सकते है।
जानें, किसके शासन में आए सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव?
वैसे तो आजादी के बाद से अब तक 28 बार अविश्वास प्रस्ताव आ चुके हैं। लेकिन, भारत के इतिहास में पहली बार भारत-चीन युद्ध के तुरंत बाद अगस्त 1963 में लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। उस वक्त पंडित जाहर लाल नेहरू की सरकार थी। तब जेबी कृपलानी लोकसभ के पटल पर यह प्रस्ताव रखा तो पक्ष में 62 वोट पड़े थे और विरोध में 347 वोट पड़े थे। हालांकि, सरकार को कोई खतरा नहीं हुआ था। लेकिन, इंदिरा गांधी को सबसे अधिक अविश्वास प्रस्तावों का सामना करना पड़ा था। 15 साल तक प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी को 15 बार ही अविश्वास प्रस्तावों का सामना करना पड़ा था।
वहीं, लाल बहादुर शास्त्री और पीवी नरसिम्हा राव को तीन-तीन बार, मोरारजी देसाई को दो बार और जवाहरलाल नेहरू, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी व नरेंद्र मोदी को एक-एक बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। खास बात ये रही कि मनमोहन सिंह अकेले ऐसे पीएम थे, जिन्हें 10 साल के कार्यकाल में एक बार भी ऐसे प्रस्ताव का सामना नहीं करना पड़ा था।
अविश्वास प्रस्ताव से पहले ही डर गए थे देसाई
27 में से 26 अविश्वास प्रस्ताव ऐसे थे, वोटिंग के चरण तक पहुंचे थे। सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्तावों का सामना करने वाली इंदिरा गांधी हर अपनी सरकार को बचाने में कामयाब रही थी। लेकिन, मोराजी देसाई गच्चा खा गए थे। वाईबी चव्हाण ने साल 1979 में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया तो मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई थी। प्रधान मंत्री देसाई ने 12 जुलाई 1979 को इस्तीफा दे दिया था। उनके शासन काल में दो बार अविश्वास प्रस्ताव आए थे।
पहला प्रस्ताव तो प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। लेकिन, दूसरे अविश्वास प्रस्ताव से पहले ही देसाई ने हार मानते हुए इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, वोटिंग नहीं हुई थी। अटल बिहारी वाजपेयी भी अप्रैल 1999 में वोट (269-270) के अंतर से अविश्वास प्रस्ताव हार गए थे।
अविश्वास प्रस्ताव के कारण कभी नहीं गिरी सरकार
भारतीय इतिहास में अब तक 27 अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में पटल पर रखे जा चुके है। जिनमें से 26 प्रस्ताव ऐसे थे, जिन पर वोटिंग हुई थी। लेकिन, खास बात ये रही कि किसी भी अविश्वास प्रस्ताव के कारण कभी भारत में सरकार नहीं गिरी थी। हालांकि, तीन बार ऐसे मौके आए थे जब विश्वास मत के कारण सरकार गिर गई थी। बता दे कि 1990 में वीपी सिंह सरकार, 1997 में एचडी देवगौड़ा सरकार और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार विश्वास मत पर हुई वोटिंग के कारण गिर गई थी।