Gujarat Election 2022 : गुजरात में भाजपा ने इस बार रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल की है। पार्टी ने पिछली बार मिली कम सीटों का ठप्पा भी हटा दिया है। दूसरी तरफ कांग्रेस को मिली करारी हार ने पार्टी को गहन चिंतन का विषय दे दिया है। ये इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि क्योंकि पिछली बार के चुनाव में कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं जो कि गुजरात में उसकी मजबूत पकड़ की गवाही दे रही थी। वहीं इस बार के नतीजों में कांग्रेस 77 से 17 सीट पर सिमट गई है। दूसरी तरफ त्रिकोणीय मुकाबले का दंभ भरने वाली आप तो अब गिनती में भी नहीं आ रही है।
27 साल से भाजपा का काम बोल रहा है..
गुजरात के इन चुनावों ने साफ कर दिया है कि वहां की जनता 27 साल के इस शासन को आगे बढ़ाना चाहती है और 182 में 157 सीटें मिलने का मतलब है कि 27 साल बाद भी राज्य में पार्टी विरोधी कोई लहर तो क्या हवा नहीं है। भाजपा को नरेंद्र मोदी ने अपने मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में इतना मजबूत कर दिया है कि राज्य में एंटी इनकंबेंसी का कोई औचित्य ही न रहे।
मुद्दों में जान नहीं फूंक पाई कांग्रेस!
दूसरी तरफ कांग्रेस की इस हार के कई बड़े कारण नजर आ रहे हैं। हालांकि कांग्रेस ने कई मुद्दों पर भाजपा को घेरने की कोशिश तो की पर उनमें वो वैसी जान नहीं डाल पाई जैसी एक लहर बनाने की लिए जरूरी थी। उदाहरण के लिए मोरबी का केस ले लेते हैं । कांग्रेस ने इसे गुजरात चुनाव का सबसे अहम मुद्दा बनाया था। इस मुद्दे पर लगातार कैंपेनिंग की गई थी। लेकिन मोरबी हादसे के बाद भाजपा की कुछ दिनों के भीतर कार्रवाई करने और दोषियों की गिरफ्तारी ने इसे भी कमजोर कर दिया।
दूसरे राज्य के नेताओं का गुजरात में जनाधार न होना भी हार की वजह
इसके अलावा कांग्रेस की हार का एक और कारण नजर आता है वो यह है कि कांग्रेस हाईकमान खुद चुनाव कैंपेनिंग से दूर रहा उसने पूरे चुनाव प्रचार का जिम्मा छत्तीसगढ़ और राजस्थान के नेताओं पर डाल दिया। हालांकि इन नेताओं ने गुजरात में जमकर पसीना बहाया, तमाम बड़ी रैलियां की, बड़े-बड़े वादे किए लेकिन इसके बावजूद एक सबसे बड़ी कमी जो वे पूरी नहीं कर सके। वो था इन नेताओं का गुजरात में जनाधार। इस तथ्य से इनकार नहीं किया नहीं जा सकता कि किसी भी राज्य में चुनाव जीतने के लिए किसी उस पार्टी के नेता का जनाधार होना बेहद जरूरी है।
पटेल राजनीति को किया दरकिनार
कांग्रेस को सबसे ज्यादा उनके कद्दावर नेता अहमद पटेल की भी कमी खली, क्योंकि एक अहमद पटेल ही थे को पटेल राजनीति में गुजरात का एक बड़ा चेहरा थे। उन्होंने कांग्रेस को गुजरात में मजबूत करने में काफी मेहनत की थी। गुजरात में एक विश्लेषण यह भी बताया था की गुजरात के खास इलाकों खासकर आदिवासी बहुल इलाके में कांग्रेस का राज रहता है। यहां भाजपा को एक कमजोर कड़ी माना जाता है। जिसका कांग्रेस को इतना आत्मविश्वास तो था की इन क्षेत्रों में उसे हारने का दम भाजपा में नहीं है। आदिवासियों को साधने के लिए कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा के बीच में से राहुल गांधी को गुजरात लाकर उनसे जनसभा कराई थी। उस वक्त राहुल गांधी ने अपने संबोधन में कहा था कि देश पर पहला हक आदिवासियों पर है।
यहां एक बात और गौर करने वाली है की राहुल गांधी और कांग्रेस ने आदिवासियों पर जितना जोर दिया उतना दूसरे जातिवर्ग के वोटर पर नहीं दिया। क्योंकि गुजरात की राजनीति में पटेल कितने अहम है इसका विश्लेषण देने को जरूरत नहीं, गुजरात में प्रत्याशी की हार और जीत का फैसला यही पटेल समाज करता हैं। हार्दिक पटेल के रूप में कांग्रेस को एक मजबूत साथी मिला था, जिसके पास जनाधार से लेकर जमीनी सोच और रणनीति थी लेकिन हार्दिक पटेल के भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस ने गुजरात की राजनीति में एक मजबूत पकड़ बनाने का भी मौका गंवा दिया।