मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष बने हैं। इसीके साथ खड़गे ने कांग्रेस के इतिहास में अपना नाम भी दर्ज करा लिया है। क्योंकि वे दलित समुदाय से आने वाले दूसरे ऐसे नेता हैं जो देश की इस सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष बने हैं। लगभग 50 साल पहले 1970 में जगजीवन राम कांग्रेस के पहले दलित अध्यक्ष बने थे। अब अगर चुनावों की दृष्टि से देखें तो मल्लिकार्जुन खड़गे भंवर में फंसी कांग्रेस की नैय्या को बाहर निकालने के लिए प्रतिबद्ध होंगे। क्योंकि मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक से ताल्लुक रखते हैं, कर्नाटक में भारत जोड़ो यात्रा के सफल होने की भी काफी चर्चाएं चल रहीं हैं। लेकिन खड़गे का जो कद पार्टी में है इस हिसाब का जनाधार दक्षिण भारत में उनके लिए नहीं दिखता। इसलिए खड़गे के लिए परिस्थिति और भी ज्यादा कठिन और चुनौतीपूर्ण होने वाली हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के पास एक लंबा राजनीतिक अनुभव है। खड़गे पेशे से वकील रहे हैं। साल 1969 में वे कर्नाटक गुलबर्ग सिटी कांग्रेस के अध्यक्ष बने। इसके बाद साल 1972 में वे विधायक बने, ये सिलसिला 2009 तक ऐसे ही चलता रहा। इस दौरान वे कुल 9 बार विधायक बने। साल 1976 में वे कर्नाटक सरकार में मंत्री बने। साल 2005 में वे कर्नाटक के प्रदेश अध्यक्ष बने। कांग्रेस पार्टी की वर्तमान में दक्षिण भारत में हालत कुछ ठीक है। यहां के कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल और आंध्र प्रदेश में लोकसभा की कुल 125 सीट हैं उनमें से सिर्फ 28 सीटों पर कांग्रेस के सांसद हैं। मिशन साउथ के लिए भाजपा पहले से ही जमीन तैयार करने में लगी हुई है ऐसी उसका सीधा सामना भाजपा से होगा। लेकिन इस बात की संभावना जरूर है कि कर्नाटक में खड़गे भाजपा से टक्कर लेने वाली कांग्रेस का अहम चेहरा होंगे।
कांग्रेस आने वाले लोकसभा चुनावों और विधानसभा चुनावों में दलित कार्ड खेले इसमें आश्चर्यजनक बात नहीं होनी चाहिए। खड़गे के अध्यक्ष होने से कांग्रेस को एक फायदा और है वो ये कि खड़गे एक साफ छवि के नेता रहे हैं पार्टी के अंदर या बाहर उनके किसी भी नेता के साथ व्यक्तिगत मनमुटाव नही है। जिसका कांग्रेस पूरा फायदा उठाएगी क्योंकि भाजपा को कांग्रेस के इस दलित चेहरे पर कोई उंगली उठाने या गड़े मुर्दे उखाड़ने का मौका नहीं मिलेगा। लेकिन एक यह भी कटु सत्य है कि जितना ऊंचा कद उनका पार्टी में है उतने मजबूत वे जमीन पर नहीं हैं। कार्यकर्ताओं से वे ज्यादा घुले मिले नहीं हैं जो वाकई में चुनावी जमीन तैयार करते हैं। इसलिए इस तथ्य को भी कांग्रेस और खड़गे को एक चुनौती के रूप में लेना चाहिए।
यूपी से केंद्र होकर जाता है चुनावों में जीत का रास्ता
खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद इस बात की भी काफी संभावनाएं जताई जा रही हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे को यूपी की कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है। क्योंकि कांग्रेस हमेशा से दलित, अल्पसंख्यकों और महिला सुरक्षा के मुद्दे को लेकर चुनावी मैदान में उतरी है। तो लोकसभा चुनाव के लिए भी शायद उन्हें उत्तर प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी दे दी जाए। क्योंकि इस साल के 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी के नेतृत्व में ही कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी फजीहत हुई है। जिसकी भरपाई अब खड़गे के चेहरे को आगे रखकर की जायेगी।
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