देश में यूपीआई के जरिए डिजिटल लेनदेन का प्रयोग बढ़ता ही जा रहा है। हर महीने UPI ट्रांजेक्शन के नए रिकॉर्ड्स बन रहे हैं, लेकिन डिजिटल लेनदेन की बढ़ती संख्या और लेनदेन के बीच कैंडी और टॉफी बनाने वाली कंपनियों के लिए समस्याएं खड़ी हो रही हैं। अब अधिकतर पेमेंट मोबाइल के जरिए होने से छुट्टे पैसे का झंझट ही नहीं रहता जिसके कारण कैंडी और टॉफी की बिक्री में जबरदस्त कटौती दर्ज की जा रही है।
पहले दुकानदार खुल्ले पैसे न होने पर टॉफी देकर हिसाब कर दिया करते थे, इसी वजह से टॉफी और कैंडीज की बिक्री हो रही थी और दुकानदार भी कुछ पैसा एक्स्ट्रा कमा रहे थे लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। अब दुकानदार बाकी पैसे का हिसाब करने के लिए आपको कोई भी दूसरा सामान नहीं दे सकते, जिससे उनका भी मुनाफा घटा है।
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2010 में जो कंपनियां जबरदस्त प्रोफिट में थी, अब उनका मुनाफा घटा
क्रेड, डुंजो के ग्रोथ लीडर और ग्रोथएक्स के फाउंडर अभिषेक पाटील के अनुसार UPI का बढ़ता प्रयोग कैंडी कंपनियों के लिए संकट खड़ा कर रहा है। उन्होंने बताया कि मोंडेलेज, नेस्ले, पारले, ITC, मार्स जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियां वर्ष 2010 में जबरदस्त मुनाफा कमाया था लेकिन 2020 में कोरोना के दौरान डिजिटल लेनदेन में एकदम से बढ़ोतरी हुई और खुल्ले पैसे का चक्कर ही खत्म हो गया। अब ये हालात है कि चाय की थड़ी पर 5 रुपए देने हो तो वो भी PayTM या Google Pay किए जाते हैं। ऐसे में दुकानदारों के पास यह ऑप्शन ही नहीं बचा कि वे हिसाब क्लियर करने के लिए टॉफी दे सकें जिसका सीधा असर इनकी बिक्री पर पड़ा।
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अब अधिकतर भारतीय युवा जेब में कैश नहीं रखते
इसे यूपीआई का चमत्कार ही कहेंगे कि अब अधिकांश भारतीय युवा, खासतौर पर वे जो स्मार्टफोन का प्रयोग करते हैं, अपनी जेब में कैश कम रखने लगे हैं। जहां कहीं भी कैश की जरूरत होती है, वे सीधे मोबाइल वॉलेट और ऑनलाइन ऐप्स का प्रयोग करते हैं और पैसा ट्रांसफर कर देते हैं। सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि देश में ऑनलाइन पैसा ट्रांसफर करने की सुविधा ने आम जनजीवन की जिंदगी ही बदल कर रख दी है।