हमारे यहां इम्युनिटी बूस्टर के रूप में सर्दियों में च्यवनप्राश खूब खाया जाता है। बच्चों से लेकर बुर्जुगों तक लोग इसका खूब सेवन करते हैं, बस इसी बात को ध्यान में रखकर अंकिता ने होममेड च्यवनप्राश बनाना सीखा और आज वे इससे अच्छा बिजनेस कर रही हैं। बाजार में उनके उत्पाद की खूब मांग है।
अंकिता बताती हैं, कोरोना के बाद लोगों में अपनी इम्यूनिटी को लेकर ज्यादा सजगता हो गई है वे तरह-तरह से इसे बढ़ाने के प्रयास में रहते हैं। बस इसी को ध्यान में रखते हुए मुझे ये खयाल आया। अपने ऑर्गेनिक च्यवनप्राश मैं आंवले के अलावा कई तरह की जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करती हूं।
ऑर्गेनिक खेती भी करती हैं
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कोलकाता से एमबीए करने के बाद नौकरी करने लगी थीं अंकिता। लेकिन अपने रिटायर्ड पिता की खेती में मदद करने के लिए उन्होंने नौकरी को छोड़ दिया और उनके साथ ऑर्गेनिक फार्मिंग से जुड़ गईं।
खेती करते हुए ही उन्हें ये आइडिया आया कि अपने ही खेत में उगे आंवले यूं ही खराब हो जाते हैं या दूसरों को इन्हें बांटना पड़ता है तो क्यों ना इनकी प्रोसेसिंग की जाए। इसके बाद अंकिता ने आंवलों की कैंडी बनानी शुरू की और फिर च्यवनप्राश। वे डायबिटीज पेशेंटस के लिए शुगर फ्री च्यवनप्राश भी बनाती हैं और इसमें वे प्राकृतिक मिठास के लिए खजूर डालती हैं।
दूसरे किसान भी वेल्यू एडिशन कर लाभ लें
वे बताती हैं, इसमें काम आने वाली जड़ी बूटियां मैँ पास के किसानों से खरीदती हूं। शतावरी, ब्राहृमी जटामानसी, गोखरू, बेल, कचूर,नागरमोथा, लौंग, पुनर्नवा, अंजीर, अश्वगंधा, गिलोय, तुलसी, सौंठ, मुनक्का, मुलेठी आदि मिलाती हैं। वे कहती हैं हमारे खेत से ही सारे आंवलों की पूर्ति नहीं होती इसलिए अपने पास के किसानों से लेते हैं। मैं दूसरे किसानों को भी कहना चाहूंगी कि वे अपने यहां उगने वाले फल-सब्जियों का वेल्यू एडिशन करके बेचें तो फायदा कमा सकते हैं और लोगों तक भी सेहत के ये फायदे पहुंचा सकते हैं।
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उनके पिता इंजीनियर रहे हैं और सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने डेयरी और जैविक खेती शुरू की। पिता का सहारा बनी अंकिता ने अपनी नौकरी छोड़ दी। वे आंवलों की प्रोसेसिंग करने लगीं। वह च्यवनप्राश के साथ जैम, अचार, घी, तेल, शहद आदि के साथ ही ऑर्गेनिक तरीके से नमकीन भी बनाती हैं।
आंवलों को बर्बादी से बचाना था इसलिए आया ये आइडिया
अंकिता बताती हैं, मेरे खेत में 10 आंवले के पेड़ हैं इन पर 400 किलो आंवले लगते हैं। इन सबको हम इस्तेमाल नहीं कर पाते थे और ये खराब होते थे। इन्हें जानवरों के लिए दवा बनाने में काम लेते या अपने पहचान वालों को यूं ही बांट देना होता था। तब मैंने प्रोसेसिंग की। मैंने इनसे कैंडी बनाकर बेचनी शुरू की। फिर इंटरनेट से च्यवनप्राश बनाना सीखा और दोस्तों, रिश्तेदारों को दिया फिर काम आगे अपने आप बढ़ता चला गया।