(पंकज सोनी): जयपुर। राजस्थान की राजनीति में मेवाड़-वागड़ एक अहम जगह रखता है। पिछले कई चुनाव में ऐसी धारणा बनी हुई है और सीटों के आंकड़े भी बताते हैं कि जो मेवाड़ जीतता है बहुमत उसी का होता है। हालांकि, पिछली बार यह मिथक टूटा था, क्योंकि कांग्रेस मेवाड़ में पीछे रही फिर भी अशोक गहलोत की सरकार बन गई। हालांकि, बहुमत का आंकड़ा कांग्रेस ने बामुश्किल ही छुआ था। इस इलाके की 28 सीटों में से भाजपा को 15 और कांग्रेस को 10 सीटें हासिल हुई थीं। इनमें उदयपुर, चित्तौड़गढ़ तो भाजपा के गढ़ नजर आ रहे थे। अलबत्ता, इस बार इन इलाकों में भाजपा की चिंता बढ़ी है। भाजपा उदयपुर संभाग के अपने कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया को सक्रिय राजनीति से विदा कर चुकी है।
वहीं, बीते एक साल में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लगातार इस इलाके के दौरों ने भाजपा को बेचैन कर रखा है। गहलोत एक साल में इस अंचल के 18 दौरे कर चुके हैं। वहीं, इस इलाके के लिए एक के बाद एक घोषणाएं भी कांग्रेस के लिए चुनावी फायदे का सौदा हो सकता है। गहलोत के हाल के उदयपुर संभाग के दौरे में सबसे बड़ा दांव महाराणा प्रताप बोर्ड के गठन का ऐलान करके खेला गया है। इस पूरे अंचल में महाराणा प्रताप को लेकर आम जनता में भावनात्मक जुड़ाव है। यही कारण है कि गहलोत का यह ऐलान वागड़-मेवाड़ के साथ पाली तक आमजन पर प्रभाव डालेगा।
कटारिया जैसा नहीं है जोशी का कद!
भाजपा में कटारिया के कद के नेता की कमी उदयपुर संभाग में पूरी होती नहीं नजर आ रही है। हालांकि भाजपा ने अपने नए प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी का ऐलान करते हुए उदयपुर संभाग के इस फै क्टर को पूरी तरह ध्यान में रखा, लेकिन दो बार सांसद रहने के बाद भी जोशी का वो कद इस इलाके में नहीं है, जो आज भी कटारिया का है। जोशी न तो भीड़ जुटाने वाले चेहरे हैं और न ही इस इलाके के संगठन में उनकी मजबूत पकड़ है। भाजपा की यह कमजोर कड़ी है, जिसे इस इलाके में कांग्रेस के लिए लाभ का समीकरण माना जा रहा है।
राजपूतों में वसुंधरा का प्रभाव
उदयपुर संभाग में राजनीतिक और समाजिक लिहाज से राजपूत मतदाताओ का अच्छा खासा दबदबा है। कटारिया से पटरी नहीं बैठने के कारण इस इलाके में राजपूत समाज के बड़े चेहरे रणधीर सिंह भिडं र, जो लगातार भाजपा के खिलाफ ताल ठोकते आए हैं, राजे के समर्थक माने जाते हैं। वहीं इस इलाके के पूर्व राजपरिवारों के सदस्य जो सक्रिय राजनीति में हैं, वे भी वसुंधरा के प्रति राजनीतिक निष्ठा रखते हैं। जाहिर है, राजस्थान में भाजपा का वसुंधरा से किनारा करना क्षत्रिय मतदाताओ में भाजपा को कमजोर कर रहा है।