देश में इस समय राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो (Bharat Jodo Yatra) के नाम से पदयात्रा निकाली जा रही है। देश के उत्तर से लेकर दक्षिण तक ये यात्रा पैदल निकाली जा रही है। इसमें हजारों की संख्या में कार्यकर्ता शामिल हो रहे हैं। देश में राजनीति में पदयात्राएं कितनी महत्वपूर्ण हैं इसा अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कई नेताओं की सत्ता पर काबिज होने की चाभी इन्हीं पदयात्रा से निकली है। तो दूसरी तरफ कई नेताओं ने जनता के सामने अपनी छवि को चमकाने के लिए पदयात्रा का ही सहारा लेते हैं।
पदयात्रा बनी सत्ता पर काबिज होने की चाभी
देश में पदयात्रा का इतिहास कितना पुराना है, अगर बात देश में ब्रिटिश साम्राज्य की करें तो गुलामी को उस दौर में महात्मा गांधी ने कई बार पदयात्राएं निकालीं और अंग्रेजों की जड़ें हिला दी। तो कई क्रांतिकारियों ने देश में पदयात्राओं के जरिए ही आजादी की अलख जगाई थी। तो दूसरी तरफ गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, शंकराचार्य, स्वामी विवेकानंद ने भी धर्म और सत्य के प्रचार-प्रसार के लिए कई विदेशों में भी पदयात्रा की हैं। लेकिन आज के दौर में क्या सभी पदयात्राएं नेताओं के लिए सफल, साबित होती हैं, इसे समझने के लिए हम इतिहास के पन्नों को पलटते हैं। इतिहास में दर्ज तथ्यों के मुताबिक आजाद भारत में पदयात्राएं कई बार नेताओं के लिए फलीभूत साबित हुई हैं।
साल 1975 में इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल लगा दिया था। जिसके बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने पूरे देश क्रांति की लौ जला दी थी। पूरे देश में आंदोलन की बयार चल गई थी। लोकनारायण जयप्रकाश के समर्थन में युवा आंदोलनकारी और कई नेताओं ने पूरे देश में पदयात्रा निकाली। इस पदयात्रा ने देश में कांग्रेस के खिलाफ तगड़ा माहौल बनाया। नतीजा यह रहा कि 1977 के चुनाव में कांग्रेस का सूप़ड़ा साफ हो गया। दूसरी तरफ इंदिरा गांधी ने सत्ता से बेदखल होने के बाद दोबारा वापसी के लिए पदयात्रा को ही हथियार बनाया। उस वक्त वे दिल्ली से बिहार के बेलछी गई थीं। इस पदयात्रा का फाय़दा उन्हें 1980 में मिला जब लोकसभा चुनाव में जबरदस्त जीत दर्ज की।
जेपी नारायण से लेकर राहुल गांधी…. लंबी है लिस्ट
देश में लोकनायक जयप्रकाश नारायण से लेकर दिग्विजय सिंह ने ये पदयात्राएं निकाली हैं। जिसमें जबरदस्त क्रांति देखने को मिली थी। जयप्रकाश नारायण, इंदिरा गांधी, वाईएसआर रेड्डी, चंद्रबाबू नायडू, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर राव, जगन मोहन रेड्डी, दिग्विजय सिंह, लालकृष्ण आडवाणी ने यह पदयात्राएं निकाली हैं। इन सभी ने पदयात्राओं से देश और प्रदेश की सत्ता में काबिज होने में सफलता पाई है।
आंध्र प्रदेश के विभाजन से पहले 2003 में कांग्रेस नेता वाईएस राजशेखर रेड्डी ने पदयात्रा शुरू की। उन्होंने 60 दिन के अंदर ही 1500 किमी की पदयात्रा कर ली थी। कुल 11 जिलों की इस यात्रा का नतीजा यह हुआ कि सालों से सत्ता पर काबिज चंद्र बाबू नायडू की TDP को उखाड़ फेंका।
वाईएस राजशेखर रेड्डी के बेटे जगन मोहन रेड्डी ने वाईएसआर कांग्रेस का गठन किया, सत्ता में वापसी के लिए उन्होंने पदयात्रा को ही चुना, 2017 में उन्होंने 341 दिनों में 3648 किलोमीटर की यात्रा की। नतीजा…2019 में उनकी धमाकेदार वापसी हुई। आंध्र प्रदेश की सत्ता पर वाईएस राजशेखर रेड्डी के आसीन होने के बाद चंद्र बाबू नायडू ने भी पदयात्रा का ही रास्ता चुना। साल 2013 में 1700 किमी लंबी पदयात्रा की। नतीजा..उनकी सत्ता में वापसी हो गई।
जनता दल नेता चंद्रशेखर ने 1983 में कन्याकुमारी से लेकर दिल्ली तक पैदल यात्रा की थी। हालांकि इसे गैर राजनीतिक बताया गया था। नतीजा साल 1990 में वे देश के आंठवें प्रधानंमत्री बने। तो कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने 2017 में मध्य प्रदेश में नर्मदा यात्रा आरंभ की। उन्होंने 110 विधानसभाओं का दौरा किया। साल 2018 में सत्ता की वापसी हुई। हालांकि बाद में पार्टी टूट गई।
भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी हिंदुत्व का ध्वज थामकर पदयात्रा निकाली थी। अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए उन्होंने भाजपा नेताओं के साथ रथयात्रा निकाली थी। इस यात्रा से भाजपा को जबरदस्त फायदा पहुंचा पूरे देश में भाजपा की लहर चल गई थी। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1991 के लोकसभा चुनाव में पूरे देश में 120 सीटें जीती थीं। उस वक्त कांग्रेस के बाद भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।
क्या राहुल गांधी की पदयात्रा दिला पाएगी सत्ता
इस बात को कहने में अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए कि देश की सत्ता पर सबसे लंबे समय तक काबिज होने वाली पार्टी कांग्रेस आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता जब-तब अपने अपमान की कहानी देश के सामने रखते गए। लेकिन जब पार्टी ने ही नेताओं को किनारे करना शुरू कर दिया तो उन्होंने एक-एक करके पार्टी को किनारे करन शुरू कर दिया। इनमें से कई ने राहुल गांधी पर उनके अपमान का आरोप लगाया हुआ है। इनमें से ताजा उदाहरण गुलाम नबी आजाद का है। दिग्विजय सिंह,ज्योतिरादित्य सिधिंया….यह लिस्ट लंबी होती चली जा रही है। लेकिन राहुल गांधी इन सबसे ‘अनजान’ होते हुए देश में भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं। अब यह पदयात्रा उन्हें सत्ता में वापसी दिलाएगी या नहीं ये को आने वाले वक्त में ही पता चलेगा।