क्या आप जानते है कि जोधपुर का एक विश्वविद्यालय ऐसा है जो खुद और उसकी कुलपति दोनो ही ऑक्शीजन पर है? अब आप सोच रहे होंगे ऐसा भला कैसे हो सकता है मगर आपको यह जानकारी हैरानी हो सकती है कि महात्मा गांधी दिव्यांग विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय की कुलपति दोनों ऑक्सीजन पर है क्योंकि 13 महीने होने के बावजूद महात्मा गांधी दिव्यांग विश्वविद्यालय का किसी प्रकार का बजट जारी नहीं किया गया है,ऐसे में सरकार द्वारा नियुक्त की गई कुलपति डॉक्टर कुसुम लता भंडारी अपने घर के खर्चे पर ही अपने घर से ही प्रारंभिक कार्य कर रही है लेकिन खुद के लंग्स की बीमारी होने के कारण खुद भी ऑक्सीजन पर ही है,बावजूद उसके राजस्थान की सरकार से उन्हें काफी उम्मीदें हैं कि जल्द ही सरकार इस दिव्यांग विश्वविद्यालय की और ध्यान देंगी और बहुत जल्द सब कुछ ठीक हो जाएगा,पहले विधानसभा, फ़िर लोकसभा और बाद में उपचुनाव में मुख्यमंत्री व्यस्त रहे हैं.
सरकार इसमें दखल दे तो कुछ बने बात
बचपन से ही पोलियो की शिकार होने के कारण जीवन भर की दिव्यांगता के बावजूद हिम्मत नहीं हारने वाली डॉक्टर कुसुम लता भंडारी ने सामान्य शिक्षक से जीवन शुरू करके जोधपुर के जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय की पॉलिटिकल साइंस विभाग की विभाग अध्यक्ष भी रही और कई राष्ट्रपतियों ने भी उन्हें उनकी सेवाओं के लिए सम्मानित किया है.यही नहीं, उन्होंने अपने जीवन में हजारों दिव्यांगों को पढ़ा लिखा कर रोजगार के लायक भी बनाया है ,अब जब उन्हें इस विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया है तो पूरे राजस्थान के दिव्यांग आशा भरी नजरों से उनकी ओर देख रहे हैं.
कुछ नही मिला पर हौंसला आज भी जिंदा
कुसुमलता भंडारी ने कहा कि जमीन नही है,छत नही है,स्टाफ नही है मगर हौंसला है कि आज नही तो कल कुछ होगा. उसी पल पर कार्य करने का प्रयास कर रही हूं. सरकार को जब फुर्सत होगी तो सहयेाग मिलेगा यही आशा लेकर चल रही हूं. सरकार पहले चुनावो में व्यस्त है शायद इसलिए उनका ध्यान हमारी तरफ नही है. मारवाड़ यूनिवर्सिटी और महात्मा गांधी दिव्यांग विश्वविद्यालय की एक साथ घोषणा हुई मगर उनको एक करोड रूपए मिल गए उनका काम काफी आगे बढ गया मगर हमे एक पैसा तक अभी नही मिला है.
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दिव्यांग नही कर सकते आंदोलन इसलिए नही सुन रही सरकार
कुसुमलता भंडारी ने अपने दिल की बात कहते हुए यह कह ही दिया कि सरकारो के लिए विकलांग हमेशा उनकी प्राथमिकता में अंतिम स्तर पर ही रहे है. महात्मा गांधी का भी कहना था कि कमजोरो की स्थिति में सबसे कमजोर जो आते है उनको पहले प्राथमिकता दी जाए. ऐसे में दिव्यांग मानसिक और शारीरिक रूप से काफी पिछडा हुआ है. पिछडे को आगे लाना सरकार की प्राथमिकताओं में नही देखा गया है क्योकि दिव्यांग आंदोलन नही कर सकते एक साथ एकत्रित नही हो सकते और सरकार तक अपनी आवाज नही पहुंचा सकते.
गहलोत सरकार के वक्त हुई थी घोषणा
आपको बता दे कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा इसकी घोषणा करने के साथ ही 18 नवीन पदों को सृजन की मंजूरी दे दी थी. इन पदों में कुलपति, कुलसचिव, वित्त नियंत्रक, निजी सचिव, सहायक लेखाधिकारी ग्रेड-1, अनुभाग अधिकारी, वरिष्ठ सहायक का 1-1, निजी सहायक ग्रेड-2, सूचना सहायक, कनिष्ठ सहायक एवं वाहन चालक के 2-2 तथा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के 3 पद शामिल हैं. मगर अभी तक केवल कुलपति की नियुक्ति के अलावा कुछ भी काम आगे नहीं बढा है. जिसके चलते इसके कार्य आगे बढाने की मांग की जा रही है.
कुलपति बनाकर भूल गई सरकार
कुसुमलता भंडारी को महात्मा गांधी दिव्यांग विश्वविद्यालय की कुलपति बनाए जाने के बाद बात की जाए तो आज दस महीने बीत जाने के बाद उनकी तंख्वाह तक उनके खाते में आज तक नही आई है. ही किसी प्रकार से रजिस्ट्रार उनको उपलब्ध तक नही करवाया गया. कुलपति के प्रोटोकॉल के तहत दी जाने वाली गाडी व ड्राइवर इत्यादि के अलावा तमाम सुविधाओं से भी कुसुमलता भंडारी अभी तक वंचित है. अपने निजी संसाधनों के माध्यम से ही कुसुमलता भंडारी फिलहाल काम चला रही है. कुसुमलता भंडारी ने इससे संबंधित मंत्री से लेकर एडिशनल चीफ सेक्रेट्री से भी मुलाकात कर मांग कर चुकी है. मगर अभी तक कोई काम आगे नही बढा है.