rajasthan assembly election 2023: चुनाव दर चुनाव-भारत में संसदीय लोकतंत्र का अहम हिस्सा बन गया है। फिर चुनाव के लिए मतदाताओं तक पहुंच भी जरूरी होती है। इसके कई साधन अपनाए जाते हैं। वक्त के साथ-साथ इनके स्वरूप में परिवर्तन से हम रू-ब-रू हो रहे हैं। आरंभ में आम चुनावों में सभाओं के साथ-साथ जुलूस निकाले जाते थे। चुनाव चिह्नों के बैज बनवाकर बांटे जाते थे। बच्चों में इन बैजों के प्रति आकर्षण होता था। बैज लगाकर गली-गली घूमने, शोर मचाने का आनंद तो अलग ही था। प्रत्याशी के समर्थक बच्चों की भीड़ इकट्ठी करके मौहल्लों में छोटे-छोटे जुलूस निकलवाते थे। छोटे मोटे शहरों में नुक्कड़ सभाओं के अलावा बड़े चौक में बड़ी सभा के आयोजन का भी रिवाज था।
चुनावी सीजन के अलावा भी विशेषकर तत्कालीन प्रतिपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से आम सभाओं की परम्परा विकसित हुई। इनमें तत्कालीन जनसंघ और समाजवादी दलों की अहम भूमिका हुआ करती थी। आपातकाल के पश्चात वर्ष 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में नवगठित जनता पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में जनसंघ नेता सतीशचंद्र अग्रवाल जयपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे। उनके समर्थन में जयपुर के रामनिवास बाग में अल्बर्ट हॉल के सामने बड़े मंच पर आयोजित चुनावी सभा को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने संबोधित किया।
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केन्द्र में पहली बार मोरार जी देसाई के नेतृत्व में गठित गैर कांग्रेस सरकार में सतीशचंद्र अग्रवाल को वित्त राज्यमंत्री बनाया गया। अग्रवाल का निवास जयपुर के सी स्कीम में धूलेश्वर बाग स्थित यूएनआई ऑफिस के पास ही था। जयपुर आने पर वह मुझे गपशप के लिए बुला लेते। वह इस बात के लिए चिंतित रहते कि अन्य राज्यों की ओर से योजनाएं बनाकर केन्द्र से धनराशि आवंटित करवा ली जाती है लेकिन इस मामले में राजस्थान काफी पीछे है।
चर्चा के दौरान मैने सतीश जी से पूछा- आप भरतपुर जिले के निवासी हैं, तो अापने इतनी जल्दी जयपुर में अपना प्रभाव क्षेत्र कैसे बना लिया। जनसंघ के कार्यकर्ता और वकालत के पेशे की चर्चा करते हुए उन्होंने जब आम सभा के आयोजन का दर्शनशास्त्र समझाया तो सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गया। तो अपने पाठकों को इस कथा से वंचित क्यों रखा जाए, जो आजकल की चुनाव रैलियों की शान-शौकत देखने के अभ्यस्त हैं।
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जनसमस्याओं को लेकर जयपुर में आमतौर पर माणक चौक चौपड़ पर जनसंघ की आमसभा हुआ करती थी। भैरोंसिंह शेखावत और सतीशचंद्र अग्रवाल से पहले सभा जमाने के लिए स्थानीय नेताओं के भाषण होते। पर इससे पहले सभा की तैयारी की चर्चा पार्टी संगठन के मंडल स्तर पर होती। दरी-फर्श बिछाने से लेकर मंच-माइक व्यवस्था की जिम्मेदारी की रूपरेखा बनती। फिर आमसभा का लाभ लेने की योजना बनती। समझदार तथा अनुभवी कार्यकर्ता सभा स्थल पर अलग अलग समूह में बैठते। वरिष्ठ नेताओं के भाषण पर कब कैसे तालियां बजानी हैं, इसका भी उन्हें अभ्यास था।
सभा समाप्त होने के बाद यही कार्यकर्ता आपसी बातचीत में भाषण पर टिप्पणी करते हुए लोगों की प्रतिक्रिया जानते। फिर ऐसे लोगों से परिचय बढ़ाकर पार्टी से जोड़ने की पहल होती। इस तरह आमसभाओं के आयोजन का दर्शनशास्त्र पार्टी के विस्तार का माध्यम बना।