कोटा। कोचिंग सिटी के नाम से मशहूर राजस्थान के कोटा शहर में स्टूडेंट्स के सुसाइड करने के मामले बढ़ते ही जा रहे है। कोटा में इस साल से अब तक 21 स्टूडेंट मौत को गले लगा चुके हैं। वहीं कोटा में आए दिन हो रहे स्टूडेंट्स सुसाइड केस को लेकर जिला प्रशासन ने बीते आठ साल के आंकड़े जारी किए है। स्टूडेंट्स के सुसाइड के बढ़ते मामलों पर सरकार के साथ-साथ जिला प्रशासन भी चिंतित है।
ऐसे में रविवार को पुलिस स्टूडेंट सेल के प्रभारी एएसपी चंद्रशील ठाकुर विद्यार्थियों को मोटिवेट किया और अभिभावकों से उम्मीदों की गठरी मासूम बच्चों पर नहीं रखने की भी अपील की। एएसपी चंद्रशील ठाकुर ने एक वीडियो के जरिए विद्यार्थियों के साथ अभिभावकों को भी मैसेज दिया है।
एएसपी चंद्रशील ठाकुर के मोटिवेशनल वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वायरल मैसेज में चंद्रशील ठाकुर बच्चों को प्लान ए और प्लान बी के बारे में समझाते हुए कहते हैं, ‘अगर डॉक्टर नहीं बन सको तो अपना प्लान बी भी हमेशा तैयार रखो, क्योंकि कई बार प्लान बी भी प्लान ए से ज्यादा बेहतर होता है। इसके कई उदाहरण भी हैं।’
बता दें कि कोटा में पिछले आठ सालों में 116 स्टूडेंट ने सुसाइड किया है। वहीं बीते आठ सालों सबसे ज्यादा इस साल आठ महीनों में 21 लोगों ने आत्महत्या की है। कोटा में आए दिन स्टूडेंट्स के सुसाइड करने के बाद सीएम अशोक गहलोत ने भी प्रदेशभर के कोचिंग संस्थानों के संचालकों, पुलिस अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों की बैठक लेकर विशेष निर्देश दिए हैं। जिसमें कोचिंग संस्थानों में गाइडलाइन के पालन को लेकर गंभीरता से फोकस करने और स्टूडेंट सुसाइड मामलों पर अब सरकार की निगरानी के साथ कोटा में संचालित की जा रही है। पुलिस की स्टूडेंट सेल को क्राइम ब्रांच की मॉनिटरिंग में डीजी के निर्देशन में सौंपा गया है।
एएसपी बोले-सफलता के लिए 24 घंटे पढ़ना जरूरी नहीं
एएसपी चंद्रशील ठाकुर के मोटिवेशनल वीडियो में वह कहते हैं कि अपने शौक मरने मत दीजिए, अगर आप गाना गाते हैं तो गाइए, डांस करते हैं तो नाचिए। बकौल एएसपी, सफलता के लिए 24 घंटे पढ़ाई की जरूरत नहीं होती। दृढ़ संकल्प के साथ अपने शौक पूरे करते हुए परीक्षा देंगे तो परिणाम भी अच्छे आएंगे, लेकिन सफलता नहीं मिलती है तो अपने प्लान भी पर फोकस कीजिए और अपनी जिंदगी को बेहतर बनाइए।
अभिभावकों की उम्मीदों का बोझ स्टूडेंट पर पड़ता है भारी
विशेषज्ञों का मानना है कि ज्यादातर केसों में अभिभावकों की उम्मीदों का बोझ स्टूडेंट पर भारी पड़ता है। अभिभावक अपने सपने अपने बच्चों पर थोपकर उनको इस चुनौती पूर्ण परीक्षाओं में शामिल होने के लिए भेजते हैं, लेकिन हर स्टूडेंट की एक क्षमता होती है, क्षमता से अधिक वह परफॉर्मेंस नहीं कर सकता।