म्यूनिख। दुनिया में एक दिन 24 घंटे का होता है, लेकिन संभव है कि भविष्य में यह 25 घंटे हो जाए। टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिख के वैज्ञानिकों ने शोध के बाद यह संभावना जताई है। यह शोध पृथ्वी के घूमने की गति को समझने में एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है। हम मानते हैं पृथ्वी पर एक दिन सटीक 24 घंटे का होता है, लेकिन विभिन्न ठोस और तरल पदार्थों का मिश्रण ग्रह की घूर्णन गति को प्रभावित करता है। टीयूएम के लिए वेधशाला में प्रोजेक्ट लीड उलरिच श्रेइबर ने कहा, ‘रोटेशन में उतार-चढ़ाव न केवल खगोल विज्ञान के लिए महत्वपूर्ण है।’
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उपकरण पकड़ता है घूर्णी अंतर
जियोडेटिक वेधशाला वेटजेल में यह उपकरण है, जो एक लेजर रिंग जाइरोस्कोप है, जो जमीन से 20 फीट नीचे एक दबाव वाले कक्ष में है। इस सेटअप के जरिए यह वैज्ञानिक सुनिश्चित करते हैं कि लेजर पूरी तरह से सिर्फ पृथ्वी के घूर्णन से प्रभावित हो। लेजर और दर्पण के इस्तेमाल से यह उपकरण घूर्णी अंतर को पकड़ लेता है। लेजर दिन रह चुका 18 व 23 घंटे का हालांकि इससे भी सही डेटा निकालना बेहद मुश्किल है।
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पिछले चार वर्षों में जियोडेसिस्ट्स ने इन प्रभावों को ध्यान में रखते हुए लेजर दोलनों के लिए सैद्धांतिक मॉल विकसित किया है। इसके जरिए यह काफी सटीकता से प्रति दिन का समय नाप सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि डायनासोर के समय एक दिन 23 घंटे का होता था। 1.4 अरब साल पहले एक दिन 18 घंटे 41 मिनट का होता था। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 20 करोड़ साल बाद एक दिन 25 घंटे का हो जाएगा।