China Sanction Pelosi : अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी ( Nancy Pelosi ) की ताइवान यात्रा को लेकर चीन बौखलाया हुआ है। इस बौखलाहट में उसने नैंसी पेलोसी और उनके परिवार पर प्रतिबंध लगा दिया है। नैंसी पेलोसी जब से ताइवान ( Taiwan ) आई हुईं थीं चीन तब से ही अमेरिका पर भड़का हुआ था। अपने इस गुस्से में चीन ने ताइवान पर कई आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिए थे। अब उसने नैंसी पेलोसी पर प्रतिबंध लगा दिया है। चीनी न्यूज एजेंसी सीजीटीएन ने इसकी पुष्टि कर दी है।
चीन का माउथ पीस कहे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ( Global Times ) अखबार ने चीन के विदेश मंत्रालय के हवाले से एक खबर छापी थी। जिसमें कहा गया था कि नैंसी पेलोसी ( Nancy Pelosi ) का यात्रा चीन के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। यह चीन के आंतरिक मामलों के दखलअन्दाजी है। जिसकी चीन कड़े शब्दों में निंदा करता है। आपको बता दें कि नैंसी पेलोसी ने आज सुबह एक बयान दिया था कि अमेरिका ( America ) ताइवान को बर्बाद नहीं होने देगा। वह चीन की ताइवान में कब्जे को दूर करके रहेगा।
पेलोसी की ताइवान यात्रा से तिलमिलाए चीन ( China ) ने तो ताइवान के चारों ओर सैन्य अभ्यास तक शुरू कर दिया है। यहां तक कि उसने अपने फाइटर जेट और फोर्स को लॉन्चिंग मोड पर लगा दिया था। लेकिन आखिर चीन ऐसा क्यों कर रहा है? ताइवान पर अपना स्वामित्व जमाता फिरता चीन पेलोसी की यात्रा से इतनी बौखलाहट में क्यों है उसके लिए आपको चीन और ताइवान के संबंधों में बारे में जानना होगा।
चीन औऱ ताइवान में क्या है संबंध
दरअसल चीन ताइवान को अपने देश का हिस्सा मानता है। साल 1642 से 1661 तक ताइवान नीदरलैंड ( Neetharland ) का एक हिस्सा था। चीन का चिंग राजवंश ने साल 1683 से 1895 तक ताइवान पर शासन किया। लेकिन 1895 में चीन जापान से युद्ध में हार गया था। तब ताइवान जापान में चला गया था। इसके बाद दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार हो गई थी। तब अमेरिका औऱ ब्रिटेन ने मिलकर ये फैसला किया था कि ताइवान को चीन को सौंप दिया जाए। लेकिन चीन और ताइवान के बीच संबंध ठीक नहीं थे। ताइवान के लोग आजाद देश चाहते थे। 29 दिसंबर 1911 को जब मांचू सेना के विद्रोह के बाद रिपब्लिक ऑफ चाइना अस्तित्व में आया। इसका मानना था कि ताइवान को मेनलीड चीन के साथ जुड़ना चाहिए।
अमेरिका की क्या है भूमिका
अगर हम बात अमेरिका ( America ) की करें तो अमेरिका ताइवान को सबसे अहम दोस्त और साथी मानता है। अमेरिकी कांग्रेस ने इस संबंध में ताइवान रिलेशन एक्ट भी पास किया था़। जिसके तहत तय किया गया कि अमेरिका ताइवान को सैन्य मदद मुहैया कराएगा। अगर चीन ताइवान पर किसी तरह का हमला करता है तो अमेरिका उसे गंभीरता से देखेगा।
अपनी विस्तारवादी नीति के चलते चीन किसी भी हालत में ताइवान को अपने हाथ से निकलने नहीं देना चाहता। साल 1996 में ताइवान के राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए चीन ने मिसािल परीक्षण तक कर दिए थे। जिस पर अमेरिका ने अपना सबसे बड़ा सैन्य प्रदर्शन किया और चीन को संदेश दिया कि ताइवान की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं कर सकता।
बता दें कि चीन ने वन कंट्री टू सिस्टम का प्रस्ताव ताइवान के सामने रखा था जिसके तहत अगर ताइवान खुद को चीन का हिस्सा मान लेता है। तो उसे स्वायत्ता प्रदान कर दी जाएगी। लेकिन ताइवान ने इसे ठुकरा दिया था। ताइवान खुद को आजाद तो रखना चाहता ही है साथ ही वो ये भी चाहता है कि उसके देश में उसका अपना बनाया कानून-संविधान हो, वह वन कंट्री टू सिस्टम जैसे फार्मूले से नहीं चल सकता।
इसलिए चीन कर रहा है विरोध
दरअसल चीन पेलोसी ( Nancy Pelosi Taiwan Visit ) की इस यात्रा को अपने आंतरिक मामलों में दखल अंदाजी मान रहा है। जबकि ताइवान खुद को आजाद रखना चाहता है। वह चीन के प्रभुत्व में नहीं रहना चाहता। ऐसे में दुनिया के अधिकतर ताइवान के समर्थन में खड़े हैं। इसकी अगुवाई अमेरिका कर रहा है। दूसरी तरफ अमेरिका से चीन के संबंध बेहद खराब हालातों में है। ऐसे में वह अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा को अपने क्षेत्र और आंतरिक मामलों में दखलअंदाजी मान रहा है। चीन ताइवान को अपने देश का ही एक प्रांत मानता है औऱ वह कहता है कि वह एक दिन इस प्रांत का अपने देश में पूरी तरह विलय कर लेगा।